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    मिलिए उस हस्ती से जिसने राजस्थान की रेतीली जमीन में लाखों पौधे लगाकर ला दी हरियाली

    मिलिए उस हस्ती से जिसने राजस्थान की रेतीली जमीन में लाखों पौधे लगाकर ला दी हरियाली

    लेखन प्रमोद कुमार
    Feb 07, 2020
    07:10 pm

    क्या है खबर?

    राजस्थान, जहां रेतीली जमीन और पानी की कमी के कारण पौधे नजर नहीं आते, उसी राज्य में एक व्यक्ति ऐसा भी है जिसने वहां हरियाली की बहार ला दी। इस शख्स ने सैंकड़ों, हजार नहीं बल्कि लाखों पौधे लगाए हैं।

    जी हां, नागौर के रहने वाले हिम्मता राम भाम्भू 5.5 लाख पौधे लगा चुके हैं। उन्हें अब भारत के चौथे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्मश्री से सम्मानित किया जाएगा।

    इसके बारे में हमने उनसे खास बातचीत की।

    शुरुआत

    1975 से शुरू किए थे पौधे लगाने

    हिम्मता राम ने नागौर के सुखवासी गांव में अपनी 95 वर्षीय दादी के साथ पहला पौधा लगाया था।

    अपनी शुरुआत के बारे में बताते हुए हिम्मता राम ने कहा, "मैंने 1975 से पौधे लगाने की शुरुआत की थी। मेरी दादी कहती थी कि पेड़ लगाने से बड़ा कोई पुण्य नहीं है। उन्होंने मुझसे कहा था कि पेड़ लगाओ और पशु-पक्षियों की सेवा करो। तब से मैं 5.5 लाख पौधे लगा चुका हूं, जिनमें से 3.5 लाख पेड़ बन चुके हैं।"

    जानकारी

    जमीन खरीदकर लगाए 11,000 पौधे

    1999 में हिम्मता राम ने छह हैक्टेयर जमीन खरीदकर इस पर 11,000 पौधे लगाए। आज यह एक तरह का जंगल बन चुका है, जहां हजारों की तादाद में पक्षी और सैंकड़ों पशु रहते हैं। हिम्मता राम रोजाना इनके चुगे और चारे का इतंजाम करते हैं।

    सफर

    लाखों पौधों की देखरेख कैसे की?

    हिम्मता राम ने बताया कि वो किसानों को इकट्ठा कर उन्हें पौधे देते थे। किसान अपने घर या खेत में पौधे लगाते। इसका बकायदा रिकॉर्ड रखा जाता है और हर छह महीने में वो खुद जाकर पौधों की जांच करते हैं।

    उन्होंने कई स्कूलों में बड़ी संख्या में पौधे लगाए। लोगों में जागरूकता फैलाने के लिए उन्होंने कई पर्यावरण संगोष्ठियां और महोत्सव आयोजित करवाए।

    हिम्मता राम खुद यहां कविताएं पढ़कर लोगों को संदेश देते थे।

    बयान

    पेड़-पौधों से बड़ा मेरे लिए कोई सुख नहीं- हिम्मता राम

    हिम्मता राम ने बताया, "पौधे बड़े होते देखकर मुझे लगता है कि इससे बड़ा सुख कोई नहीं है। आदमी का शरीर 80-100 साल में खत्म हो जाएगा, लेकिन पेड़-पौधे 300-400 साल तक रहते हैं।"

    चुनौतियां

    सफर में कैसी मुश्किलें आईं?

    अपने सफर की चुनौतियों के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा, "शिकारियों के खिलाफ केस दर्ज करवाए, उनके खिलाफ संघर्ष किया। बहुत मुश्किलें आईं, लेकिन दिल इतना मजबूत कर लिया कि कुछ भी हो जाए, पेड़-पौधे और जानवरों को बचाना है।"

    उन्होंने आगे कहा, "जानवरों और पेड़ों के पास वोट का अधिकारी नहीं होता। इनकी सुनने वाला कोई नहीं है। आदमी के लिए कानून है, लेकिन इनकी कोई सुध नहीं लेता। मैंने इनकी पैरवी करने की ठान रखी है।"

    बयान

    पैसा कहां से आता है?

