राजस्थान है कला का राज्य, यहां की संस्कृति को दर्शाती हैं ये 5 प्रमुख कलाएं
क्या है खबर?
राजस्थान अपनी समृद्ध संस्कृति और ऐतिहासिक धरोहरों के लिए प्रसिद्ध प्रदेश है। यहां के संगमरमर शहर, जैसे उदयपुर और किशनगढ़, अपनी अद्भुत वास्तुकला और प्राकृतिक सुंदरता के लिए जाने जाते हैं।
राजस्थान के किलों और मंदिरों को देखकर पता लगता है कि इस राज्य की असल पहचान यहां की कला से होती है।
मीनाकारी जेवर बनाने से लेकर पिछवाई चित्रकला तक, राजस्थान की ये 5 आर्ट फॉर्म पूरी दुनिया में मशहूर हैं और इस राज्य की संस्कृति को दर्शाती हैं।
#1
पिछवाई चित्रकला
पिछवाई चित्रकला राजस्थान की सबसे मशहूर और चर्चित कला है, जिसे नाथद्वारा शैली भी कहा जाता है।
इसकी शुरुआत नाथद्वारा में की गई थी और इसके जरिए भगवान कृष्ण के जीवन, लीलाओं और धार्मिक कथाओं को दर्शाया जाता है।
आपको राजस्थान के मंदिरों की दीवारों पर ये चित्रकला देखने को मिल जाएगी। चितारा जाति के लोगों ने यह कला तब शुरू की थी जब 1672 ईस्वी में श्रीनाथजी मंदिर का निर्माण हुआ था।
#2
फड़ चित्रकला
राजस्थान की सबसे प्रसिद्ध लोककला है फड़ चित्रकला, जिसे ज्यादातर कपड़ों पर पेंट किया जाता है। इस कला के जरिए स्थानीय देवी-देवताओं, राजाओं और नायकों के जीवन की कथाएं व्यक्त की जाती हैं।
पेंट किए गए चित्रों की कहानी भोपा नामक स्थानीय पुजारी गाकर सुनाते हैं। यह कला मुख्य रूप से राजस्थान के भीलवाड़ा जिले के जोशी परिवार द्वारा की जाती है।
यह कला, संगीत, साहित्य और लोकधर्म का एक अनूठा मिश्रण है।
#3
मीनाकारी का काम
मीनाकारी की शुरुआत ईरान में हुई थी, लेकिन कुछ समय बाद यह भारत के राजस्थान की पहचान बन गई।
यह एक प्राचीन कला है, जिसमें जेवरों, पत्थरों या कपड़ों पर रंगीन तामचीनी से सुंदर डिजाइन बनाए जाते हैं।
मीनाकारी का इस्तेमाल खास तौर से जेवर, सजवाट का सामान और कपड़े बनाने के लिए किया जाता है। जयपुर को इस कला का गड माना जाता है और इसके रंग खुला व पंचरंगी जैसे कई प्रकार भी होते हैं।
#4
मोलेला कला
राजस्थान के राजसमंद जिले का मोलेला गांव अपनी टेराकोटा कला के लिए जाना जाता है, जिसे मोलेला कला कहते हैं।
यहां के प्रतिभाशाली लोग मिट्टी के जरिए देवी-देवताओं की मूर्तियां, पट्टिकाएं, बर्तन, कलश, और फूलदान आदि बनाते हैं।
ये कलाकार मुख्य रूप से भील जनजातियों और उनके पुजारियों के लिए मूर्तियां बनाते हैं।
मोलेला कला न केवल भगवान की मूर्तियां बनाने के लिए इस्तेमला होती है, बल्कि इसके जरिए जानवरों और लोगों की मूर्तियां भी बनाई जाती हैं।
#5
कावड़ कला
कावड़ कला राजस्थान की पारंपरिक कला है, जो कहानियां सुनाने का एक तरीका है। कावड़ लकड़ी का मंदिर होता है, जिसे कई लोग 'राजस्थानी कहानियों का पिटारा' कहते हैं।
इसपर देवी-देवताओं, संतों और राजाओं के चित्र बने होते हैं, जो उनके जीवन का वर्णन करते हैं। कावड़ के शीर्ष पर सूर्य देवता की छवि बनी होती है और उसके दोनों दरवाजों पर जय और विजय चित्रित होते हैं।
इसके भीतर प्रभु राम, माता सीता और लक्ष्मण की पेंटिंग होती हैं।