हाशिमोटो नाम की बीमारी का सामना कर रहे हैं अर्जुन कपूर, जानिए इसके लक्षण और इलाज
बॉलीवुड अभिनेता अर्जुन कपूर अपनी नई फिल्म 'सिंघम अगेन' के कारण सुर्खियों में बने हुए हैं। इसी बीच उन्होंने अपनी गंभीर बीमारी का खुलासा किया। उन्होंने बताया कि उन्हें अवसाद के साथ-साथ हाशिमोटो नाम की ऑटो-इम्यून बीमारी है, जिस वजह से उनका वजन अचानक से बढ़ जाता है। यह थायरॉइड का ही एक प्रकार है। आइए इस ऑटो-इम्यून बीमारी के कारण, लक्षण, इलाज और बचाव के बारे में विस्तार से जानते हैं।
हाशिमोटो बीमारी क्या है?
थायराइड गले की एक ग्रंथि होती है, जिसका आकार तितली की तरह होता है और यह शरीर की कई जरूरी गतिविधियों को नियंत्रित करने में मदद करती है। हाशिमोटो इसी ग्रंथि से जुड़ी बीमारी है, जो इम्यूनिटी के थायराइड ग्रंथि पर हमला करने के कारण होती है। इससे शरीर में सूजन बढ़ जाती है और इसके परिणामस्वरूप निष्क्रिय थायराइड हो सकता है, जिसे हाइपोथायरायडिज्म कहा जाता है।
हाशिमोटो बीमारी होने के कारण
आमतौर पर इम्यूनिटी शरीर को संक्रमण और बीमारियों से सुरक्षित रखने में मदद करती है, लेकिन हाशिमोटो बीमारी में इम्यूनिटी सिस्टम एंटीबॉडी का उत्पादन करता है, जो थायराइड ऊतक पर हमला करती हैं। थायराइड में बड़ी मात्रा में सफेद रक्त कोशिकाएं जमा होने के कारण भी हाशिमोटो हो सकता है। अगर शरीर थायराइड हार्मोन का उत्पादन करने से रोक देता है तो यह वजह भी हाशिमोटो बीमारी के लिए जिम्मेदार है।
हाशिमोटो से जुड़े लक्षण
हाशिमोटो होने पर शुरूआत में कोई लक्षण सामने नहीं आते, लेकिन समय बितने के साथ थायराइड ग्रंथि बढ़ने लगती है, जिससे गर्दन का आगे वाला हिस्सा बड़ा दिखाई देने लगता है। इसके अतिरिक्त थकावट, सुस्ती, अत्यधिक नींद, वजन बढ़ना, कब्ज, रूखी त्वचा, ठंड लगना, जोड़ों में अकड़न, मांसपेशियों में दर्द, सूजी हुई आंखें, चेहरे पर सूजन, याददाश्त संबंधी समस्याएं, एकाग्रता में कमी, भारी पीरियड्स या इनका अनियमित होना और बालों का धीमा विकास भी इसके लक्षणों में शामिल हैं।
क्या हाशिमोटो का इलाज है?
हाशिमोटो का कोई इलाज नहीं है, लेकिन डॉक्टर इसे नियंत्रित करने के लिए आपको कुछ दवा दे सकता है। अगर आपको हाइपोथायराइडिज्म है तो डॉक्टर आपको गोली, जेल कैप्सूल या कोी तरल दवाई दे सकता है। दवा देने के 6 से 8 सप्ताह के बाद डॉक्टर आपके थायराइड फंक्शन की जांच करने के लिए TSH टेस्ट कराने की सलाह दे सकते हैं, जिसके जरिए ट्राईआयोडोथायरोनिन और थायरॉक्सिन हार्मोंन्स की स्थिति का पता लगाया जाता है।