प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 2 दिवसीय दौरे पर जा सकते हैं कुवैत, कितनी अहम है यात्रा?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस हफ्ते 2 दिवसीय दौरे पर कुवैत जा सकते हैं। यात्रा का आधिकारिक ऐलान अभी नहीं हुआ है, लेकिन माना जा रहा है कि 21 और 22 दिसंबर को प्रधानमंत्री मोदी कुवैत जाएंगे। अगर प्रधानमंत्री कुवैत गए तो ये 43 साल बाद किसी भारतीय प्रधानमंत्री का पहला दौरा होगा। मध्य-पूर्व में तनाव और भारत-कुवैत के संबंधों को देखते हुए इस यात्रा को बेहद अहम माना जा रहा है। आइए दौरे की अहमियत जानते हैं।
किन मुद्दों पर हो सकती है चर्चा?
प्रधानमंत्री की यात्रा के दौरान ऊर्जा सुरक्षा को लेकर चर्चा हो सकती है। भारत के लिए ऊर्जा सुरक्षा एक महत्वपूर्ण मुद्दा है, जो खाड़ी से तेल आयात पर निर्भर करता है। स्थिर ऊर्जा आपूर्ति सुनिश्चित करने और नवीकरणीय ऊर्जा में सहयोग पर चर्चा हो सकती है। दोनों देशों के बीच आर्थिक संबंधों में और विविधता लाने के प्रयास भी हो सकते हैं। भारत की बढ़ती डिजिटल अर्थव्यवस्था और स्टार्ट-अप इकोसिस्टम में कुवैती निवेश को लेकर भी चर्चा की उम्मीद है।
भारत के लिए क्यों अहम है कुवैत?
अहम अंतरराष्ट्रीय विवादों में कुवैत का तटस्थ रुख और गल्फ कोओपरेशन काउंसिल (GCC) में उसकी नेतृत्वकारी भूमिका कुवैत को भारत के लिए अहम बना देती है। कुवैत GCC का न सिर्फ एक प्रमुख सदस्य है, बल्कि इस समय इसकी अध्यक्षता भी कर रहा है। कुवैत भारत के लिए कच्चे तेल का बड़ा आपूर्तिकर्ता है। इस दौरे से दोनों देशों के बीच ऊर्जा आपूर्ति से जुड़े अहम समझौते और चर्चा होने की उम्मीद है।
दौरे का समय भी काफी अहम
प्रधानमंत्री का संभावित दौरा ऐसे समय हो सकता है, जब मध्य-पूर्व भारी उथल-पुथल से गुजर रहा है। गाजा युद्ध की पृष्ठभूमि में दोनों देश शांति प्रयासों को बढ़ावा देने पर चर्चा कर सकते हैं। पारंपरिक तौर पर कुवैत ने एक संतुलित विदेश नीति अपनाई है। यही वजह है कि बड़े-बड़े विवादों में कुवैत मध्यस्थता करता रहा है। भारत के लिए कुवैत के साथ मजबूत संबंध GCC से जुड़ने और साधा रणनीतिक लक्ष्यों को साधने के लिए अहम है।
रक्षा सहयोग को लेकर हो सकती है अहम चर्चा
भारत हिंद महासागर और मध्य-पूर्व में बढ़ती चुनौतियों का सामना कर रहा है, इसलिए कुवैत के साथ रक्षा और सुरक्षा संबंधों को मजबूत करना तेजी से महत्वपूर्ण हो गया है। हाल ही में भारतीय नौसेना का जहाज INS विशाखापत्तनम कुवैत गया था। प्रधानमंत्री की यात्रा के दौरान आतंकवाद, खुफिया जानकारी साझा करने, सैन्य आदान-प्रदान, समुद्री सुरक्षा सहयोग बढ़ाने, आतंकवाद और समुद्री डकैती जैसी क्षेत्रीय सुरक्षा चुनौतियों से निपटने पर चर्चा हो सकती है।
कैसे हैं भारत-कुवैत संबंध?
भारत-कुवैत के बीच राजनयिक संबंधों की शुरुआत 1962 में हुई थी। भारत कुवैती स्वतंत्रता को मान्यता देने वाले शुरुआती देशों में से एक था। 1962 में चीन युद्ध के वक्त कुवैत भारत को समर्थन देने वाले पहले देशों में से एक था। वित्त वर्ष 2023-24 के दौरान दोनों के बीच द्विपक्षीय व्यापार करीब 88,000 करोड़ रुपये था। इसके अलावा कुवैत में लगभग 10 लाख भारतीय प्रवासी रहते हैं, जो वहां की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं।