सलाम वेंकी: कौन थे के वेंकटेश, जिन पर बनी है काजोल की फिल्म?
क्या है खबर?
काजोल और विशाल जेठवा की फिल्म 'सलाम वेंकी' 9 दिसंबर को रिलीज हुई है। फिल्म श्रीकांत मूर्ति की किताब 'द लास्ट हुर्रे' पर आधारित है। यह 2005 में आई थी।
यह किताब कोलावेनु वेंकटेश के जीवन पर आधारित है जो मरने से ठीक पहले 'मरने के अधिकार' के लिए कानूनी लड़ाई लड़ रहे थे। इसमें उनका साथ उनकी मां के सुजाता दे रही थीं।
आइए, जानते हैं के वेंकटेश और इच्छामृत्यु की उनकी लड़ाई के बारे में।
बीमारी
मांसपेशियों की दुर्लभ बीमारी से पीड़ित थे वेंकटेश
वेंकटेश DMD नामक एक दुर्लभ बीमारी से पीड़ित थे जिसमें व्यक्ति की मांसपेशियां धीमे-धीमे कमजोर होती हैं और एक दिन उसका सारा शरीर काम करना बंद कर देता है।
इस बीमारी ने वेंकटेश को मात्र छह साल की उम्र से व्हीलचेयर पर ला दिया था, जो 18 साल तक चली।
इस दौरान उनकी मां के सुजाता ने उनकी खूब देखभाल की और अपने बेटे की जिंदगी को लंबा करने की कोशिश में जुटी रहीं।
चेस
चेस को बनाया जीने का जरिया
बीमारी से जूझते हुए वेंकटेश एक सामान्य जीवन जीने की कोशिश कर रहे थे। इस दौरान चेस में उनकी दिलचस्पी जागी।
उन्होंने चेस को ही अपने जीने का जरिया बना लिया। वह होनहार चेस खिलाड़ी साबित हुए और कई प्रतियोगिताएं भी जीतीं।
'सलाम वेंकी' में भी दिखाया जाता है कि वेंकटेश का सपना विश्वनाथन आनंद के साथ एक गेम खेलना था। वह अस्पताल में भी चेस खेलकर अपना समय बिताते थे।
अंगदान
अंगदान करना चाहते थे वेंकटेश, इसलिए मांगी इच्छामृत्यु
इससे पहले कि उनकी बीमारी से उनके सारे अंग खराब हो जाएं, वेंकटेश अंगदान करना चाहते थे।
इसके लिए उनकी मां ने आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट में अपने बेटे के लिए इच्छामृत्यु के लिए अपील दायर की।
हाई कोर्ट ने उनकी अपील खारिज कर दी। कोर्ट के इस फैसले के दो दिन बाद, 18 दिसंबर 2004 को वेंकटेश ने अपने शहर हैदराबाद में अंतिम सांस ली। वह 25 वर्ष के थे।
आखिर में उनकी आंखें ही दान हो सकी थीं।
कानूनी लड़ाई
कानून में बदलाव के लिए मां ने जारी रखी लड़ाई
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार उनकी मौत के बाद उनकी मां ने अपने बयान में कहा था, "मुझे हमेशा से पता था वह ज्यादा दिन नहीं रहेगा, फिर भी भरोसा नहीं होता कि अब वह नहीं है।"
भले ही सुजाता के बेटे की इच्छा पूरी नहीं हो सकी हो, लेकिन उन्होंने कानून में बदलाव की लड़ाई जारी रखी और इसके लिए सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दी।
कानून
2018 में सुप्रीम कोर्ट ने दी थी इच्छामृत्यु की वसीयत को अनुमति
मार्च 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने पैसिव युथेनेशिया (निष्क्रिय इच्छामृत्यु) के लिए वसीयत को कानूनी मान्यता दी थी।
कोर्ट ने एक NGO की याचिका पर यह फैसला दिया था।
किसी लाइलाज बीमारी से पीड़ित व्यक्ति अपने लिए वसीयत लिख सकता है कि मरणासन्न होने और सहमति न दे पाने की स्थिति में उसका उपचार रोक दिया जाए और उसे सम्मानजनक मौत दे दी जाए।
डॉक्टरों की टीम पहले सुनिश्चित करेगी कि मरीज के बचने की कोई संभावना नहीं है।