पुलिस कब कर सकती है एनकाउंटर, क्या हैं गाइडलाइंस?

कानपुर में आठ पुलिसकर्मियों पर हमला करने का मुख्य आरोपी और हिस्ट्रीशीटर अपराधी विकास दुबे शुक्रवार सुबह एक एनकाउंटर में मारा गया। उससे पहले उसकी गैंग के पांच और बदमाशों का एनकाउंटर किया जा चुका है। पुलिस पर हमले के बाद से लोग कहने लगे थे कि इन अपराधियों का एनकाउंटर किया जाएगा। अब देश में एनकाउंटर को लेकर बहस शुरू हो गई है। इसके बीच आपके लिए यह जानना जरूरी है कि पुलिस कोई एनकाउंटर कब कर सकती है।
भारत में एनकाउंटर और हिरासत में होने वाले मौतें लंबे समय से विवादों में रहे हैं। 2010 में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) ने इस मामले को लेकर गाइडलाइंस तैयार की थी। 2014 में इन्हें सुप्रीम कोर्ट से भी सहमित मिल गई। इसलिए एक प्रकार से इन्हें कानून की ताकत मिल गई है। इन गाइडलाइंस में दो ऐसी स्थितियां बताई गई हैं, जहां पुलिस किसी की जान ले सकती है यानी किसी का एनकाउंटर कर सकती है।
पहली, अगर पुलिसकर्मी या पुलिस की टीम पर अपराधी द्वारा हमला किया जाए तो वो आत्मरक्षा में एनकाउंटर कर सकते हैं। इस स्थिति में भारतीय दंड संहिता (IPC) से सरंक्षण मिलता है। वहीं दूसरी स्थिति में मौत या उम्र कैद की सजा पाए किसी अपराधी को गिरफ्तार करने के लिए जरूरी कार्रवाई करने के दौरान एनकाउंटर किया जा सकता है। इसमें भी IPC से सरंक्षण मिलता है। यानी ऐसी घटनाओं में पुलिसवालों पर कानूनी कार्रवाई नहीं होगी।
NHRC के मुताबिक, इन दो स्थितियों को छोड़कर किसी भी स्थिति में किया गया एनकाउंटर सरंक्षण के दायरे में नहीं आएगा और इसे लेकर हत्या के मामले में की जाने वाली कानूनी कार्रवाई करनी होगी। सुप्रीम कोर्ट ने अपने 2014 के एक फैसले में कहा था कि ऐसी स्थिति में एनकाउंटर में शामिल सभी पुलिसवालों के खिलाफ तुरंत FIR दर्ज होनी चाहिए और उनके खिलाफ बाहरी एजेंसी की मदद से आपराधिक जांच शुरू होनी चाहिए।
इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी कहा था कि एनकाउंटर में शामिल पुलिसकर्मियों और अधिकारियों को घटना के तुरंत बाद प्रमोशन या वीरता पुरस्कार नहीं दिया जा सकता। उन्हें एनकाउंटर में दिखाए साहस का ईनाम तभी दिया जा सकता है, जब उनकी यह साबित हो जाए कि उसकी वीरता संदेह से परे है। रिपोर्ट के मुताबिक, साथ ही कोर्ट ने कहा था कि घटना की मजिस्ट्रेट से जांच करानी होगी।
अगर एनकाउंटर में शामिल कोई पुलिसकर्मी दोषी पाया जाता है तो उसके खिलाफ IPC की धारा 299 के तहत मुकदमा चलता है। इसमें 10 साल से लेकर उम्रकैद की सजा तक का प्रावधान है। विकास दुबे के मामले में पुलिस ने कहा है कि वह पिस्तौल छीनकर भागने का प्रयास कर रहा था और जवाबी कार्रवाई में मारा गया है। कानून की नजर से देखें तो यह पहली स्थिति में आता है, लेकिन क्या यह दलील कोर्ट में ठहर पाएगी?
दरअसल, 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक अन्य फैसले में कहा था कि यह पुलिसकर्मियों की यह ड्यूटी नहीं है कि वो किसी आरोपी को सिर्फ इसलिए मार दें कि वह एक खूंखार अपराधी है। कोर्ट ने कहा था, "निस्संदेह पुलिस को आरोपी को गिरफ्तार कर अदालत के सामने पेश करना चाहिए। अदालत ने बार-बार ऐसे पुलिसकर्मियों पर सवाल उठाए हैं, जो अपराधी को मारने के बाद पूरी घटना को एनकाउंटर की शक्ल में पेश करते हैं।"