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कम से कम पांच महीने के लिए रह सकती है कोरोना वायरस के खिलाफ इम्युनिटी- स्टडी

कम से कम पांच महीने के लिए रह सकती है कोरोना वायरस के खिलाफ इम्युनिटी- स्टडी

Oct 14, 2020
03:19 pm

क्या है खबर?

कोविड-19 बीमारी करने वाले SARS-CoV-2 कोरोना वायरस के खिलाफ इम्युनिटी कम से कम पांच महीने बरकरार रहती है। अमेरिका में भारतीय मूल के एक वैज्ञानिक के नेतृत्व में हुई स्टडी में ये बात सामने आई है। इस स्टडी में कोरोना वायरस से संक्रमित हो चुके हजारों लोगों के खून में एंटीबॉडीज की मौजूदगी की जांच की गई, जिसमें संक्रमण के पांच से सात महीने बाद भी खून में उच्च गुणवत्ता की एंटीबॉडीज पैदा होने की बात सामने आई।

स्टडी

कोरोना वायरस से संक्रमित हो चुके लगभग 6,000 लोगों पर की गई स्टडी

एसोसिएट प्रोफेसर डॉ दीप्ता भट्टाचार्य के नेतृत्व में हुई यूनिवर्सिटी ऑफ एरिजोना की इस स्टडी में कोरोना वायरस से संक्रमित हो चुके लगभग 6,000 लोगों के खून में इसकी एंटीबॉडीज के उत्पादन का अध्ययन किया गया था। भट्टाचार्य ने इसके नतीजों की जानकारी देते हुए कहा, "हमें स्पष्ट रूप से देखा कि SARS-CoV-2 से संक्रमण के पांच से सात महीने बाद भी उच्च गुणवत्ता की एंटीबॉडीज का उत्पादन हो रहा था।"

बयान

कम से कम पांच महीने रहती है इम्युनिटी- भट्टाचार्य

भट्टाचार्य ने कहा, "कोविड-19 के खिलाफ इम्युनिटी बरकरार नहीं रहने के प्रति कई चिंताएं जाहिर की गई हैं। हमने इस स्टडी का उपयोग इस सवाल का जबाव जानने के लिए किया और पाया कि इम्युनिटी कम से कम पांच महीने के लिए स्थिर रहती है।"

प्रक्रिया

शोधकर्ताओं ने बताया कैसे पैदा होती हैं एंटीबॉडीज

इम्युनिटी का विज्ञान समझाते हुए शोधकर्ताओं ने बताया कि जब कोई वायरस सेल्स को संक्रमित करता है तो इम्युन सिस्टम सबसे पहले अल्पकालिक प्लाज्मा सेल्स को काम पर लगाता है जो वायरस से लड़ने के लिए एंटीबॉडीज पैदा करती हैं। ये एंटीबॉडीज संक्रमण के 14 दिन के अंदर ब्लड टेस्ट में दिखने लग जाती हैं। दूसरे चरण में इम्युन सिस्टम दीर्घकालिक प्लाज्मा सेल्स बनाता है जो लंबे समय तक इम्युनिटी पैदा करने वाली उच्च गुणवत्ता की एंटीबॉडीज बनाती हैं।

अन्य स्टडीज

अल्पकालिक प्लाज्मा सेल्स पर आधारित थीं पुरानी स्टडीज- भट्टाचार्य

इससे पहले हुईं स्टडीज में कोरोना की एंटीबॉडीज तीन महीने के अंदर गायब होने की बात सामने आई थी और इससे कोविड के खिलाफ इम्युनिटी चंद महीने ही टिकने की आशंका पैदा हुई थी। हालांकि भट्टाचार्य का मानना है कि ये स्टडीज अल्पकालिक प्लाज्मा सेल्स पर आधारित थीं और इनमें दीर्षकालिक प्लाज्मा सेल्स और उनसे पैदा होने वाली उच्च गुणवत्ता की एंटीबॉडीज पर ध्यान नहीं दिया गया था। इसलिए इनमें कम समय में एंटीबॉडीज गायब होने की बात सामने आई।

अनुमान

शोधकर्ताओं को उम्मीद- कम से कम दो साल टिकेगी SARS-CoV-2 के खिलाफ इम्युनिटी

भट्टाचार्य और अन्य शोधकर्ताओं का ये भी मानना है कि भले ही खून में कोरोना वायरस की एंटीबॉडीज न्यूनतम पांच से सात महीने तक मिली हों, लेकिन इसके संक्रमण से इम्युनिटी अधिक लंबे समय तक टिक सकती है। उन्होंने कहा कि SARS-CoV-2 से सबसे अधिक समानता वाले SARS कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों में संक्रमण के 17 साल भी इम्युनिटी देखने को मिल रही है और SARS-CoV-2 के खिलाफ इम्युनिटी भी न्यूनतम दो साल के लिए टिक सकती है।

अहमियत

वैक्सीनों के नजरिए से बेहद अहम है इम्युनिटी का सवाल

बता दें कि कोरोना वायरस के खिलाफ इम्युनिटी कितने लंबे समय तक टिकती है, ये सवाल वैक्सीनों के लिए सबसे अहम है। इम्युनिटी जितने लंबे समय तक रहेगी, वैक्सीन की मदद से इस महामारी पर काबू पाना उतना ही आसान होगा। वहीं अगर इसके खिलाफ इम्युनिटी चंद महीने के लिए ही रहती है तो फिर वैक्सीनों की मदद से भी इस महामारी पर पूरी तरह से काबू पाने में मुश्किलें आएंगी।