सेवानिवृत्ति के बाद क्या-क्या नहीं कर सकते हैं मुख्य न्यायाधीश?
भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ 10 नवंबर को सेवानिवृत्त हो रहे हैं। आज (8 नवंबर) को उनका सुप्रीम कोर्ट में आखिरी कार्यदिवस था। इसके बाद जस्टिस खन्ना अगले CJI होंगे, जो 11 नवंबर को कार्यभार संभालेंगे। अपने कार्यकाल के आखिरी दिन भी जस्टिस चंद्रचूड़ ने कई मामलों की सुनवाई की और विदाई को लेकर भावुक भी नजर आए। आइए जानते हैं सेवानिवृत्ति के बाद CJI क्या कर सकते हैं और क्या नहीं।
दोबारा शुरू नहीं कर सकते वकालत
सेवानिवृत्ति के बाद CJI दोबारा से किसी भी कोर्ट में वकालत नहीं कर सकते। संविधान के अनुच्छेद 124(7) के अनुसार, एक बार कार्यकाल समाप्त होने के बाद CJI और सुप्रीम कोर्ट के दूसरे न्यायाधीश को किसी भी भारतीय कोर्ट में वकालत करने से प्रतिबंधित कर दिया जाता है। ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि न्यायाधीश अपने कार्यकाल के बाद भी निष्पक्षता बनाए रखें।
वकालत पर क्यों लगाया जाता है प्रतिबंध?
वकालत पर प्रतिबंध का उद्देश्य न्यायपालिका की स्वतंत्रता और अखंडता में जनता के विश्वास को बनाए रखना है। सेवानिवृत्ति के बाद किसी न्यायाधीश को वकालत करने की अनुमति देने से उनके कार्यकाल के दौरान लिए गए फैसलों के बारे में संदेह उत्पन्न हो सकता है। इसके अलावा ऐसा संभावित पूर्वाग्रहों से बचने, शीर्ष जजों के अधिकार और गरिमा को बनाए रखने और संवेदनशील जानकारी की पहुंच का बाद के मामलों में इस्तेमाल रोकने के लिए भी किया जाता है।
पूर्व CJI कौन-कौनसी भूमिकाएं निभा सकते हैं?
सेवानिवृत्ति के बाद CJI जटिल कानूनी मामलों को सुलझाने में अपनी विशेषज्ञता प्रदान करते हैं। मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 के तहत पूर्व जजों को मध्यस्थ बनाया जाता है। पूर्व जजों को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग या राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण जैसे आयोगों का अध्यक्ष या सदस्य नियुक्त किया जाता है। इसके अलावा जज कानूनी शिक्षण संस्थाओं में अध्यापन, व्याख्यान या किताबें भी लिखते हैं। सरकार सेवानिवृत्त जजों को राज्यपाल जैसी संवैधानिक भूमिका भी दे सकती है।
पूर्व जजों की नियुक्ति को लेकर होते रहे हैं विवाद
पूर्व जजों को सरकारी निकायों में पद देने पर पहले विवाद भी होते रहे हैं। हालिया विवाद पूर्व CJI रंजन गोगोई को लेकर हुआ था, जब सरकार ने उन्हें सेवानिवृत्ति के फौरन बाद राज्यसभा का सदस्य मनोनीत कर दिया था। इससे पहले पूर्व CJI जस्टिस हिदायतुल्ला उपराष्ट्रपति बने थे। वे कार्यवाहक राष्ट्रपति भी रहे। कम से कम 4 पूर्व CJI को अलग-अलग विश्वविद्यालयों का कुलपति नियुक्त किया गया। कई पूर्व CJI राज्यपाल भी रहे।