ISRO की बड़ी उपलब्धि, छह महीने के लिए भेजे गए मंगलयान ने पूरे किए पांच साल
भारत के मंगलयान मिशन ने पांच साल पूरे कर लिए हैं। खास बात यह है कि इस मिशन को केवल छह महीनों के लिए भेजा गया था, लेकिन यह अब भी मंगल ग्रह की कक्षा में घूम रहा है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) प्रमुख के सिवन ने कहा कि यह मिशन अभी कुछ समय तक चला रहेगा। उन्होंने कहा कि इस ऑर्बिटर से मिली तस्वीरों के आधार पर ISRO को मार्शियन एटलस बनाने में मदद मिली है।
मंगलयान-2 पर जारी है काम
मार्स ऑर्बिटर मिशन (MOM) यानी मंगलयान मिशन ने मंगलवार को अपने पांच साल पूरे किए। सिवन ने कहा, "यह काम कर रहा है और लगातार तस्वीरें भेज रहा है। यह अभी काफी समय तक काम करेगा।" मंगलयान-2 के बारे में उन्होंने कहा कि इस पर काम जारी है, लेकिन अभी तक कोई निर्णय नहीं लिया गया है। ISRO के एक अधिकारी ने बताया कि मार्स ऑर्बिटर अब तक कुल 2TB की तस्वीरें भेज चुका है।
ग्रैविटी फिल्म से कम लागत में भेजा गया मंगलयान
ISRO ने बताया कि भारत का MOM का मार्क कलर कैमरा ने मंगल के दोनों चंद्रमा- फोबोस और डेमोस की नजदीकी तस्वीरें ली हैं। MOM एक मात्र ऐसा मार्शियन आर्टिफिशियल सैटेलाइट है जो एक बार में मंगल की पूरी डिस्क और डेमोस की दूसरी तरफ की तस्वीरें ले सकता है। MOM से मिले डाटा के आधार पर 23 जाने-माने जर्नल में लेख छप चुके हैं। इस मिशन की लागत हॉलीवुड की फिल्म 'ग्रेविटी' की लागत से कम थी।
मंगलयान से मिली यह बड़ी जानकारी
ISRO के वरिष्ठ वैज्ञानिक एएस कुमार ने कहा कि इस मिशन से यह पता चला है कि मंगल की सतह पर आए तूफान सैंकड़ों किलोमीटर ऊपर तक उठ सकते हैं। उन्होंने कहा कि यह मिशन अभी सालभर और चल सकता है।
ISRO ने दी जानकारी
छह महीने का मिशन इतने सालों तक कैसे चल रहा है?
किसी भी स्पेसक्राफ्ट के लिए सबसे जरूरी ईंधन होता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि अभी भी MOM में काफी ईंधन बाकी है। ऐसे में सवाल उठता है कि जब इसे छह महीने के लिए तैयार किया गया था तो अब तक ईंधन बाकी कैसे है। इसका जवाब देते हुए कुमार ने बताया कि किसी भी मिशन की योजना बनाते समय इन बातों का ध्यान रखा जाता है। स्पेसक्राफ्ट में हर काम के लिए ईंधन निर्धारित किया जाता है।
इस वजह से बचा है ईंधन
MOM के बारे में कुमार ने बताया कि इसकी लॉन्चिंग परफेक्ट रही थी। इसलिए अतिरिक्त प्रयास के लिए रखा गया ईंधन अब काम आ रहा है। इसी तरह इसे मंगल के ऑर्बिटर में प्रवेश करते समय अतिरिक्त प्रयास की जरूरत नहीं पड़ी। ऐसे में अतिरिक्त प्रयास के लिए रखा गया ईंधन काम आ गया। ISRO के एक पूर्व वैज्ञानिक ने बताया कि मंगलयान की सफलता किसी मिशन की शानदार योजना को भी दिखाती है।
महज 450 करोड़ रुपये है MOM की लागत
मंगलयान पृथ्वी की कक्षा को सफलतापूर्वक पार करने वाला भारत का पहला मिशन है। इस मिशन पर कुल 450 करोड़ रुपये की लागत आई थी। इसे 5 नवंबर, 2013 को लॉन्च किया गया था और यह 24 सितंबर, 2014 को मंगल की कक्षा में पहुंचा था। मंगलयान ने मंगल ग्रह पर ओलिंपिस मॉन्स नाम के ज्वालामुखी की तस्वीर ली है। यह माउंट एवरेस्ट से ढाई गुना ज्यादा ऊंचा है। इसकी ऊंचाई 22 किमी और व्यास 600 किमी है।