राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता संगीतकार वनराज भाटिया का निधन, स्मृति ईरानी ने भी दी श्रद्धांजलि
कोरोना काल में फिल्म इंडस्ट्री के कई कलाकारों ने हमारा साथ छोड़ा है। अब हिंदी सिनेमा के जाने-माने संगीतकार वनराज भाटिया भी इस दुनिया में नहीं रहे। 93 वर्षीय भाटिया उम्र संबंधी समस्याओं से जूझ रहे थे। बीते कुछ समय से उनकी तबियत काफी नासाज थी। उन्होंने फिल्मों से लेकर टीवी धारावाहिकों और विज्ञापनों को अपना संगीत दिया था। सोशल मीडिया पर प्रशंसकों से लेकर स्मृति ईरानी ने भी उन्हें श्रद्धांजलि दी है। आइए पूरी खबर जानते हैं।
अंतिम समय में आर्थिक तंगी से जूझ रहे थे वनराज
वनराज अपने अंतिम समय में मुंबई के एक अपार्टमेंट में केयर टेकर के भरोसे रह रहे थे। वह आर्थिक तंगी से जूझ रहे थे। पेट भरने के लिए उन्हें अपने घर के बर्तन तक बेचने पड़े थे। इंडियन परफॉर्मिंग राइट सोसायटी ( IPRS ) भी उनकी मदद को आगे आई थी। वनराज के घुटनों में दर्द रहता था, जिसके चलते बिस्तर से उठकर चलना-फिरना मुश्किल था। सुनाई देना लगभग बंद हो गया था और उनकी याददाश्त कमजोर हो चुकी थी।
केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने जताया दुख
केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने लिखा, 'वनराज भाटिया के निधन के बारे में जानकर दुख हुआ। वागले की दुनिया, जाने भी दो यारों, वह अपने संगीत में अनगिनत यादों को पीछे छोड़ गए हैं। उनके चाहने वालों के प्रति मेरी संवेदना।' फरहान अख्तर ने ट्वीट किया, 'RIP वनराज भाटिया। संगीत के क्षेत्र में उन्होंने कमाल का काम किया। मुझे याद है 'तमस' का वो थीम ट्रैक, जिसकी दर्द से भरी शुरुआत किसी की भी अंतरआत्मा को चीर सकती है।'
यहां देखिए स्मृति ईरानी का पोस्ट
वनराज को राष्ट्रीय पुरस्कार के साथ संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार और पद्मश्री भी मिला
श्याम बेनेगल की फिल्म 'अंकुर' से अपने फिल्मी करियर की शुरुआत करने वाले वनराज भाटिया 'मंथन', 'भूमिका', 'जाने भी दो यारों', '36 चौरंगी लेन' जैसी फिल्मों से हिंदी सिनेमा में लोकप्रिय हुए। 1988 में रिलीज हुई फिल्म 'तमस' के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ संगीतकार का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिला। 1989 में उन्हें संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया, वहीं, 2012 में उन्हें भारत सरकार द्वारा देश का चौथा सबसे बड़ा सम्मान पद्मश्री दिया गया था।
वनराज भाटिया ने बनाए करीब 7,000 जिंगल्स
वनराज ने करीब 7,000 विज्ञापनों के जिंगल्स बनाए थे। उन्होंने निर्देशक श्याम बेनेगल की नौ फिल्मों 'अंकुर', 'भूमिका', 'मंथन', 'जुनून', 'कलयुग', 'मंडी', 'त्रिकाल', 'सूरज का सातवां घोड़ा' और 'सरदारी बेगम' में संगीत दिया था। इसके अलावा 'भारत एक खोज' के गाने 'सृष्टि से पहले सत्य नहीं था' में भी उनका संगीत सुना गया था। उनके द्वारा संगीतबद्ध किए गए गाने 'हम होंगे कामयाब' (जाने भी दो यारों') और 'मारे गाम काथा पारे' (मंथन) काफी लोकप्रिय रहे हैं।