परिवारिक कहानियां पढ़ना पसंद है तो इन 5 किताबों को जरूर पढ़ें
हिंदी साहित्य में परिवार की कहानियों का एक अहम स्थान है। ये कहानियां न केवल परिवार के जटिल रिश्तों को उजागर करती हैं, बल्कि समाज के अलग-अलग पहलुओं को भी दिखाती हैं। इनमें पारिवारिक संघर्ष, सामाजिक दबाव और आर्थिक चुनौतियों का चित्रण होता है। आइए हम आपको पांच ऐसी किताबों के बारे में बताते हैं, जो आपको जरूर पढ़नी चाहिए क्योंकि ये न केवल साहित्यिक नजरिए से अहम हैं, बल्कि समाज की वास्तविकताओं को भी बखूबी पेश करती हैं।
गोदान (मुंशी प्रेमचंद)
मुंशी प्रेमचंद की 'गोदान' 1936 में प्रकाशित हुई थी और यह हिंदी साहित्य की एक अहम रचना है। यह उपन्यास एक किसान होरी और उसके परिवार की कहानी है, जो अपनी जमीन, समाजिक दबावों और आर्थिक संघर्षों से जूझता है। इस किताब में प्रेमचंद ने ग्रामीण भारत की वास्तविकताओं को बहुत ही संवेदनशीलता से चित्रित किया है। 'गोदान' न केवल एक परिवार की कहानी है, बल्कि यह समाज के व्यापक संदर्भ में भी एक अहम योगदान देता है।
निर्मला (मुंशी प्रेमचंद)
'निर्मला' मुंशी प्रेमचंद का एक और अहम उपन्यास है, जो 1927 में प्रकाशित हुआ था। यह कहानी एक युवा ब्राह्मण लड़की निर्मला की है, जो अपने परिवार और समाज के दबावों के बीच जीवन की कठिनाइयों का सामना करती है। इस किताब में प्रेमचंद ने उस समय की महिलाओं के साथ होने वाले अन्याय और उनके संघर्षों को बहुत ही मार्मिक ढंग से पेश किया है। 'निर्मला' आज भी अपनी प्रासंगिकता बनाए हुए है।
राग दरबारी (श्रीलाल शुक्ला)
श्रीलाल शुक्ला का 'राग दरबारी' 1968 में प्रकाशित हुआ था और यह हिंदी साहित्य का अनोखा कृति माना जाता है। यह उपन्यास छोटे से गांव शिवपालगंज की कहानी बताता है, जहां पारिवारिक और सामाजिक रिश्तों के साथ-साथ राजनीतिक भ्रष्टाचार को भी उजागर किया गया है। इस किताब में शुक्ल जी ने हास्य और व्यंग्य के माध्यम से समाज की विसंगतियों को दर्शाया है। 'राग दरबारी' आपको हंसाते हुए सोचने पर मजबूर कर देगा।
गुनाहों का देवता (धर्मवीर भारती)
धर्मवीर भारती का 'गुनाहों का देवता' 1949 में प्रकाशित हुआ था और यह एक बहुत सुंदर प्रेम कहानी प्रस्तुत करता है जो सामाजिक और नैतिक मूल्यों से जुड़ी होती हैं। इसमें चंदर और सुधा नामक पात्रों के जीवन में प्रेम, त्याग और त्रासदी शामिल हैं। भारती जी ने उस समय के सामाजिक नियम और मूल्यों को बहुत ही गहराई से चित्रित किया। 'गुनाहों का देवता' भावात्मक रूप से प्रभावित करने वाला उपन्यास साबित होता।
शेखर एक जीवनी (अज्ञेय)
अज्ञेय द्वारा लिखित 'शेखर: एक जीवनी' आत्मकथात्मक शैली में लिखा गया है, जो पहली बार 1941 में प्रकाशित हुआ था। यह किताब मुख्य पात्र शेखर के बचपन से लेकर वयस्क जीवन तक की यात्रा दर्शाती है, जहां वह अपने परिवार और समाज से जुड़े संघर्षों का सामना करता है। इसमें अज्ञेय जी ने शेखर के आंतरिक संघर्षों और जीवन के पहलुओं को संवेदनशीलता से प्रस्तुत किया है।