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    नेपाल: कम्युनिस्ट पार्टी में रार के बीच प्रधानमंत्री ओली ने की संसद भंग करने की सिफारिश

    नेपाल: कम्युनिस्ट पार्टी में रार के बीच प्रधानमंत्री ओली ने की संसद भंग करने की सिफारिश
    लेखन मुकुल तोमर
    Dec 20, 2020, 01:28 pm 1 मिनट में पढ़ें
    नेपाल: कम्युनिस्ट पार्टी में रार के बीच प्रधानमंत्री ओली ने की संसद भंग करने की सिफारिश

    सियासी संकट से जूझ रहे नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने देश की संसद को भंग करने की सिफारिश की है। आज सुबह कैबिनेट की एक आपातकालीन बैठक में ये सिफारिश भेजने को फैसला लिया गया और इसे राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी के पास भेज दिया गया है। ओली की तरफ से ये सिफारिश ऐसे समय पर की गई है जब वह एक अध्यादेश को लेकर देश की राजनीति में घिरे हुए हैं।

    क्या है अध्यादेश का पूरा मामला?

    प्रधानमंत्री ओली संवैधानिक परिषद अधिनियम में संशोधन करने वाला एक अध्यादेश लेकर आए है, जिसे राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद मंगलवार को जारी कर दिया गया था। इस अध्यादेश में प्रधानमंत्री को कोरम पूर्ण किए बिना तीन सदस्यों की मौजूदगी में ही बैठक करने और निर्णय लेने का अधिकार दिया गया है। देश की सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी के नेताओं ने इस अध्यादेश का जमकर विरोध किया था और ओली पर इसे वापस लेने का दबाव बन रहा था।

    आज बुलाई बैठक में थी अध्यादेश वापस लिए जाने की उम्मीद, उल्टा निकला मामला

    इस दबाव के बीच जब आज सुबह ओली ने कैबिनेट की आपात बैठक बुलाई तो सबको लगा कि इसमें वह अध्यादेश को वापस लेने या इसमें बदलाव करने पर फैसला ले सकते हैं।लेकिन उन्होंने इसके उलट संसद को भंग करने की सिफारिश ही कर दी। कम्युनिस्ट पार्टी के ज्यादातर नेताओं ने ओली के इस कदम की आलोचना की है और इसे अलोकतांत्रिक और देश को पीछे ले जाने वाला कदम बताया है।

    पूर्व प्रधानमंत्री बोले- संसद भंग करने की सिफारिश संविधान के खिलाफ

    कम्युनिस्ट पार्टी के प्रवक्ता नारायणजी श्रेष्ठ ने मामले पर बयान जारी करते हुए कहा, "यह जल्दबाजी में लिया गया निर्णय है क्योंकि आज सुबह कैबिनेट की बैठक में सभी मंत्री उपस्थित नहीं थे। यह लोकतांत्रिक मानदंडों के खिलाफ है और राष्ट्र को पीछे ले जाएगा। इसे लागू नहीं किया जा सकता।" वहीं पूर्व प्रधानमंत्री माधव कुमार नेपाल ने कहा है कि संसद भंग करने की सिफारिश संविधान के खिलाफ है और इसे तुरंत वापस लिया जाना चाहिए।

    अब आगे क्या?

    अगर राष्ट्रपति कैबिनेट की संसद भंग करने की सिफारिश मान लेते हैं तो इससे नेपाल में अगले आम चुनाव का रास्ता खुल सकता है। हालांकि ओली के खुद अल्पमत में होने के कारण इस मुद्दे का कानूनी पक्ष अभी बहुत स्पष्ट नहीं है।

    दो धड़ों में बंटी हुई है कम्युनिस्ट पार्टी

    बता दें कि नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी पिछले काफी समय से दो धड़ों में बंटी हुई है और ओली और वरिष्ठ नेता पुष्प कमल दहल प्रचंड के बीच तनाव चल रहा है। दोनों के बीच इस तनाव को कम करने के लिए बातचीत भी हुई है, लेकिन इसका खास असर नहीं पड़ा है। कम्युनिस्ट पार्टी कई बार ओली के बहुमत खोने की बात कह चुकी है और उन पर प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देने का दबाव है।

    ओली पर राजतंत्रवादियों का समर्थन करने का भी आरोप

    ओली पर राजतंत्रवादियों का खुला समर्थन करने के आरोप भी लगते रहे हैं। देश की मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस का आरोप है कि ओली राजशाही के समर्थन में देश के विभिन्न हिस्सों में हो रही रैलियों का मौन समर्थन कर रहे हैं। इन रैलियों में नेपाल में संवैधानिक लोकतंत्र बहाल करने और उसे फिर से हिंदू राष्ट्र घोषित करने की मांग की जा रही है। 2006 में राजशाही खत्म होने के बाद नेपाल 2008 में धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बना था।

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