कौन थे हरित क्रांति के जनक एमएस स्वामीनाथन, जिन्हें भारत रत्न से किया जाएगा सम्मानित?
केंद्र सरकार ने वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन को भारत रत्न (मरणोपरांत) देने का ऐलान किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक्स पर ट्वीट कर यह जानकारी दी है। यह भारत रत्न का सम्मान स्वामीनाथन को कृषि और किसानों के कल्याण में उनके उल्लेखनीय योगदान के लिए दिया जा रहा। प्रधानमंत्री ने लिखा, 'स्वामीनाथन ने चुनौतीपूर्ण समय के दौरान भारत को कृषि में आत्मनिर्भरता हासिल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और भारतीय कृषि को आधुनिक बनाने की दिशा में उत्कृष्ट प्रयास किए।'
प्रधानमंत्री ने कहा- कृषि को आत्मनिर्भर बनाने रही भूमिका
प्रधानमंत्री मोदी ने अपने पोस्ट में कहा, 'स्वामीनाथन के दूरदर्शी नेतृत्व ने न केवल भारतीय कृषि को बदला, बल्कि देश की खाद्य सुरक्षा और समृद्धि भी सुनिश्चित की है।' हम मार्गदर्शक के रूप में उनके अमूल्य कार्य को भी पहचानते हैं जो हमेशा छात्रों को सीखने और शोध करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।' प्रधानमंत्री मोदी ने आगे यह भी बताया कि वह स्वामीनाथन को बेहद करीब से जानते थे।
कौन थे एमएस स्वामीनाथ?
7 अगस्त, 1925 को तमिलनाडु के कुंभकोणम में जन्मे डॉ स्वामीनाथन को हरित क्रांति का जनक कहा जाता है। उनका पूरा नाम डॉ मनकोंबू संबासिवन स्वामीनाथन था। पिछले साल 98 वर्ष की आयु में 28 सितंबर को चेन्नई में उनका निधन हो गया। कृषि क्षेत्र में सराहनीय भूमिका के लिए उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया जा चुका है। स्वामीनाथन एक कृषि वैज्ञानिक, प्लांट जेनेटिक्स, प्रशासक और मानवतावादी थे। वह 1961-72 तक कृषि भारतीय अनुसंधान (IARI) के निदेशक रहे।
1943 की एक घटना ने बदला दृष्टिकोण
स्वामीनाथन को 1943 के बंगाल में आए भीषण अकाल ने झकझोर कर रख दिया था। इसके बाद ही उन्होंने जीव विज्ञान की पढ़ाई छोड़कर कृषि विज्ञान की पढ़ाई शुरू कर दी। स्वामीनाथन ने 1949 में आलू, गेहूं, चावल और जूट के जेनेटिक शोध कर अपना करियर शुरू किया था। उन्होंने धान की अधिक उपज देने वाली किस्मों को विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जिससे भारत के कम आय वाले किसानों को अधिक उपज करना आसान हो सका।
स्वामीनाथन ने कई बड़े पदों पर किया काम
स्वामीनाथन ने विभिन्न कृषि अनुसंधान प्रयोगशालाओं में प्रशासनिक पदों पर कार्य किया है। उन्होंने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद और अंतर्राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान के महानिदेशक के रूप में कार्य किया। उन्होंने 1979 में कृषि मंत्रालय के प्रधान सचिव के रूप में भी अपनी सेवाएं दीं। वह प्रकृति और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के अंतर्राष्ट्रीय संघ के अध्यक्ष भी रहे हैं। टाइम पत्रिका ने 1999 में उन्हें 20वीं सदी के 20 सबसे प्रभावशाली एशियाई व्यक्तियों की सूची में शामिल किया था।
देश में को अनाज के मामले में बनाया आत्मनिर्भर
स्वामीनाथन ने भारत में 'हरित क्रांति' की सफलता के लिए 1960 और 70 के दशक के दौरान सी सुब्रमण्यम और जगजीवन राम सहित कृषि मंत्रियों के साथ काम किया। इस कारण 1967-68 और 2003-04 के मध्य गेहूं के उत्पादन में 3 गुना से अधिक की वृद्धि हुई थी। इसी तरह अनाज के कुल उत्पादन में 2 गुना वृद्धि हुई थी। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम ने कृषि क्षेत्र में उनके योगदान के कारण ही 'इकॉनॉमिक इकॉलोजी' का जनक कहा था।
स्वामीनाथ ने किसानों के कल्याण के लिए किया काम
स्वामीनाथन किसानों के अधिकारों और कल्याण के प्रबल समर्थक थे। केंद्र ने 2004 में स्वामीनाथन की अध्यक्षता में राष्ट्रीय किसान आयोग का गठन किया, जिसने 2006 में अपनी रिपोर्ट में न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) औसत लागत से 50 प्रतिशत ज्यादा रखने और इसका दायरा बढ़ाने की सिफारिश की। इसमें राज्य स्तरीय किसान आयोग बनाने, सेहत सुविधा बढ़ाने और वित्त बीमा को मजबूत करने जैसी सिफारिशें भी थीं। किसान संगठन कई बार सिफारिशों को लागू करने की मांग कर चुके हैं।
स्वामीनाथ को कृषि क्षेत्र में योगदान के लिए मिले कई बड़े पुरस्कारों
दिवंगत वैज्ञानिक स्वामीनाथन को 1971 में रेमन मैग्सेसे पुरस्कार और 1986 में अल्बर्ट आइंस्टीन विश्व विज्ञान पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। उन्हें 1987 में पहले विश्व खाद्य पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। इसके बाद 1988 में चेन्नई में स्वामीनाथन रिसर्च फांउडेशन (MSSRF) की स्थापना की थी। इसके अलावा उन्हें पद्म श्री, पद्म भूषण और एच के फिरोदिया पुरस्कार, लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय पुरस्कार और इंदिरा गांधी पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है।