पीवी नरसिम्हा राव: राजनीति के चाणक्य और आर्थिक सुधारों के जनक की कहानी
केंद्र सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव को भारत रत्न से सम्मानित करने का फैसला किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक्स पर इसकी जानकारी दी और कहा, 'एक प्रतिष्ठित विद्वान और राजनेता के रूप में राव ने विभिन्न पदों पर रहते हुए भारत की व्यापक सेवा की।' बता दें कि राव को देश में आर्थिक सुधारों के जनक के रूप में भी जाता है और वह भारतीय राजनीति के चाणक्य भी कहे जाते हैं।
कौन थे पीवी नरसिम्हा राव?
राव का पूरा नाम पामुलापार्ती वेंकट नरसिम्हा राव था। उनका जन्म 28 जून, 1921 में हैदराबाद के करीम नगर गांव में हुआ था। उनका निधन 23 दिसंबर, 2004 में हुआ था। राव 18 भाषाओं के जानकार थे। साल 1971-1973 तक वह आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। वह दक्षिण भारत से पहले नेता थे, जो प्रधानमंत्री के पद पर पहुंचे थे। नरसिम्हा राव 20 जून, 1991 से 16 मई, 1996 तक देश के 9वें प्रधानमंत्री रहे।
राव ने किए थे 3 बड़े आर्थिक सुधार
1991 के लोकसभा चुनाव के प्रचार के दौरान राजीव गांधी की हत्या के बाद राव भारत के प्रधानमंत्री बने थे। तब देश की आर्थिक स्थिति बेहद खराब थी। भारत का विदेशी मुद्रा भंडार संकट का सामना कर रहा था। राव ने 3 बड़े आर्थिक सुधार किए- वैश्वीकरण, उदारीकरण और निजीकरण। राव ने डॉक्टर मनमोहन सिंह को वित्त मंत्री बनाया और कांग्रेस के नेहरूवादी आर्थिक सिद्धांत में तेजी से बदलाव शुरू किए। इसके लिए उनका काफी विरोध भी हुआ था।
कैसे राव ने देश को आर्थिक संकट से निकाला?
विनय सीतापति ने राव की जीवनी 'हाफ लायन हाऊ नरसिम्हा राव ट्रांसफॉर्म्ड इंडिया' में बताया है कि राव ने गुप्त तरीके भारत के आर्थिक सुधारों की रूपरेखा बदली। उन्होंने आर्थिक सुधारों के लिए मनमोहन सिंह और उनकी टीम को पूर्ण अधिकार दिया। इसके बाद देश की अर्थव्यवस्था को विदेशी निवेश के लिए खोला गया, घरेलू बाजार को विनियमित किया जाने लगा और व्यापार व्यवस्था में सुधार करने जैसी नीतियां लागू की गईं, जिसने भविष्य के आर्थिक विकास की नींव रखी।
घोटालों की वजह से भी चर्चा में रहे राव
हालांकि, प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए राव को झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) रिश्वत कांड और हर्षद मेहता शेयर बाजार घोटाले जैसे प्रकरणों के कारण राजनीतिक शर्मिंदगी का भी सामना करना पड़ा।
कांग्रेस ने क्यों बनाई राव से दूरी?
इसके अलावा उस दौर में उन्हें बाबरी मस्जिद विध्वंस और उसके बाद हुए सांप्रदायिक दंगों के कारण भी काफी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा था। इस घटना से अल्पसंख्यक मतदाताओं के बीच कांग्रेस की स्थिति को काफी नुकसान पहुंचा। राव और सोनिया गांधी के बीच संबंधों में भी खटास बढ़ने लगी और फिर कांग्रेस ने राव से किनारा कर लिया। 3 दिसंबर, 2004 को उनके निधन के बाद पार्टी के शीर्ष नेताओं ने उन्हें सम्मान तक नहीं दिया।