भारत में क्यों मनाया जाता है राष्ट्रीय शिक्षा दिवस? जानिए इसका महत्व
भारत में प्रत्येक साल 11 नवंबर को राष्ट्रीय शिक्षा दिवस मनाया जाता है। इस दिवस को भारत के पहले केंद्रीय शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद की जयंती के तौर पर मनाया जाता है। वे एक स्वतंत्रता सेनानी, विद्वान और प्रख्यात शिक्षाविद् और स्वतंत्र भारत के प्रमुख वास्तुकारों में से एक थे। मौलाना अबुल कलाम आजाद ने ही ऑल इंडिया काउंसिल फॉर टेक्निकल एजुकेशन (AICTE) और ऐसे प्रमुख शिक्षा निकायों की स्थापना में प्रमुख भूमिका निभाई थी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मौलाना आजाद को किया याद
कब से शुरू हुआ 'राष्ट्रीय शिक्षा दिवस'?
सितंबर, 2008 में केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने मौलाना अबुल कलाम आजाद की जयंती को राष्ट्रीय स्तर पर शिक्षा दिवस के रूप में मनाने पर मुहर लगाई थी। आजादी के बाद राष्ट्र निर्माण में शिक्षा के महत्त्व को देखते हुए इन्हीं कुछ नेताओं ने शिक्षा को महत्त्वपूर्ण बनाया। अबुल कलाम ने शिक्षा को बढ़ावा देने की पहल शुरू की और उन्होंने ही सबसे आगे रह कर इस काम को संपन्न किया।
राष्ट्रीय शिक्षा दिवस का महत्व क्या है?
राष्ट्रीय शिक्षा दिवस पर देशवासी राष्ट्र निर्माण में मौलाना आजाद के योगदान को याद करते हैं। इस दिन को स्वतंत्र भारत में शिक्षा प्रणाली की नींव रखने में अबुल कलाम के योगदान को याद करने के तौर पर देखा जाता है। इस दिवस को हर साल स्कूलों में विभिन्न रोचक और सूचनात्मक सेमिनार, संगोष्ठियों, निबंध-लेखन आदि का आयोजन करके मनाया जाता है। इसके साथ ही छात्र और शिक्षक साक्षरता के महत्व और शिक्षा के सभी पहलुओं पर विचार-विमर्श करते हैं।
मौलाना अबुल कलाम स्वतंत्रता संग्राम के रहे हैं मुख्य नायक
मक्का में जन्मे मौलाना आजाद 1890 में परिवार के साथ कलकत्ता में शिफ्ट हो गए थे। मात्र 13 साल की उम्र में शादी हो गई और उनकी पत्नी का नाम खदीजा बेगम था। आजाद ने 1947 से 1958 के बीच पंडित जवाहरलाल नेहरू की सरकार के दौरान पहले शिक्षा मंत्री के रूप में देश की सेवा की। वे एक सुधारक, स्वतंत्रता सेनानी और एक प्रख्यात शिक्षाविद् थे, जो शिक्षा के माध्यम से राष्ट्र निर्माण की सोच रखते थे।
मौलाना आजाद को था कई भाषाओं का ज्ञान
मौलाना आजाद को अरबी, बंगाली, फारसी और अंग्रेजी सहित कई भाषाओं का ज्ञान था। आजाद को उनके परिवार द्वारा नियुक्त किए गए शिक्षकों द्वारा गणित, दर्शन, विश्व इतिहास और विज्ञान जैसे कई विषयों में भी प्रशिक्षित किया गया था। आजाद किशोरावस्था में ही पत्रकारिता में सक्रिय हो गए थे। साल 1912 में, उन्होंने साप्ताहिक उर्दू अखबार अल-हिलाल (द क्रिसेंट) प्रकाशित करना शुरू कर दिया था। इसके बाद उन्होंने दिल्ली में जामिया मिलिया इस्लामिया जैसे कई संस्थानों की स्थापना की।