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    दिल्ली: मेट्रो पुल के नीचे 300 गरीब बच्चों को पढ़ाता है यह दुकानदार

    दिल्ली: मेट्रो पुल के नीचे 300 गरीब बच्चों को पढ़ाता है यह दुकानदार

    लेखन मोना दीक्षित
    Feb 06, 2020
    06:59 pm

    क्या है खबर?

    पढ़ने का अधिकार सबको होता है, वहीं कुछ बच्चे गरीबी के कारण पढ़ाई नहीं कर पाते। ऐसे ही बच्चों के सपनों को सच करने के लिए दिल्ली में एक दुकानदार उनका साथ दे रहा है।

    दिल्ली में यह दुकानदार 300 से भी अधिक वंचित बच्चों को यमुना बैंक क्षेत्र में एक मेट्रो पुल के नीचे पढ़ाता है।

    पिछले कई सालों से मेट्रो पुल के नीचे 'फ्री स्कूल अंडर द ब्रिज' चल रहा है।

    आइए जानें पूरी खबर।

    शुरूआत

    पेड़ के नीचे दो बच्चों को पढ़ाकर की शुरूआत

    इस स्कूल का संचालन राजेश कुमार शर्मा कर रहे हैं। इसमें यमुना बैंक मेट्रो स्टेशन के आस-पास की झोपड़ियों में रहने वाले बच्चों को शिक्षा दी जा रही है।

    राजेश कुमार ने 2006 में युमना बैंक मेट्रो स्टेशन के पास खुदाई होते समय कुछ बच्चों को रेत में खेलते हुए देखकर सोचा कि इन बच्चों के लिए ऐसा क्या किया जाए, जो हमेशा उनके साथ रहे।

    इसके बाद उन्होंने पेड़ के नीचे दो बच्चों को पढ़ाकर इसकी शुरूआत की।

    जानकारी

    क्या करते हैं राजेश शर्मा?

    49 साल के राजेश शर्मा उत्तर प्रदेश के हाथरस के रहने वाले हैं। वे लक्ष्मी नगर में अपने परिवार के साथ रहते हैं। उनके परिवार में पांच सदस्य हैं। जिनके पालन-पोषण के लिए वे एक किराने की दुकान चलाते हैं।

    दृशय

    कैसा है स्कूल?

    इस स्कूल की छत दिल्ली मेट्रो का एक पुल है और मेट्रो परिसर की दीवार पर पांच ब्लैकबोर्ड लगाए गए हैं। जिस पर बच्चों को चॉक से पढ़ाया जाता है।

    बच्चे कालीन से ढकी हुई जमीन पर बैठकर पढ़ाई करते हैं। बच्चे अपनी ही नोटबुक लेकर आते हैं और ग्रुप में पढ़ाई करते हैं।

    जहां स्कूल बना है, वहां कम ही यातायात है और मेट्रो के गुजरने का शोर भी बच्चों को कम ही सुनाई देता है।

    शिफ्ट

    दो शिफ्टों में चलता है स्कूल

    जानकारी के लिए बता दें कि ये स्कूल दो शिफ्टों में चलता है। पहली शिफ्ट सुबह 09:00 से 11:00 बजे तक लगभग 120 लड़कों के लिए चलती है। वहीं दूसरी शिफ्ट दोपहर 02:00 से शाम 04:30 बजे तक लगभग 180 लड़कियों के लिए चलती है।

    आस-पास के इलाकों में रहने वाले सात शिक्षक अपने खाली समय में बच्चों को पढ़ाने आते हैं। सभी छात्र चार साल से 14 साल के बीच के हैं।

    जानकारी

    राजेश का साथ देने आए ये लोग

    राजेश ने पहले अकेले ही इस पहल की शुरूआत की थी, लेकिन उनको अब लक्ष्मी चंद्रा, श्याम महतो, रेखा, सुनीता, मनीषा, चेतन शर्मा और सर्वेश की मदद मिली है। ये सभी अपनी मर्जी से बच्चों को पढ़ाते हैं और कोई फीस भी नहीं लेते।

    जीवन

    खराब आर्थिक स्थिति के कारण पढ़ाई पूरी नहीं कर पाए थे राजेश

    राजेश शर्मा अपने परिवार की खराब फाइनेंशियल स्थिति के कारण अपनी BSc की डिग्री पूरी नहीं कर पाए थे और पढ़ाई के बीच में ही अपना कॉलेज छोड़ दिया था।

    उनका कहना है कि किसी भी बच्चे को गरीबी के कारण शिक्षा से वंचित नहीं होना चाहिए।

    वे अपने सपने को पूरा करने के लिए सप्ताह में 50 घंटे से भी अधिक समय बच्चों को पढ़ाने में देते हैं।

    बयान

    पढ़ने वाले छात्रों का है ये कहना

    7वीं में पढ़ाई करने वाले 14 साल के सूरज ने 2015 में नियमित रूप से यहां आना शुरू किया था। उनके माता-पिता दोनों दिहाड़ी मजदूर हैं।

    सूरज का कहना है कि वह किसी दूसरे स्कूल में पढता है, लेकिन उसको और उसके दोस्तों को यहां आना पसंद है, क्योंकि यहां उन्हें पढ़ाई में मदद मिलती है।

    सूरज का कहना है कि जब उसे स्कूल में कुछ समझ नहीं आता था तो वो यहां आकर पूछता था।

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