इस सदी के अंत तक घटने लगेगी वैश्विक आबादी, 97 प्रतिशत देशों में आएगी गिरावट- अध्ययन
क्या है खबर?
एक अहम अध्ययन में सामने आया है कि इस सदी के अंत तक वैश्विक आबादी घटने लगेगी।
अमेरिका के इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ मेट्रिक्स एंड इवैल्यूएशन (IHME) द्वारा किए गए अध्ययन में ये बात सामने आई है।
अध्ययन में प्रजनन दर में कमी के कारण वैश्विक आबादी में गिरावट आने की बात कही गई है।
अध्ययन के अनुसार, अभी भी लगभग आधे देशों में प्रजनन दर मौजूदा जनसंख्या को बनाए रखने के लिए जरूरी स्तर से नीचे है।
आंकड़े
अध्ययन में क्या आंकड़े सामने आए?
द लैंसेट में प्रकाशित इस अध्ययन के अनुसार, 2021 में प्रजनन दर (प्रति महिला बच्चों का जन्म) 1950 में 5 के मुकाबले 2.2 थी। इसका मतलब यहां 1950 में एक महिला 5 बच्चों को जन्म दे रही थी, वहीं 2021 में ये आंकड़ा गिरकर 2.2 बच्चे हो गया।
2021 में 204 में से 110 देश (54 प्रतिशत) ऐसे थे, जहां प्रजनन दर मौजूदा आबादी बनाए रखने के लिए जरूरी 2.1 बच्चे के आंकड़े से कम थी।
आंकड़े
2100 तक 97 प्रतिशत देशों में घट रही होगी आबादी
अध्ययन के मुताबिक, 2050 तक 155 देश (76 प्रतिशत) ऐसे होंगे, जहां प्रजनन दर मौजूदा आबादी बनाए रखने के लिए जरूरी 2.1 बच्चे के आंकड़े से कम हो जाएगी, यानि आबादी घट रही होगी।
2100 में सदी के अंत तक ये आंकड़ा बढ़कर 198 देश (97 प्रतिशत) हो जाएगा और केवल 6 देश ऐसे होंगे, जहां प्रजनन दर अधिक होगी।
समोआ, सोमालिया, टोंगा, नाइजर, चाड और ताजिकिस्तान वे देश होंगे, जहां सदी के अंत में भी आबादी बढ़ रही होगी।
चलन
विकासशील देशों में बढ़ेगी आबादी, अमीर देशों में घटेगी
अध्ययन के अनुसार, इस सदी में विकासशील देशों में प्रजनन दर और आबादी बढ़ती रहेगी, वहीं अमीर और विकसित देशों में इसमें गिरावट आएगी। सदी के अंत में लगभग तीन-चौथाई (75 प्रतिशत) नए जन्म निम्न और निम्न-मध्यम आय वाले देशों में हो रहे होंगे और लगभग आधे सब-सहारा देशों में होंगे।
अध्ययन के वरिष्ठ लेखक IHME के स्टीन एमिल वोल्सेट ने कहा, "दुनिया को एक साथ कुछ देशों में 'बेबी बूम' और कुछ देशों में 'बेबी बस्ट' से निपटना पड़ेगा।"
चुनौती
मानवता को करना पड़ेगा कई चुनौतियों का सामना
शोधकर्ताओं ने कहा कि आबादी में बदलाव मानवता के लिए 21वीं सदी में नई सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक चुनौतियां और मौके लेकर आएगा।
उन्होंने कहा कि आबादी में बदलाव से निपटने के लिए नई नीतियां बनानी पड़ेंगी और आर्थिक विकास बरकरार रखने के लिए खुले आप्रवास पर निर्भरता अनिवार्य हो जाएगी।
इसके साथ ही प्रजनन दर में गिरावट के कारण अमीर देशों में शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में महिलाओं के लिए अधिक मौके बनेंगे।