अजब-गजब परंपरा: इस गाँव में दूल्हा नहीं बल्कि उसकी बहन लेती है दुल्हन के साथ फेरे
भारत एक बहुत बड़ा और सांस्कृतिक विविधता से भरा हुआ देश है। भारत के लगभग हर क्षेत्र की अपनी एक अलग ख़ासियत और परंपरा है। हालाँकि, कुछ ऐसी परंपराएँ भी हैं, जिनके बारे में जानकर लोगों को बहुत हैरानी होती है। आज हम आपको एक ऐसी ही शादी की अनोखी परंपरा के बारे में बताने जा रहे हैं। जी हाँ, इस परंपरा के अंतर्गत शादी के दौरान दूल्हा नहीं बल्कि उसकी बहन दुल्हन के साथ सात फेरे लेती हैं।
घर पर ही रहता है दूल्हा
जानकारी के अनुसार, यह परंपरा गुजरात के आदिवासी इलाकों की है। यहाँ दूल्हे को अपनी बारात में जाने की अनुमति नहीं होती है और वह घर पर ही रहता है। उसकी जगह उसकी अविवाहित बहन बारात लेकर जाती है और दूल्हे के रूप में सारी रस्में अदा करती है। अगर दूल्हे की कोई बहन नहीं है, तो उसकी जगह परिवार की कोई कुँवारी कन्या दूल्हे की तरफ़ से जाती है और वही दुल्हन के साथ सात फेरे भी लेती है।
तीन गाँवों में ही है यह अनोखी परंपरा
सूरखेड़ा गाँव के कांजीभाई राठवा कहते हैं, "आमतौर पर सारी पारंपरिक रस्में जो दूल्हा निभाता है, वह उसकी बहन करती है। यहाँ तक कि मंगल फेरे भी बहन ही लेती है।" उन्होंने आगे बताया, "इस अनोखी परंपरा का पालन यहाँ के तीन गाँवों में ही होता है। ऐसा माना जाता है कि अगर इस परंपरा का पालन न करें तो कुछ न कुछ अशुभ ज़रूर हो जाता है।" शायद इसी डर की वजह से लोग परंपरा का पालन करते हैं।
परंपरा को तोड़ने वालों का हुआ नुकसान
वहीं गाँव के मुखिया रामसिंहभाई राठवा का कहना है कि जब भी किसी ने इस परंपरा को अनदेखा करने की कोशिश की है, उनका कुछ न कुछ नुकसान ज़रूर हुआ है। उनके अनुसार, कई बार लोगों ने इस परंपरा को तोड़ने की कोशिश की और देखा गया कि या तो जोड़ों की शादी टूट जाती है या उनका वैवाहिक जीवन सुखद नहीं रहता है। कई बार कुछ और समस्याएँ देखने को भी मिलती हैं।
ग्राम देवता को सम्मान देने के लिए घर पर रहता है दूल्हा
इस अनोखी परंपरा के बारे में पंडितों का कहना है कि यह परंपरा आदिवासी संस्कृति की पहचान है। यह एक लोककथा का हिस्सा है, जिसका पालन अनंतकाल से किया जा रहा है। इस कथा के अनुसार, तीन गाँवों सूरखेड़ा, सानदा और अंबल के ग्राम देवता कुँवारे हैं। इसलिए उन्हें सम्मान देने के लिए दूल्हा घर पर ही रहता है। ऐसा माना जाता है कि ऐसा करने से दूल्हा सुरक्षित रहता है, जबकि न करने पर विनाश होता है।