अंतरिक्ष में क्या होता है पल्सर? जानिए क्यों है यह ब्रह्मांड में महत्वपूर्ण
अंतरिक्ष के क्षेत्र में वैज्ञानिक बीते कई दशकों से लगातार नई-नई खोज कर रहे हैं। 57 साल पहले यानी 28 नवंबर, 1967 को ब्रिटिश खगोलशास्त्री जोसलीन बेल बर्नेल और उनके प्रोफेसर एंटनी हेविश ने अंतरिक्ष में मौजूद पल्सर की खोज की थी। कैंब्रिज विश्वविद्यालय में स्नाकोत्तर की पढ़ाई करने वाले बर्नल द्वारा खोजे गए पहले पल्सर को उस समय 'CP 1919' नाम दिया गया, जिसे बाद में 'PSR B1919+21' कहा गया। आइए जानें पल्सर होता क्या है।
क्या होता है पल्सर?
पल्सर एक प्रकार का न्यूट्रॉन तारा है, जो किसी विशाल तारे के सुपरनोवा विस्फोट के बाद बचा हुआ घना अवशेष होता है। यह अपने चुंबकीय ध्रुवों से तीव्र विद्युत चुंबकीय विकिरण (रेडियो तरंगें, एक्स-रे, या गामा किरणें) उत्सर्जित करता है। पल्सर अपने अक्ष पर बहुत तेजी से घूमता है और जब उसका विकिरण हमारी दृष्टि रेखा से गुजरता है, तो यह हमें एक नियमित पल्स या संकेत के रूप में दिखाई देता है, जिससे इसे 'पल्सर' कहा जाता है।
ब्रह्मांड में पल्सर का महत्व
पल्सर खगोल विज्ञान में बहुत उपयोगी हैं। ये बहुत सटीक समय पर विकिरण भेजते हैं, जिससे इन्हें ब्रह्मांडीय घड़ी की तरह इस्तेमाल किया जा सकता है। इनसे आइंस्टीन के सापेक्षता सिद्धांत को समझने में मदद मिली है, खासकर जब 2 पल्सर साथ घूमते हैं। गुरुत्वाकर्षण तरंगों की खोज में भी इनका बड़ा योगदान है। अंतरिक्ष यात्री इन्हें नेविगेशन के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं। साथ ही, पल्सर से सुपरनोवा और तारों के जीवनचक्र को समझने में मदद मिलती है।
अब तक खोजे गए हैं इतने पल्सर
2024 तक वैज्ञानिकों ने 3,000 से अधिक पल्सरों की पहचान की है। ये मिल्की वे आकाशगंगा और इसके आसपास की अन्य आकाशगंगाओं में स्थित हैं। ब्रह्मांड में खोजे गए पहले CP 1919 की पल्स दर लगभग 1.337 सेकंड थी। शुरुआती दिनों में इसे 'लिटिल ग्रीन मैन' यानी किसी एलियंस की मौजूदगी का संकेत समझा गया था, लेकिन बाद में वैज्ञानिकों को अध्ययन से पता चला कि यह एक खगोलीय घटना है।
कैसे होती इनकी खोज?
पल्सर की खोज मुख्य रूप से रेडियो दूरबीनों जैसे पार्क्स रेडियो टेलीस्कोप और नासा के चंद्रा एक्स-रे टेलीस्कोप से होती है। ये उपकरण पल्सर से आने वाली रेडियो और एक्स-रे विकिरण का पता लगाते हैं। पल्सर का द्रव्यमान सूर्य जितना होता है, लेकिन आकार सिर्फ 20-30 किलोमीटर तक होता है। ये प्रति सेकंड सैकड़ों बार घूमते हैं। इनका विकिरण तेज घुमाव और शक्तिशाली चुंबकीय क्षेत्र से आता है। हालांकि, समय के साथ इनकी ऊर्जा धीरे-धीरे घट जाती है।