म्यांमार: सैन्य सरकार ने आंग सान सू की को माफ किया, लेकिन नजरबंदी में ही रहेंगी
म्यांमार में लंबे समय से जारी गतिरोध के बीच एक बड़ी खबर सामने आई है। स्थानीय मीडिया के मुताबिक, म्यांमार की नेता आंग सान सू की को माफी दे दी गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि म्यांमार में सत्तारूढ़ सैन्य शासन जुंटा ने जेल में बंद नेता सू की को क्षमादान दे दिया है। बता दें कि फरवरी 2021 में हुई सैन्य तख्तापलट के बाद से ही सू की जेल में बंद हैं।
माफी के बावजूद नजरबंद रहेंगी सू की
सू की पर 19 मामले चल रहे हैं। इनमें से 5 में उन्हें माफी दी गई है। हालांकि, वे अभी भी नजरबंद रखी जाएंगी। खबर है कि उन्हें पिछले हफ्ते ही जेल से निकालकर राजधानी नेपीडॉ में नजरबंद कर दिया गया है। सू की के साथ ही 7,000 अन्य कैदियों की सजा को भी माफ किया गया है। इनमें लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित राष्ट्रपति विन मिंट का नाम भी शामिल हैं।
सू की को हुई है 33 साल की सजा
78 वर्षीय सू की को अलग-अलग मामलों में 33 साल की सजा सुनाई गई है। इनमें जनता को सेना के खिलाफ भड़काने, चुनावों में धांधली करने और भ्रष्टाचार जैसे आरोप शामिल हैं। हालांकि, सू की इन सभी आरोपों को नकारती रही हैं। फिलहाल उन्हें 5 मामलों में माफी मिली है, लेकिन 14 मामलों में वे अभी भीआरोपी हैं। उनकी पार्टी के कई नेता जेल में हैं और कई विदेश भाग गए हैं।
क्या है पूरा मामला?
म्यांमार में 2020 में हुए चुनाव में सू की की पार्टी ने भारी जीत हासिल की थी। हालांकि, साल 2021 में सेना ने तख्तापलट करते हुए सू की को हिरासत में ले लिया था। सेना ने आरोप लगाए थे कि उन्होंने धांधली कर चुनाव जीता है। इसके बाद पूरे देश में एक साल के लिए आपातकाल लागू कर दिया था। कई बार बढ़ाने के बाद आपातकाल 31 जुलाई को खत्म हो रहा था, जिसे फिर बढ़ा दिया गया है।
आगे बढ़ाए गए चुनाव
सेना ने देश में आपातकाल बढ़ाने के साथ ही चुनावों को भी टाल दिया है। पहले सेना ने अगस्त, 2023 में चुनाव करवाने की बात कही थी, जिसे अब आगे बढ़ा दिया गया है। सैन्य सरकार के प्रवक्ता ने कहा, "स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए और बिना किसी डर के मतदान कराने के लिए सुरक्षा व्यवस्था की अभी भी आवश्यकता है। इसलिए आपातकाल की अवधि को बढ़ाना आवश्यक है।"
कौन हैं सू की?
सू की म्यांमार की स्वतंत्रता के नायक रहे आंग सान की बेटी हैं। उन्हें देश में लोकतंत्र समर्थक प्रयासों के लिए जाना जाता है। वे 1989 से 2010 तक नजरबंदी में रही हैं। 2011 में देश से सैन्य शासन हटने के बाद हुए चुनावों में उनकी पार्टी ने बड़ी जीत हासिल की थी। 1991 में उन्हें लोकतंत्र समर्थक प्रयासों के लिए नोबेल शांति पुरस्कार दिया गया था। हालांकि, रोहिंग्या मुस्लिमों के प्रति व्यव्हार को लेकर उनकी आलोचना भी होती है।