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    एमएस स्वामीनाथन: हरित क्रांति के जनक, जिनकी सिफारिशें किसान आंदोलनों का मुख्य हिस्सा बनीं 
    हरित क्रांति के जनक एमएस स्वामीनाथन का निधन हो गया है

    एमएस स्वामीनाथन: हरित क्रांति के जनक, जिनकी सिफारिशें किसान आंदोलनों का मुख्य हिस्सा बनीं 

    लेखन महिमा
    Sep 28, 2023
    06:05 pm

    क्या है खबर?

    भारत के महान कृषि वैज्ञानिक और हरित क्रांति के जनक एमएस स्वामीनाथन का गुरुवार को निधन हो गया।

    98 वर्षीय स्वामीनाथन ने तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई में सुबह 11.20 मिनट पर अंतिम सांस ली।

    उन्होंने उच्च उपज वाली गेहूं और चावल की किस्मों के साथ अनाज के मामले में भारत को आत्मनिर्भर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

    उनके प्रयासों के कारण ही पंजाब-हरियाणा जैसे राज्य में कृषि उत्पादन बढ़ा और देश में हरित क्रांति आई।

    शुरुआती जीवन

    कैसा रहा स्वामीनाथन का शुरुआती जीवन?

    एमएस स्वामीनथन का पूरा नाम मोनकोम्बु संबासिवन स्वामीनाथन था। उनका जन्म 7 अगस्त, 1925 को तमिलनाडु के कंभकोणम में हुआ था।

    उन्होंने मद्रास विश्वविद्यालय से कृषि में और केरल के महाराज कॉलेज से जंतु विज्ञान में बैचलर ऑफ साइंस (BSc) की पढ़ाई की।

    इसके बाद वो PhD करने के लिए यूनाइटेड किंगडम (UK) चले गए और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से प्लांट जेनेटिक्स और साइटोजेनेटिक्स में शोध किया।

    वह 1961-72 तक कृषि भारतीय अनुसंधान (IARI) के निदेशक भी रहे।

    हरित क्रांति

    अनाज के मामले में भारत को बनाया आत्मनिर्भर

    आजादी के बाद भारत में आबादी बढ़ रही थी, लेकिन आबादी को खिलाने के लिए उपज में भारी कमी थी।

    स्वामीनाथन ने गेहूं और चावल की अधिक उपज देने वाली किस्मों को विकसित किया और इससे हरित क्रांति का जन्म हुआ।

    इस क्रांति के कारण ही वर्ष 1967-68 और वर्ष 2003-04 के मध्य गेहूं के उत्पादन में 3 गुना से अधिक की वृद्धि हुई थी। इसी तरह अनाज के कुल उत्पादन में 2 गुना वृद्धि हुई थी।

    आयोग

    किसानों की आत्महत्या की वजह जानने के लिए बने ऐतिहासिक आयोग की अध्यक्षता की

    उदारीकरण के बाद जब किसानों की आत्महत्याओं में वृद्धि देखी गई तो इसकी वजह जानने के लिए केंद्र सरकार ने 2004 में स्वामीनाथन की अध्यक्षता में राष्ट्रीय किसान आयोग का गठन किया।

    आयोग ने 2006 में सौंपी गई अपनी रिपोर्ट में न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) औसत लागत से 50 प्रतिशत ज्यादा रखने और इसका दायरा बढ़ाने की सिफारिश की।

    इसके अलावा राज्य स्तरीय किसान आयोग बनाने, सेहत सुविधा बढ़ाने और वित्त बीमा को मजबूत करने जैसी सिफारिशें भी की गईं।

    स्वामीनाथन आयोग रिपोर्ट

    लगभग हर किसान आंदोलन का हिस्सा रहती हैं स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशें

    स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट की सिफारिशों को सरकार ने पूरी तरह से लागू नहीं किया था और किसान संगठन कई बार सिफारिशों को लागू करने की मांग कर चुके हैं।

    आज भी देशभर में होने वाले किसान आंदोलनों में MSP पर स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशें लागू करने की मांग प्रमुख होती है। 2017-2018 में ये मांग बड़े पैमाने पर उठाई गई।

    कहा जाता है कि किसानी को कर्ज के चक्र से निकालने के लिए ये सिफारिश लागू करना जरूरी है।

    जानकारी

    चेन्नई में स्वामीनाथन रिसर्च फांउडेशन की स्थापना

    स्वामीनाथन ने 1988 में चेन्नई में स्वामीनाथन रिसर्च फांउडेशन (MSSRF) की स्थापना भी की। इसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में जीवन और आजीविका में सुधार और कृषि और ग्रामीण विकास के लिए आधुनिक विज्ञान और प्रौद्योगिकी के उपयोग में तेजी लाना है।

    कार्य 

     20वीं सदी के सबसे प्रभावशाली व्यक्तियों में से एक थे स्वामीनाथन

    स्वामीनाथन अपने योगदान के लिए पूरी दुनिया में मशहूर थे। टाइम पत्रिका ने 1999 में स्वामीनाथन को 20वीं सदी के 20 सबसे प्रभावशाली एशियाई व्यक्तियों की सूची में शामिल किया था।

    स्वामीनाथन ने 1979 में कृषि मंत्रालय के प्रधान सचिव के रूप में भी अपनी सेवाएं दी थीं।

    इसके अलावा उन्होंने 1982-88 में अंतरराष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान के महानिदेशक के रूप में काम किया, वहीं 1984-90 तक इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर एंड नेचुरल रिसोर्सेज के अध्यक्ष रहे।

    सम्मान और पुरस्कार

    स्वामीनाथन को मिले थे कई सम्मान और पुरस्कार

    हरित क्रांति के जनक स्वामीनाथन को उनके योगदान के लिए केवल देश ही नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी सम्मानित किया गया था। उन्हें कई विश्वविद्यालयों द्वारा डॉक्टरेट की उपाधि से सम्मानित किया था।

    2013 में लंदन की रॉयल सोसायटी सहित विश्व की 14 प्रमुख विज्ञान परिषदों ने स्वामीनाथन को अपना मानद सदस्य चुना था।

    उन्हें पद्म श्री (1967), पद्म भूषण (1972), पद्म विभूषण (1989), विश्व खाद्य पुरस्कार (1987) और अल्बर्ट आइंस्टीन विश्व विज्ञान पुरस्कार(1986) से भी सम्मानित किया गया।

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