दिल्ली: कोरोना से ठीक हुए बच्चों पर MIS-C का कहर, सामने आए कई मामले
राजधानी दिल्ली में कोरोना से ठीक होने के बाद कई बच्चों में मल्टीसिस्टम इनफ्लेमेट्री सिंड्रोम इन चिल्ड्रन (MIS-C) बीमारी के लक्षण देखे गए हैं। कई अस्पतालों में ऐसे बच्चों का इलाज चल रहा है और सर गंगाराम अस्पताल में इस बीमारी से पीड़ित बच्चों के लिए विशेष वार्ड स्थापित किया गया है। राहत की बात है कि प्रभावित बच्चों पर इलाज अच्छा असर हुआ है और उन पर दवाएं काम कर रही हैं।
क्या है MIS-C?
मशहूर मेडिकल पत्रिका द लैंसेट के मुताबिक, मल्टीसिस्टम इनफ्लेमेट्री सिंड्रोम (MIS-C) बच्चों में होना वाला गंभीर रोग है। महामारी की दूसरी लहर में संक्रमित होकर ठीक होने वाले बच्चों में MIS-C के मामले बढ़े हैं। इस रोग के होने की स्पष्ट वजह अभी तक पता नहीं चल पाई है और फिलहाल इसे कोरोना संक्रमण से ही जोड़कर देखा जा रहा है। इससे प्रभावित हुए अधिकतर बच्चों की उम्र 4-16 साल के बीच है।
गंगाराम अस्पताल में बीते महीने आए 52 मामले
राजधानी दिल्ली में इस बीमारी के बढ़ते मामलों को देखते हुए सर गंगाराम अस्पताल में एक विशेष वार्ड तैयार किया गया था। यहां तैनात डॉक्टर धीरेन गुप्ता कहते हैं कि बीते एक महीने से भी कम समय में यहां 52 मरीज भर्ती हुए हैं। उन्होंने कहा, "दूसरे अस्पतालों से भी बीमार बच्चों को यहां भेजा जाता था। इस हफ्ते इसके मामले कम हुए हैं और अधिकतर बच्चों को इलाज के बाद छुट्टी दे दी गई है।"
अधिकतर मरीजों को ब्लड प्रेशर था कम- डॉ गुप्ता
डॉ गुप्ता ने बताया कि MIS-C से पीड़ित अधिकतर बच्चों की उम्र 4-16 साल के बीच थी। बीमारी की वजह से 70 प्रतिशत बच्चों को दिल से संबंधित, 50 प्रतिशत को पेट और आंत से संबंधित और 20 प्रतिशत बच्चों में इनसेफ्लाइटिस जैसी परेशानियां देखी गई। इनके अलावा 80 प्रतिशत बच्चों का ब्लड प्रेशर कम था। उन्होंने कहा कि दूसरी लहर के बाद अचानक से MIS-C के मामलों में तेज इजाफा देखने को मिला।
डॉक्टर बोले- अभिभावकों को सतर्क रहने की जरूरत
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज में पीडियाट्रिक्स (बालचिकित्सा) के प्रोफेसर डॉ अनुराग अग्रवाल ने कहा कि इस बीमारी को लेकर अभिभावकों को सतर्क रहना चाहिए, लेकिन डरने की जरूरत नहीं है। दिल्ली के सभी अस्पतालों में ऐसे मामले आ रहे हैं और बहुत कम मौतें दर्ज हुई हैं। उन्होंने कहा कि बच्चे को कोरोना से ठीक होने के छह सप्ताह के भीतर लगातार तीन दिन से ज्यादा बुखार रहता है तो उसे डॉक्टर को दिखाना चाहिए।
एक हफ्ते से कम होने लगे हैं मामले
अपोलो अस्पताल में पीडियाट्रिक्स इन्टेंसिव केयर स्पेशलिस्ट डॉ नमीत जेराथ ने कहा कि मध्यम लक्षणों में बच्चों को अस्पताल लाने की जरूरत नहीं पड़ती, लेकिन गंभीर लक्षण होने पर उन्हें भर्ती करना पड़ता है। कोरोना से ठीक होने के बाद लंबे समय तक बुखार रहना भी इसका एक रूप है। एक साल से लेकर 14 साल तक के बच्चों में यह बीमारी देखी गई है। उन्होंने कहा कि पिछले हफ्ते से इसके मामले कम होने लगे हैं।
इन जटिलताओं से भी जूझ रहे बच्चे
डॉक्टरों के अनुसार, महामारी की दूसरी लहर के बाद बच्चों में MIS-C के अलावा दूसरी जटिलताएं भी देखी जा रही हैं। इनमें से कावासाकी एक है। इसके अलावा कई बच्चों को पेट और आंत से जुड़ी परेशानियों से जूझना पड़ रहा है।
MIS-C के लक्षण क्या हैं?
अमेरिकी सेंटर फॉर डिसीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (CDC) के अनुसार, यह एक दुर्लभ, लेकिन खतरनाक बीमारी है। इससे बच्चों के हृदय, आंतों, आंखों, गुर्दे और फेफड़ों पर असर पड़ता है। इससे ग्रसित बच्चों में गर्दन के पास दर्द, शरीर पर दाने, आंखों में सूखापन, थकान बने रहना और बुखार जैसे लक्षण नजर आते हैं। हर बच्चे में अलग-अलग लक्षण नजर आ सकते हैं। कुछ बच्चों को उल्टी, दस्त और पेट दर्द जैसी शिकायतें भी होती हैं।
जल्दी पहचान और सही इलाज से कम होता है खतरा
द लैंसेट का कहना है कि MIS-C की जल्दी पहचान और सही इलाज मिलने से अधिकतर बच्चों की जान बचाई जा सकती है। इसके इलाज में स्टेरॉयड्स और इंट्रावेनस इम्युनोग्लोब्यूलिन का इस्तेमाल किया जाता है। हालांकि अभी तक इस बारे में जानकारी उपलब्ध नहीं है कि ऐसा इलाज बच्चों की सेहत पर आगे चलकर कैसा असर डाल सकता है। विशेषज्ञ परिजनों को बच्चों में इसके लक्षण दिखने के तुरंत बाद डॉक्टरों से संपर्क करने की सलाह देते हैं।