ताइवान चुनाव: चीन को बड़ा झटका, सत्तारूढ़ DPP के उम्मीदवार लाई चिंग-ते को मिली जीत
ताइवान के राष्ट्रपति चुनावों में सत्तारूढ़ डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (DPP) के उम्मीदवार लाई चिंग-ते को जीत मिली है और वे देश के अगले राष्ट्रपति बनने जा रहे हैं। मुख्य विपक्षी पार्टी कुओमितांग के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार होउ यू-इह ने चुनाव में हार मान ली है। चुनावी नतीजों को चीन के लिए झटका माना जा रहा है, क्योंकि DPP ताइवान की अलग पहचान की वकालत करती है और चीन के दावों को खारिज करती है।
विपक्षी उम्मीदवार ने हार स्वीकार की
फिलहाल, आधिकारिक तौर पर चुनावी नतीजों के आंकड़े जारी नहीं किए गए हैं। हालांकि, लाई मुख्य प्रतिद्वंद्वी उम्मीदवार होउ से करीब 10 लाख वोटों से आगे चल रहे हैं। इसके बाद होउ ने हार स्वीकार कर ली है। ताइवान में ये पहली बार है, जब कोई पार्टी लगातार तीसरी बार सरकार बनाने जा रही है। हालांकि, वर्तमान राष्ट्रपति साई इंग वेन को इस्तीफा देना होगा, क्योंकि एक व्यक्ति 2 बार से ज्यादा राष्ट्रपति नहीं बन सकता।
चीन से बढ़ सकता है तनाव
चुनावों में लाई की जीत के बाद आशंका है कि चीन और ताइवान के बीच तनाव और बढ़ सकता है। चीन ने कई बार विलियम लाई को 'खतरनाक अलगाववादी' बताते हुए उनकी निंदा की है और बातचीत के आह्वान का नकारा है। हालांकि, लाई का कहना है कि वे शांति बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध हैं। चीन ने इन चुनावों को 'युद्ध और शांति के बीच एक विकल्प' बताया था।
चुनावी मैदान में कौन-कौन था?
चुनाव में 3 मुख्य पार्टियां मैदान में थीं। सत्तारूढ़ DPP, कुओमितांग (KMT) और ताइवान पीपुल्स पार्टी (TPP)। DPP की ओर से लाई, KMT की ओर से न्यू ताइपे शहर के मेयर होउ यू-इह और TPP की ओर से ताइपे के पूर्व मेयर को वेन-जे राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार थे। आज (13 जनवरी) को ही स्थानीय समयानुसार सुबह 8 से शाम 4 बजे तक मतदान हुआ था और वोटों की गिनती भी शुरू हो गई थी।
कौन हैं लाई?
लाई एक डॉक्टर हैं, जो ताइवान के उपराष्ट्रपति भी हैं। वे ताइवान की स्वतंत्रता पर अपने मुखर विचारों के लिए जाने जाते हैं। वे ताइवान पहचान के समर्थक हैं और चीन के साथ एकीकरण के मुखर विरोधी रहे हैं। लाई को अमेरिका के खेमे का माना जाता है। इसी वजह से चीन भी उन्हें 'कट्टर अलगाववादी' कहता है। लाई का कहना है कि केवल ताइवान के लोग ही अपना भविष्य तय कर सकते हैं।
क्या है चीन-ताइवान के बीच विवाद?
दरअसल, दूसरे विश्वयुद्ध के बाद चीन पर कम्युनिस्ट पार्टी का कब्जा हो गया और सत्ताधारी नेशनलिस्ट पार्टी (कुओमिंतांग) की हार हुई। इसके बाद कुओमिंताग के नेता और समर्थक ताइवान चले गए। इसी कारण चीन ताइवान को खुद से अलग हुआ एक प्रांत मानता है, वहीं ताइवान खुद को स्वतंत्र देश मानता है। दोनों देशों के बीच अक्सर युद्ध जैसी स्थिति बनती रहती है। ताइवान को केवल 13 देश संप्रभु राष्ट्र का दर्जा देते हैं।