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क्या है भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा का इतिहास और कैसे हुई थी इसकी शुरुआत?
क्या है भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा का इतिहास

क्या है भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा का इतिहास और कैसे हुई थी इसकी शुरुआत?

Jul 07, 2024
10:22 am

क्या है खबर?

ओडिशा के पुरी में भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा का 7 जुलाई से शुभारंभ हो रहा है। यह यात्रा हर साल आषाढ़ महीने के शुक्‍ल पक्ष की द्वितीया से शुरू होकर दशमी तक चलती है। इस यात्रा में देश-विदेश से लाखों की संख्या में भक्तों की भीड़ उमड़ती है। इस रथ यात्रा में शामिल होने का पुण्य 100 यज्ञों के बराबर माना जाता है। आइए जानते हैं कैसे हुई थी इस यात्रा की शुरुआत और क्या है इसका इतिहास।

शुरुआत

कैसे हुई जगन्नाथ रथ यात्रा की शुरुआत?

मान्यताओं के अनुसार, जगन्नाथ रथ यात्रा की शुरुआत 12वीं से 16वीं शताब्दी के बीच हुई थी। एक बार भगवान जगन्नाथ की बहत सुभद्रा ने नगर घूमने की इच्छा जताई थी। उसके बाद भगवान जगन्नाथ और उनके बड़े भाई बलराम ने तीन भव्‍य रथ तैयार कराए और उन्हीं से तीनों नगर भ्रमण पर गए थे। रास्‍ते में तीनों अपनी मौसी के घर गुंडिचा भी गए और वहां 7 दिन ठरकर वापस पुरी लौट आए। उसके बाद से यह यात्रा जारी है।

स्थापना

कैसे हुई थी जगन्नाथ मंदिर की स्थापना?

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, द्वारिका में कृष्ण के अंतिम संस्कार के समय बलराम बहुत दुखी थे और वह कृष्ण के पार्थिव शरीर को लेकर समुद्र में जल समाधी लेने चल दिए। उनके पीछे बहन सुभद्रा भी चल पड़ृी। ठीक उसी समय पुरी के राजा इंद्रुयम्न को सपना आया कि भगवान का मृत शरीर पुरी के तट पर तैरता हुआ मिलेगा। उसके बाद वह एक भव्य मंदिर का निर्माण कराएंगे और उसमें कृष्ण, बलराम और सुभद्रा की मूर्तियां स्थापित की जाएंगी।

स्थापना

राजा इंद्रुयम्न ने अधूरी मूर्तियों को ही कराया मंदिर में स्थापित

सपना सच होने पर राजा इंद्रुयम्न ने मंदिर निर्माण कराकर भगवान जगन्नाथ, बलराम और सुभद्रा की मूर्तियां बनवाने की सोची। उसी समय भगवान विश्वकर्मा बढ़ई के रूप में आए और उन्होंने राजा को चेतावनी दी कि रोक-टोक करने पर वह कार्य अधूरा छोड़कर चले जाएंगे। कुछ महीनों बाद तक भी मूर्तियों के न बनने पर राजा ने मंदिर का दरवाजा खुलवा दिया और विश्वकर्मा अधूरी मूर्तियां छोड़कर चले गए। उसके बाद राजा इंद्रुयम्न ने अधूरी मूर्तियां ही स्थापित करा दी।

जानकारी

प्रत्येक 12 साल में बदली जाती हैं मूर्तिया

बता दें कि जगन्नाथ मंदिर में हर 12 साल के बाद भगवान की तीनों पुरानी मूर्तियों की जगह विशेष अनुष्ठान के साथ नई मूर्तियां स्थापित की जाती हैं। सबसे बड़ी बात है कि नई मूर्तियाें की संरचना भी अधूरी ही होती है।

खासियत

क्यों खास है जगन्नाथ मंदिर?

जगन्नाथ मंदिर भारत में चार कोनों में स्थित पवित्र मंदिरों में से एक हैं और इन चारों को चार धाम यात्रा में गिना जाता है। तीन अन्य मंदिर दक्षिण में रामेश्वरम्, पश्चिम में द्वारका और उत्तर में बद्रीनाथ है। शायद ही पूरे विश्व में जगन्नाथ मंदिर को छोड़कर ऐसा कोई मंदिर होगा जहां भगवान कृष्ण, बलराम और सुभद्रा तीनों भाई-बहन की मूर्तियां एक साथ स्थापित हों। ऐसे में इस मंदिर की पूरी दुनिया में विशेष महत्व है।

क्रम

यात्रा में कैसे होता है रथों का क्रम?

रथ यात्रा में सबसे आगे बलराम, बीच में सुभद्रा और सबसे पीछे भगवान जगन्नाथ का रथ होता है। बलराम का रथ 'तालध्वज' लाल-हरे रंग का होता है। सुभद्रा के रथ को दर्पदलन या पद्म रथ कहा जाता है। यह काले, नीले और लाल रंग का होता है। भगवान जगन्नाथ के रथ को नंदीघोष या गरुड़ध्वज कहा जाता है। यह लाल और पीले रंग का होता है। नंदीघोष, तालध्वज और दर्पदलन की ऊंचाई क्रमश: 45.6, 45 और 44.6 फिट होती है।

खासियत

रथों में नहीं किया जाता है किसी भी धातु का इस्तेमाल

तीनों रथ नीम की पवित्र और परिपक्व लकड़ियों से बनाए जाते हैं, जिसे दारु कहते हैं। इसके लिए नीम के स्वस्थ और शुभ पेड़ की पहचान करने की परंपरा है। इस कार्य के लिए एक विशेष समिति गठित होती है। लकड़ी काटने के लिए सोने की कुल्हाड़ी से कट लगाने की परंपरा है। खास बात है कि तीनों रथों के निर्माण में किसी भी प्रकार के कील या कांटे या अन्य किसी धातु का इस्तेमाल नहीं किया जाता है।

जानकारी

रथों के तैयार होने पर किया जाता है अनुष्ठान

तीनों रथों के तैयार होने पर 'छर पहनरा' अनुष्ठान किया जाता है। इसके लिए पुरी के गजपति राजा पालकी में यहां आते हैं और तीनों रथों की पूजा करते हैं। इसी तरह सोने की झाडू से रथ मंडप और रास्ता साफ किया जाता है।