न्यूजीलैंड 18 महीने में दूसरी बार मंदी की चपेट में आया, अर्थव्यवस्था 0.1 प्रतिशत सिकुड़ी
क्या है खबर?
न्यूजीलैंड की अर्थव्यवस्था बीते 18 महीनों में दूसरी बार आर्थिक मंदी की चपेट में आ गई है।
ताजा आंकड़ों के मुताबिक, बीती तिमाही में न्यूजीलैंड के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में 0.1 प्रतिशत की गिरावट आई। इससे पहले की तिमाही में भी GDP 0.3 प्रतिशत गिरी थी।
लगातार 2 तिमाहियों में गिरावट मंदी मानी जाती है।
ये आंकड़े अर्थशास्त्रियों के अनुमान से विपरीत हैं, जिन्होंने 0.1 प्रतिशत की वृद्धि की उम्मीद लगाई थी।
आंकड़े
क्या कहते हैं आंकड़े?
स्टेट्स NZ के मुताबिक, न्यूजीलैंड की GDP ने पिछली 5 में से 4 तिमाहियों में नकारात्मक वृद्धि दर्ज की है और केवल 0.6 प्रतिशत की दर से वार्षिक वृद्धि की है।
दिसंबर तिमाही में प्रति व्यक्ति के हिसाब से अर्थव्यवस्था में 0.7 प्रतिशत की गिरावट आई।
इसके अलावा खुदरा व्यापार और आवास में 0.9 प्रतिशत और थोक व्यापार में 1.8 प्रतिशत की गिरावट आई है। 16 में से 8 उद्योगों में वृद्धि देखी गई है।
वजह
न्यूजीलैंड में क्यों आई मंदी?
स्टेट्स NZ के प्रवक्ता रुवानी रत्नायके ने कहा, "इस तिमाही में गिरावट का सबसे बड़ा कारण थोक व्यापार में गिरावट रहा, जिसके चलते किराना, शराब, मशीनरी और उपकरण की बिक्री में गिरावट आई।"
हालांकि, विशेषज्ञ पहले से ही मंदी की आशंका जता रहे थे। न्यूजीलैंड के केंद्रीय बैंक ने अर्थव्यवस्था के सपाट (0 प्रतिशत) रहने की संभावना जताई थी।
मंत्री डेविड सेमुर ने कहा, "मंदी कोई नई खबर नहीं हैं क्योंकि हम पहले से ही इसमें रह रहे हैं।"
मंदी
पिछले साल भी न्यूजीलैंड में आई थी मंदी
पिछले साल भी न्यूजीलैंड मंदी की चपेट में आया था। 2022 के अंत में 0.7 प्रतिशत की गिरावट के बाद 2023 की पहली तिमाही में अर्थव्यवस्था 0.1 प्रतिशत तक गिर गई थी।
तब न्यूजीलैंड के वित्त मंत्री ग्रांट रॉबर्टसन ने कहा था, "मंदी कोई आश्चर्यजनक नहीं है क्योंकि 2023 एक चुनौतीपूर्ण साल है, जिसमें वैश्विक विकास धीमा है और मुद्रास्फीति लंबे समय से अपने उच्चतम स्तर पर बनी हुई है।"
2020 में भी न्यूजीलैंड में मंदी आई थी।
प्लस
न्यूजबाइट्स प्लस
कोई भी देश तकनीकी तौर पर आर्थिक मंदी की चपेट में आया हुआ तब माना जाता है, जब GDP लगातार 2 तिमाहियों में सिकुड़ जाती है।
GDP की रफ्तार के अलावा भी कई और संकेतक होते हैं, जिनसे मंदी का पता लगाया जाता है। इनमें उत्पादन, खुदरा बिक्री, आय और रोजगार जैसे तत्व भी शामिल हैं।
आसान भाषा में समझें तो जब लंबे समय तक अर्थव्यवस्था की रफ्तार धीमी पड़ जाती है तो इसे आर्थिक मंदी कहा जाता है।