भविष्य की झलक प्रदान करने वाली किताबें पसंद हैं तो इन 5 विकल्पों पर करें विचार
डायस्टोपियन साहित्य एक प्रकार की काल्पनिक किताबें है, जो भविष्य की एक झलक प्रदान करता है। यह न केवल हमें संभावित खतरों से आगाह करता है, बल्कि समाजिक और आर्थिक वास्तविकताओं पर भी गहराई से विचार करने के लिए प्रेरित करता है। इसमें लिखी कहानियां हमें सोचने पर मजबूर कर देती हैं और हमारे समाज के अलग-अलग पहलुओं को उजागर करते हैं। यहां हम पांच ऐसी हिंदी डायस्टोपियन किताबों का जिक्र करेंगे, जो आपको सोचने पर मजबूर कर देंगी।
लीला (प्रयाग अकबर)
प्रयाग अकबर का 'लीला' एक ऐसी दुनिया की कहानी है, जहां भारत जाति और वर्ग आधारित विभाजनों में बंट गया है। इस किताब में शालिनी नामक हिंदू महिला की कहानी दिखाई गई है, जो एक मुस्लिम पुरुष से विवाहित होती है। यह किताबें दिखाता है कि कैसे भेदभावपूर्ण समाज हमारे भविष्य को खतरे में डाल सकता है। 'लीला' नेटफ्लिक्स पर भी उपलब्ध है, जिसमें हुमा कुरैशी मुख्य भूमिका में हैं।
हार्वेस्ट (मंजुला पद्मनाभन)
मंजुला पद्मनाभन का 'हार्वेस्ट' 1997 में लिखा गया था और यह 2010 के भविष्य की कल्पना करता है। इसमें भारतीय नागरिक अपने अंगों को उच्चतम बोलीदाता को बेचने के लिए मजबूर होते हैं ताकि वे भोजन और आश्रय सुनिश्चित कर सकें। यह किताब वैश्विक पूंजीवाद के युग में मानव शरीर के व्यावसायीकरण पर तीखी टिप्पणी करता है। इसमें दिखाया गया है कि कैसे आर्थिक असमानता और गरीबी लोगों को अपने शरीर का व्यापार करने पर मजबूर कर सकती है।
एणिमल्स पीपल (इंद्र सिन्हा)
इंद्र सिन्हा का 'एणिमल्स पीपल' भोपाल गैस त्रासदी के संदर्भ में लिखा गया एक डायस्टोपियन किताब है। इसमें खौफपुर नामक काल्पनिक शहर की कहानी बताई गई है, जहां एक लड़का चार पैरों पर चलने के कारण 'एणिमल' कहलाता है। यह किताब न केवल त्रासदी के प्रभावों को दर्शाता है, बल्कि वर्तमान घटनाओं के माध्यम से डायस्टोपियन साहित्य की परिभाषा को भी चुनौती देता है। इसके माध्यम से समाज की वास्तविकताओं और मानवीय संघर्षों को उजागर किया गया है।
ऑल क्वाइट इन विकासपुरी (सरनाथ बनर्जी)
सरनाथ बनर्जी का ग्राफिक किताब 'ऑल क्वाइट इन विकासपुरी' दिल्ली शहर में पानी की कमी की समस्या को उजागर करता है। इसमें गिरीश नामक प्लंबर की कहानी बताई गई है जो नौकरी की तलाश में दिल्ली आता है और पौराणिक नदी सरस्वती की खोज में शामिल हो जाता है। यह किताब शहरी भारत के अपव्ययी तरीकों के दीर्घकालिक परिणामों पर अहम टिप्पणी करता है।
क्लोन (प्रिया एस चाबरिया)
प्रिया एस चाबरिया का 'क्लोन' सेंसरशिप, लिंग, जाति और वर्ग जैसे पहलुओं पर सवाल उठाता है। इसमें समृद्ध दुनिया बनाई गई है, जो पहली बार पढ़ने में ही उतना ही पुरस्कृत होता है जितना दूसरी या तीसरी बार पढ़ने में होगा। इन पांच हिंदी डायस्टोपियन किताबें को पढ़कर आप न केवल भविष्य के बारे में नई नजरिया प्राप्त करेंगे बल्कि वर्तमान सामाजिक और आर्थिक मुद्दों पर भी गहराई से सोच पाएंगे।