जयंती विशेष: शमशाद बेगम यूं बनीं थीं भारत की पहली महिला सिंगिंग सुपरस्टार
'कजरा मोहब्बत वाला', 'कभी आर कभी पार', 'लेके पहला-पहला प्यार' जैसे गाने आज की युवा पीढ़ी भी गुनगुनाती है। इन गानों को गाने वालीं शमशाद बेगम ने संगीत इंडस्ट्री को ऐसे ही कई यादगार गाने दिए हैं। शमशाद को भारत की पहली महिला सिंगिंग सुपरस्टार कहा जाता है। उनकी आवाज की तुलना मंदिर की घंटियों से होती थी। 14 अप्रैल को शमशाद की 104वीं जयंती है। इस मौके पर जानते हैं शमशाद बेगम के सफर के बारे में।
लाहौर में हुआ था शमशाद का जन्म
शमशाद का जन्म लाहौर में 14 अप्रैल, 1919 को हुआ था। उनके पिता मियां हुसैन बख्श पेशे से मैकेनिक थे। उनकी मां गुलाम फातिमा एक गृहणी थीं। शमशाद ने गाने की कोई औपचारिक ट्रेनिंग नहीं ली थी, लेकिन अच्छी आवाज होने के कारण वह स्कूल में प्रार्थना गाया करती थीं। शमशाद के पिता उनकी गायिकी के खिलाफ थे, लेकिन उनके मामा उनको प्रोत्साहित करते थे। मामा के सहयोग से ही उन्होंने सार्वजनिक प्रस्तुति देना शुरु किया था।
ऑल इंडिया रेडियो, लाहौर में दी थी पहली प्रस्तुति
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, एक बार उनके मामा उन्हें चुपके से एक ऑडिशन के लिए ले गए। यहां गुलाम हैदर को उनकी आवाज पसंद आई और उन्हें ऑल इंडिया रेडियो, लाहौर में गाने का मौका दिया। यह गुलामी के उस दौर की बात है, जब शायद ही आम लोग प्लेबैक सिंगिंग का मतलब जानते हों। ऐसे में शमशाद के गाने को लेकर उनके घर में खूब खटपट हुई। हालांकि, एक शर्त के बाद उनके पिता इसके लिए राजी हो गए।
पहले ही ऑडिशन में मिला था 12 गानों का कॉन्ट्रैक्ट
गायिकी की इजाजत देने के लिए उनके पिता ने शर्त रखी कि वह कभी भी कैमरे के सामने नहीं आएंगी। ना ही अखबारों में उनकी फोटो छपेगी। इसके अलावा उन्हें बुर्का भी पहनना होगा। शमशाद ने पिता की यह शर्त मान ली और गायिकी में कदम रखा। यही वजह है कि शमशाद के युवा दिनों की तस्वीरें उपलब्ध नहीं है। कहा जाता है कि पहले ही ऑडिशन के बाद उन्हें 12 गानों का कॉन्ट्रैक्ट मिल गया था।
गायिकी के लिए मुंबई में बस गईं शमशाद
शमशाद प्लेबैक सिंगिग के लिए मुंबई आ गईं। उन्हें गायिकी में मौका देने वाले गुलाम हैदर विभाजन के बाद पाकिस्तान में बस गए, जबकि शमशाद ने भारत को अपना वतन माना। शमशाद ने 1934 में गणपत लाल बट्टो से प्रेम विवाह किया था। 1955 में उनके पति की सड़क हादसे में मौत हो गई। पति की मौत के बाद वह खुद को संभाल नहीं सकीं और धीरे-धीरे वह गायिकी से भी दूर हो गईं।
2009 में मिला पद्म भूषण
हालांकि, उनकी बेटी ने एक इंटरव्यू में कहा था कि उन्होंने इंडस्ट्री की राजनीति से परेशान होकर गायिकी छोड़ी थी। संगीतकार ओपी नैय्यर उनकी आवाज को 'टेंपल बेल' (मंदिर की घंटी) कहते थे। 2009 में उन्हें प्रतिष्ठित ओपी नैय्यर पुरस्कार दिया गया था। इसी साल उन्हें पद्म भूषण से भी नवाजा गया था। 23 अप्रैल, 2013 को लंबी बीमारी के बाद उनका निधन हो गया था। अपने अंतिम दिनों में वह अपनी बेटी और दामाद के साथ रहती थीं।