    हिम्मता राम ने बताया कि इस काम के लिए सारा पैसा वे अपनी जेब से खर्च करते हैं। उनका बेटा नौकरी करता है और इस काम में उनकी सहायता करता है। इसके अलावा वे खेती करके कमाए हुए पैसे भी काम में लगाते हैं।

    मौजूदा हालात

    पर्यावरण को लेकर मौजूदा हालातों पर क्या कहना है?

    हिम्मता राम ने इस सवाल पर कहा, "आजकल जंगल कट रहे हैं, अवैध खनन हो रहे हैं, पर्यावरण को नुकसान पहुंच रहा है। अगर 1,000 गुना विकास हुआ है तो 5,000 गुना विनाश हुआ है। अब भी हम नहीं जागे तो तापमान में बढ़ोतरी होगी और ऑक्सीजन की दुकानें खुलेंगी।"

    पर्यावरण को लेकर सरकारों की गंभीरता पर हिम्मता राम ने कहा कि सरकारें पर्यावरण को लेकर गंभीर नहीं हैं। अगर सरकारों ने गंभीरता दिखाई होती तो ये हालात नहीं होते।

    रूटीन

    ऐसी होती है तो हिम्मता राम की दिनचर्या

    अपने दिनचर्या के बारे में बताते हुए हिम्मता राम ने कहा कि वो सुबह उठने के बाद सबसे पहले पक्षियों को चुगा डालते हैं और जानवरों को चारा खिलाते हैं।

    इसके बाद वो पेड़-पौधों की देखरेख आदि के लिए निकल जाते हैं। वो किसानों से मिलकर पौधों के बारे में बातचीत करते हैं।

    इस दौरान अगर कहीं पेड़ कटने की खबरें या किसी जानवर की मौत या घायल होने की बात पता चले तो वहां पंहुच जाते हैं।

    सम्मान

    'पशु-पक्षियों की प्रार्थना से मिला पद्मश्री'

    हमने हिम्मता राम से पूछा कि जब पद्मश्री के लिए उनके नाम की घोषणा हुई तो वो क्या कर रहे थे?

    इसके जवाब में उन्होंने कहा, "मैं जानवरों को पानी पिला रहा था, तभी मेरे पास गृह मंत्रालय से फोन आया। मूक पशु-पक्षियों ने भगवान से प्रार्थना की होगी, जो दिल्ली तक पहुंची। इसी वजह से मुझे यह सम्मान मिला है। मैं यह सम्मान अपनी दादी और पशु-पक्षियों को समर्पित करता हूं। मैं दादी के बताए रास्ते पर चला हूं।"

    सम्मान

    राष्ट्रपति से भी मिल चुके हैं हिम्मता राम

    69 वर्ष के हो चुके हिम्मता राम से हमने उनका अगला लक्ष्य पूछा। उन्होंने कहा, "मैं 2030 तक दो लाख पौधे लगाकर उन्हें पेड़ बनाकर छोड़ूंगा। सम्मान काम को मिलता है, आदमी को नहीं। अगर सम्मान नहीं मिलता तब भी मैं यही काम करता रहता।"

    हिम्मता राम बीती 3 जनवरी को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से भी मिल चुके हैं। उन्होंने राष्ट्रपति से जल, जंगल, जीव, जलवायु, जमीन और जनसंख्या पर बात की।

    बयान

    न्यूजबाइट्स के पाठकों के लिए हिम्मता राम का संदेश

    हिम्मता राम ने कहा कि एक आदमी अपने जीवन में 50 पौधों का खात्मा करता है। उसे अपने जीवन में कम से कम 50 पौधे लगाने चाहिए। तभी उसकी जीवन सार्थक होगा। अगर पर्यावरण नहीं बचेगा तो इंसान भी नहीं बचेगा।

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