12-15 साल के बच्चों पर 100 प्रतिशत प्रभावी पाई गई फाइजर की कोरोना वायरस वैक्सीन
क्या है खबर?
फाइजर और बायोएनटेक की कोरोना वायरस वैक्सीन को 12 से 15 साल के बच्चों पर पूरी तरह सुरक्षित और 100 प्रतिशत प्रभावी पाया गया है। अमेरिका में हुए एक ट्रायल में ये नतीजे सामने आए हैं।
इन नतीजों के बाद फाइजर जल्द ही अमेरिकी फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (FDA) के सामने आपातकालीन उपयोग की मंजूरी के लिए आवेदन कर सकता है। अभी 16 साल से अधिक उम्र के लोगों पर इसका उपयोग किया जा रहा है।
ट्रायल
2,260 बच्चों पर किया गया था ट्रायल
फाइजर के बयान के अनुसार, उसने अमेरिका में 12 से 15 साल के 2,260 बच्चों पर अपनी वैक्सीन का ट्रायल किया था।
इनमें जिन भी बच्चों को वैक्सीन की खुराक दी गई थी, उनमें से किसी को भी संक्रमित नहीं पाया गया। इसके विपरीत जिन्हें प्लेसिबो दिया गया था, उनमें से 18 बच्चों को संक्रमित पाया गया।
कंपनी के अनुसार, बच्चों में उच्च मात्रा में और युवाओं के मुकाबले अधिक एंटीबॉडीज देखने को मिलीं।
साइड इफेक्ट
बच्चों में देखे गए बड़ो जैसी ही साइड इफेक्ट्स
फाइजर के अनुसार, ट्रायल के दौरान बच्चों में बड़ो जैसे ही साइफ इफेक्ट्स देखने को मिले। दर्द, बुखार, ठंड और थकान मुख्य लक्षण रहे। कंपनी ट्रायल में शामिल रहे बच्चों पर अगले दो साल तक नजर रखेगी ताकि दीर्घकालिक सुरक्षा और प्रभावशीलता के बारे में बता लगाया जा सके।
फाइजर के CEO एल्बर्ट बोरली ने एक बयान में कहा कि उन्हें अगले स्कूली साल की शुरूआत से पहले इस आयु वर्ग के बच्चों का वैक्सीनेेशन शुरू करने की उम्मीद है।
अन्य ट्रायल
बड़ों पर 95 प्रतिशत प्रभावी पाई गई थी वैक्सीन
बता दें कि पिछले साल 16 साल से अधिक उम्र के लोगों पर हुए ट्रायल में फाइजर की इस वैक्सीन को 95 प्रतिशत प्रभावी पाया गया था। वैक्सीन सुरक्षा मानकों पर भी खरी उतरी थी।
विश्लेषण में यह हर उम्र के लोगों के लिए कारगर पाई गई थी। किसी भी वॉलेंटियर में कोई गंभीर साइट इफेक्ट भी नहीं देखने को मिला था।
इजरायल में असल दुनिया की परिस्थितियों में भी इसे 95 प्रतिशत प्रभावी पाया गया था।
तकनीक
नई mRNA तकनीक के जरिए बनाई गई है फाइजर की वैक्सीन
फाइजर की यह कोरोना वैक्सीन एक नई तकनीक पर आधारित है और इसे mRNA तकनीक के जरिए बनाया गया है।
इस तकनीक में वायरस के जिनोम का प्रयोग कर कृत्रिम RNA बनाया जाता है जो सेल्स में जाकर उन्हें कोरोना वायरस की स्पाइक प्रोटीन बनाने का निर्देश देता है।
इन स्पाइक प्रोटीन की पहचान कर सेल्स कोरोना की एंटीबॉडीज बनाने लग जाती हैं। मॉडर्न की वैक्सीन भी इसी तकनीक पर काम करती है।
डाटा
यह है फाइजर वैक्सीन की सबसे बड़ी खामी
हालांकि इस वैक्सीन को माइनस 70 डिग्री तापमान पर स्टोर करने और इसके लिए अलग से कोल्ड चैन की जरूरत है और इसी कारण दुनिया के ज्यादातर देशों में इसका प्रयोग लगभग असंभव है। अभी मुख्यतौर पर पश्चिमी देशों में इसका उपयोग हो रहा है।