रणदीप हुड्डा ने कहा- मैं फिल्में दर्शकों के लिए बनाता हूं, बॉलीवुड के लिए नहीं
अभिनेता रणदीप हुड्डा को पिछली बार फिल्म 'स्वातंत्र्य वीर सावरकर' में नजर आए थे। उनकी यह फिल्म भले ही टिकट खिड़की पर फेल हो गई, लेकिन रणदीप ने फिल्म में खुद को पूरी तरह झाेंक दिया। फिल्म में उनके काम की खूब तारीफ हुई। हाल ही में रणदीप ने अपनी इस फिल्म पर बात की और कहा कि बॉलीवुड से किसी का भी समर्थन नहीं मिला। आइए जानते हैं क्या कुछ बोले रणदीप।
OTT रिलीज ने कर दी नुकसान की भरपाई
ईटाइम्स से रणदीप ने कहा, "आजकल सब एक ही थाली के चट्ट-बट्टे हैं। अगर यह फिल्म प्रोपेगेंडा ही होती तो इसे पर्दे पर तक लाने में मैंने इतना संघर्ष न किया होता। हमारे इतिहास ने सावरकर को भुला दिया। मैंने फिल्म को हुए नुकसान की भरपाई कर ली है। OTT प्लेटफॉर्म पर इसे जगह मिल चुकी है। बॉलीवुड की तरफ से मुझे कोई समर्थन नहीं मिला। मैं फिल्में दर्शकों के लिए बनाता हूं, इंडस्ट्री के लिए नहीं।"
मुझे इंडस्ट्री से किसी की रजामंदी नहीं चाहिए- रणदीप
रणदीप कहते हैं, "मैं दर्शकों के साथ जुड़े रहने पर ध्यान देता हूं। मुझे फिल्म इंडस्ट्री या बॉलीवुड के लोगों की रजामंदी या स्वीकृति नहीं चाहिए। मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। दर्शक मेरे बारे में क्या सोचते हैं, मेरे लिए सिर्फ यही मायने रखता है।" इससे पहले एक इंटरव्यू में रणदीप ने बताया था कि उन्होंने 'स्वातंत्र्य वीर सावरकर' के लिए अपना सबकुछ दांव पर लगा दिया था। अभिनेता ने अपने पिता की संपत्ति तक बेच दी थी।
'स्वातंत्र्य वीर सावरकर' के बारे में जानिए
'स्वातंत्र्य वीर सावरकर' की कहानी वीर सावरकर के जीवन पर आधारित है, जो उनके बचपन से लेकर उनके जीवन के अंतिम चरण तक की यात्रा तय करती है। रणदीप ने सावरकर के किरदार को पूरी शिद्दत से पर्दे पर जिया। फिल्म में रणदीप के अलावा अंकिता लोखंडे और अमित सियाल जैसे कलाकार भी अहम भूमिका में दिखे थे। रणदीप ने फिल्म का निर्देशन भी किया और उत्कर्ष नैथानी के साथ मिलकर फिल्म की कहानी भी लिखी।
कौन थे वीर सावरकर?
सावरकर का जन्म 28 मई, 1883 को नासिक के भागपुर गांव में हुआ था। उनका पूरा नाम विनायक दामोदर सावरकर है। वह एक स्वतंत्रता सेनानी, राजनीतिज्ञ, वकील, समाज सुधारक और हिंदुत्व के दर्शन के सूत्रधार थे। वह अपनी बहादुरी के लिए जाने जाते थे, इसलिए उन्हें 'वीर' उपनाम मिला। सावरकर ने 'मित्र मेला' के नाम से एक संगठन की स्थापना की, जिसने लोगों को भारत की 'पूर्ण राजनीतिक स्वतंत्रता' के लिए लड़ने के लिए प्रेरित किया।