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सोचने पर मजबूर कर देते हैं ये सामजिक मुद्दों पर आधारित 5 उपन्यास
5 विचारोत्तेजक हिंदी सामाजिक नाटक उपन्यास

सोचने पर मजबूर कर देते हैं ये सामजिक मुद्दों पर आधारित 5 उपन्यास

लेखन अंजली
Nov 29, 2024
09:30 am

क्या है खबर?

हिंदी साहित्य में सामाजिक नाटक उपन्यासों का एक समृद्ध और अलग-अलग संग्रह है, जो समाज के कई पहलुओं को उजागर करते हुए पाठकों को गहराई से सोचने पर मजबूर करते हैं। यहां 5 ऐसे उपन्यासों के बारे में बताया जा रहा है, जो न केवल अपनी कहानी बल्कि अपने सामाजिक संदेशों के लिए भी प्रसिद्ध हैं। ये उपन्यास समाज की समस्याओं और असमानताओं को उजागर करते हैं, जिससे पाठक इन मुद्दों पर विचार करने के लिए प्रेरित होते हैं।

#1

निर्मला (मुंशी प्रेमचंद)

मुंशी प्रेमचंद की यह कृति हिंदी साहित्य की एक अहम रचना है। 'निर्मला' एक बाल विवाह की कहानी है, जिसमें एक छोटी सी लड़की को एक बड़े उम्र के आदमी से शादी कर दी जाती है। यह उपन्यास न केवल बाल विवाह की समस्या को उजागर करता है, बल्कि समाज में महिलाओं के साथ होने वाले अन्याय और उनकी स्थिति पर भी प्रकाश डालता है। प्रेमचंद की व्यंग्यात्मक शैली और चरित्र चित्रण इसे एक विचारोत्तेजक पढ़ाई बनाते हैं।

#2

कर्मभूमि (मुंशी प्रेमचंद)

'कर्मभूमि' मुंशी प्रेमचंद की एक और अहम कृति है, जो ब्रिटिश शासन काल में भारतीय समाज के सामाजिक और राजनीतिक परिदृश्य को दर्शाती है। यह उपन्यास अमरकांत नामक एक युवक की कहानी है, जो अपने परिवार के प्रति अपने कर्तव्य और सामाजिक न्याय की लड़ाई के बीच झूलता है। प्रेमचंद की यह रचना गरीबों और दबे-कुचले लोगों की लड़ाई को उजागर करती है और सामाजिक असमानताओं पर तीखी टिप्पणी करती है।

#3

तमस (भीष्म साहनी)

भीष्म साहनी का 'तमस' 1947 के भारत-पाकिस्तान विभाजन के दौरान एक छोटे से शहर में हुए हिंसक दंगों की कहानी है। यह उपन्यास विभाजन के समय लोगों के जीवन पर पड़े प्रभाव और इसके द्वारा छोड़े गए गहरे निशानों को दर्शाता है। साहनी की विस्तृत और भावनात्मक कहानी इसे एक विचारोत्तेजक और दिल को छूने वाली रचना बनाती है, जो पाठकों को इतिहास की उन कठिनाइयों से रूबरू कराती है।

#4

सेवासदन (मुंशी प्रेमचंद)

'सेवासदन' यानी 'द हाउस ऑफ सर्विस' मुंशी प्रेमचंद की एक और अहम रचना है, जो 20वीं सदी के शुरुआती भारत में महिलाओं के सामने आने वाली चुनौतियों को उजागर करती है। यह उपन्यास सुमन नाम की एक युवा महिला की कहानी बताता है, जो रूढ़िवादी समाज में स्वतंत्रता और आत्म-साक्षरता पाने का संघर्ष करती है। इस रचना ने लिंग असमानता, सामाजिक सुधार, और व्यक्तिगत स्वतंत्रता जैसे मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया है।

#5

राग दरबारी (श्रीलाल शुक्ला)

श्रीलाल शुक्ल का 'राग दरबारी' ग्रामीण भारत पर आधारित व्यंग्यात्मक उपन्यास है, जिसे साल 1968 में प्रकाशित किया गया था। इसमें शिवपालगंज नामक काल्पनिक गांव में रंगनाथ नाम का युवक बीमारी से उबरने आता है। रंगनाथ के माध्यम से ग्रामीण भारतीय समाज में भ्रष्टाचार, राजनीतिक हेरफेर और सामाजिक विषमताओं का पर्दाफाश किया गया है। इन सभी किताबों ने हिंदी साहित्य जगत में अपनी अमिट छाप छोड़ी और पाठकों को सोचने पर मजबूर कर दिया।