सुप्रीम कोर्ट का आदेश, राजनीतिक पार्टियों को बताना होगा क्यों दिया दागी उम्मीदवारों को टिकट
क्या है खबर?
राजनीति में अपराधीकरण की समस्या पर आज अपना फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक पार्टियों को आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों को टिकट देने का कारण अपनी वेबसाइट, अखबार, न्यूज चैनलों और सोशल मीडिया पर प्रचारित करने का आदेश दिया।
पार्टियों को इन उम्मीदवारों की उपलब्धियों और उन पर चल रहे आपराधिक मामलों को भी प्रचारित करना होगा।
न्यायाधीश रोहिंटन फली नरीमन और एस रविंद्र भट की दो सदस्यीय बेंच ने ये फैसला सुनाया।
जानकारी
आदेश नहीं माना तो चलेगा कोर्ट की अवमानना का केस
अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर राजनीतिक पार्टियां उसके निर्देश को नहीं मानतीं तो उनके खिलाफ कोर्ट की अवमानना का केस चलेगा। मामले में चुनाव आयोग के पास सुप्रीम कोर्ट में अवमानना याचिका दायर करने का अधिकार होगा।
पृष्ठभूमि
संवैधानिक बेंच के पुराने फैसले से मौजूदा सुनवाई का संबंध
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का संबंध 25 सितंबर, 2018 को सुनाए गए पांच सदस्यीय संवैधानिक बेंच के एक फैसले से हैं।
राजनीति का अपराधिकरण रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने अपने इस फैसले में चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों को उन पर चल रहे सभी आपराधिक मामलों की जानकारी चुनाव आयोग के फॉर्म में देने को कहा था।
वहीं राजनीतिक पार्टियों को ऐसे उम्मीदवारों की जानकारी अपनी वेबसाइट, अखबारों और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर प्रचारित करने का निर्देश दिया गया था।
जानकारी
सरकार को दिया था सख्त कानून बनाने का सुझाव
सुप्रीम कोर्ट ने अपने इस फैसले में सरकार को राजनीति का अपराधीकरण रोकने के लिए सख्त कानून बनाने का सुझाव भी दिया था। हालांकि ऐसा कोई कानून बनाना है या नहीं, इसका फैसला पूरी तरह से सरकार और संसद पर छोड़ा गया था।
याचिका
वकील ने डाली सरकार और चुनाव आयोग के खिलाफ याचिका
फैसले के कुछ समय बाद वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय ने याचिका दायर करते हुए कहा कि सरकार और चुनाव आयोग ने उसके फैसले के बावजूद राजनीति का अपराधीकरण रोकने के लिए कोई गंभीर कदम नहीं उठाए हैं।
अपनी याचिका में उन्होंने कहा कि आयोग ने राजनीतिक पार्टियों और उम्मीदवारों को आपराधिक मामलों की जानकारी देने का निर्देश तो जारी कर दिया, लेकिन इसके लिए कानून में कोई बदलाव नहीं किए और इसलिए उसके निर्देश की कोई कानूनी मान्यता नहीं है।
याचिका
अलोकप्रिय अखबारों और न्यूज चैनलों में सूचना प्रचारित कर देती हैं राजनीतिक पार्टियां
अश्विनी ने अपनी याचिका में ये भी कहा कि चुनाव आयोग ने ऐसे बड़े अखबारों और न्यूज चैनलों की सूची प्रकाशित नहीं की है जिनमें आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों की जानकारी प्रचारित की जाए।
याचिका में कहा गया है कि राजनीतिक पार्टियां इसका फायदा उठाती हैं और अलोकप्रिय अखबारों और न्यूज चैनलों में अपने दागी उम्मीदवारों की सूचना प्रचारित कर देती हैं। न्यूज चैनलों पर ऐसे समय पर ये सूचना दिखाई जाती है जब कोई टीवी देखता भी नहीं है।
प्रभाव
याचिका में कहा गया- अपराधियों के चुनाव लडऩे से पड़ता है गंभीर प्रभाव
याचिका में अपराधियों के चुनाव लड़ने और विधायक और सांसद बनने के गंभीर प्रभावों की बात भी कही गई है।
इसमें कहा गया है, "चुनावी प्रक्रिया के दौरान वो न केवल नतीजों को प्रभावित करने के लिए गैरकानूनी पैसे का प्रयोग करते हैं, बल्कि वो मतदाताओं और प्रतिद्वंद्वी उम्मीदवारों को धमकाते भी हैं।"
अश्विनी ने आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों को टिकट न देने की शर्त पर राजनीतिक पार्टियों को मान्यता देने की मांग भी की थी।
सुनवाई
चुनाव आयोग ने जताई अश्विनी की दलीलों से सहमति
अश्विनी की याचिका पर सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग ने उनकी ज्यादातर दलीलों से सहमति जताई और कहा कि आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों की जानकारी प्रचारित करने के उसके 2018 के फैसले के उम्मीद मुताबिक नतीजे नहीं आए हैं और राजनीति का अपराधीकरण रुका नहीं है।
अश्विनी से सहमति जताते हुए आयोग ने कहा था कि कोर्ट को राजनीतिक पार्टियों को आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों को टिकट न देने का निर्देश देना चाहिए।
जानकारी
अश्विनी और चुनाव आयोग को देशहित में एक साथ बैठकर गाइडलाइंस बनाने को कहा
सबकी दलीलें सुनने के बाद कोर्ट ने अश्विनी और चुनाव आयोग को एक साथ बैठने और एक हफ्ते में देशहित में राजनीति का अपराधिकरण रोकने के लिए गाइडलाइंस बनाने को कहा। गाइडलाइंस पेश होने के बाद कोर्ट ने मामले में अपना फैसला सुरक्षित रखा था।
आंकड़े
43 प्रतिशत लोकसभा सांसदों पर चल रहे हैं आपराधिक मामले
गौरतलब है कि इस बार लोकसभा में चुनकर आए 539 सांसदों में से 233 यानि 43 प्रतिशत आपराधिक पृष्ठभूमि वाले हैं।
इसमें सबसे अधिक 116 सांसद भाजपा के हैं जबकि कांग्रेस के 29, जनता दल (यूनाइटेड) के 13 और DMK के 10 सांसद हैं।
2014 लोकसभा में दागी सांसदों की संख्या 34 प्रतिशत थी।
हाल ही में समाप्त हुए दिल्ली विधानसभा चुनाव में चुन कर आए 70 विधायकों में से 43 यानि 61 प्रतिशत पर आपराधिक मामले चल रहे हैं।