राष्ट्रपति का देश के नाम संबोधन: कहा- हमारा संविधान जीवंत दस्तावेज, न्याय संस्कृति का अभिन्न अंग
क्या है खबर?
गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने राष्ट्र को संबोधित किया। इस दौरान उन्होंने देशवासियों को गणतंत्र दिवस की बधाई दी।
उन्होंने कहा, "आज से 75 साल पहले 26 जनवरी के दिन ही भारत का संविधान लागू हुआ था। लगभग 3 साल के विचार-विमर्श के बाद संविधान सभा ने 29 नवंबर 1949 के दिन संविधान को अंगीकृत किया था।"
राष्ट्रपति ने अपने संबोधन में संविधान, न्याया और महात्मा गांधी समेत कई अन्य बातों का जिक्र किया।
संविधान
संविधान पर क्या बोलीं राष्ट्रपति?
राष्ट्रपति ने कहा, "हमारा संविधान एक जीवंत दस्तावेज है, जो हमारी सामाजिक अस्मिता का मूल आधार है। किसी राष्ट्र के इतिहास में 75 साल पलक झपकने जैसा होता है। भारत के बारे में ऐसा नहीं कहा जा सकता। इस काल खंड में भारत की चेतना जागी। इस ऐतिहासिक अवसर पर आप सबको संबोधित करते हुए मुझे बहुत खुशी हो रही है। बाबा साहेब ने देश को मजबूत संविधान दिया। हमारे देश का ये सौभाग्य था कि यहां महात्मा गांधी हुए।"
भारत
राष्ट्रपति बोलीं- विश्व में भारत का कद बढ़ा
राष्ट्रपति ने कहा, "हालिया सालों में आर्थिक विकास की दर लगातार ऊंची रही है, जिससे युवाओं के लिए रोजगार के अवसर पैदा हुए हैं, किसानों और मजदूरों के हाथों में अधिक पैसा आया है तथा बड़ी संख्या में लोगों को गरीबी से बाहर निकाला गया है। साहसिक और दूरदर्शी आर्थिक सुधारों के बल पर आने वाले वर्षों में प्रगति की यह रफ्तार बनी रहेगी। भारत का आर्थिक विकास तेजी से हुआ है। अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत का कद बढ़ा है।"
बड़ी बातें
राष्ट्रपति के संबोधन की बड़ी बातें
न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व देश की सभ्यता का हिस्सा रहे हैं।
सरकार ने जनकल्याण को नई परिभाषा दी है। आवास और पेयजल जैसी बुनियादी जरूरतों को अधिकार माना गया।
हमारी परंपराओं और रीति-रिवाजों को संरक्षित करने के लिए संस्कृति के क्षेत्र में अनेक उत्साह-जनक प्रयास किए जा रहे हैं।
'एक देश, एक चुनाव' शासन में स्थिरता को बढ़ावा दे सकता है।
शिक्षा की गुणवत्ता, भौतिक अवसंरचना और डिजिटल समावेशन से पिछले दशक में शिक्षा में काफी बदलाव आया है।
बयान
हम उपनिवेशी मानसिकता के अंश खत्म कर रहे- राष्ट्रपति
राष्ट्रपति ने कहा, "वर्ष 1947 में हमने स्वाधीनता प्राप्त कर ली थी, लेकिन उपनिवेशी मानसिकता का कुछ हिस्सा लंबे समय तक लोगों के मन में रहा। हाल के दौर में उस मानसिकता को बदलने की ठोस कोशिश हमें दिखाई दे रहे हैं। इन कोशिशों में इंडियन पील कोड, क्रिमिनल प्रोसिजर कोड और इंडियन एविडेंस एक्ट की जगह भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम को लागू करने का फैसला शामिल है।"