
जानिए क्या है गोंड कला और इससे जुड़ी महत्वपूर्ण बातें
क्या है खबर?
गोंड कला भारत की एक प्रसिद्ध पारंपरिक चित्रकला है, जो मुख्य रूप से मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड और ओडिशा में पाई जाती है।
यह कला आदिवासी समुदायों द्वारा विकसित की गई थी और इसमें प्राकृतिक रंगों का उपयोग होता है। गोंड कला की खासियत इसके चमकीले रंग, जटिल डिजाइन और ग्रामीण जीवन के दृश्य हैं।
इस लेख में हम गोंड कला के इतिहास, तकनीक और इसकी वर्तमान स्थिति के बारे में जानेंगे।
इतिहास
गोंड कला का इतिहास
गोंड कला का इतिहास बहुत पुराना है और इसका विकास आदिवासी समुदायों ने किया था।
यह कला 14वीं सदी से शुरू हुई थी जब गोंड आदिवासी अपने घरों को सजाने के लिए इसे अपनाते थे।
समय के साथ इस कला ने कई रूप लिए और आज यह न केवल घरेलू सजावट बल्कि कई आधुनिक कला परियोजनाओं का हिस्सा भी बन चुकी है।
गोंड कला को संरक्षित करने के लिए कई प्रयास किए जा रहे हैं।
तकनीक
गोंड कला की तकनीक
गोंड कला में मुख्य रूप से प्राकृतिक रंगों का उपयोग होता है, जो पेड़-पौधों, फूलों और खनिजों से प्राप्त होते हैं।
इस कला में मोटे ब्रश या हाथों का इस्तेमाल करके दीवारों पर चित्र बनाए जाते हैं।
इसके अलावा गोंड कला में रेखाएं, ज्यामितीय आकृतियां और पशु-पक्षियों के चित्र भी होते हैं।
इस कला को सीखना आसान नहीं होता, लेकिन इसे सीखने पर बहुत कुछ सिखने को मिलता है।
कलाकार
आधुनिक गोंड कलाकार
आधुनिक गोंड कलाकारों ने इस पारंपरिक कला को नए रूप में प्रस्तुत किया है। इनमें से कुछ कलाकार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध हो चुके हैं, जिन्होंने अपनी कला प्रदर्शनियों द्वारा देश-विदेश में नाम कमाया है।
इन कलाकारों ने गोंड कला को आधुनिक तकनीकों और सामग्रियों के साथ मिलाकर नए नए प्रयोग किए हैं, जिससे यह कला और भी आकर्षक बन गई है।
इनकी कलाकृतियां आजकल संग्रहणीय वस्तुओं की तरह बिकती हैं।
भविष्य
गोंड कला का भविष्य
गोंड कला का भविष्य उज्ज्वल दिखता है क्योंकि इसे बचाए रखने के लिए कई संगठन काम कर रहे हैं।
स्कूलों में बच्चों को इस कला की शिक्षा दी जा रही है ताकि युवा पीढ़ी इसे सीख सके।
इसके अलावा ऑनलाइन माध्यमों द्वारा भी गोंड कला को बढ़ावा मिल रहा है।
इस प्रकार गोंड कला न केवल आदिवासी संस्कृति की पहचान है बल्कि यह भारतीय सांस्कृतिक धरोहर का अहम हिस्सा भी है जिसे संरक्षित करना जरूरी है।