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    पिता की मृत्यु के कारण छोड़ना पड़ा था स्कूल, फिर 19 साल बाद बने IAS अधिकारी

    पिता की मृत्यु के कारण छोड़ना पड़ा था स्कूल, फिर 19 साल बाद बने IAS अधिकारी

    लेखन मोना दीक्षित
    Jun 18, 2019
    09:40 pm

    क्या है खबर?

    हर साल लाखों छात्र संघ लोक सेवा आयोग की सिविल सेवा परीक्षा के लिए उपस्थित होते हैं, जिन्होंने IAS अधिकारी बनने के लिए बड़े पैमाने पर तैयारी की होती है। हालांकि, कुछ ही अपने सपनों को हासिल कर पाते हैं।

    रानीपेत के उपजिलाधिकारी के. इलंबाहवाथ उन आवेदकों में से एक हैं, जिन्होंने इसको पास किया।

    इलंबाहवाथ को किसी सरकारी कार्यालय से निकाल दिया गया था, जिसके बाद उन्होंने 19 साल तक खूब मेहनत की और फिर IAS अधिकारी बन गए।

    जानकारी

    पिता की मृत्यु के बाद छोड़ना पड़ा स्कूल

    इलंबाहवाथ बारहवीं का छात्र था, जब 1997 में जीवन ने एक अलग मोड़ लिया और उनके पिता की मृत्यु हो गई। उनके पिता एक गाँव के प्रशासनिक अधिकारी थे। 1982 में चोलगंगुडीक्कडु (तमिलनाडु) में जन्में इलंबाहवाथ ने आर्थिक तंगी के कारण पढ़ाई छोड़ दी।

    नौकरी

    LDC के लिए किया था आवेदन

    इलंबाहवाथ ने द बेटर इंडिया को बताया कि वह अपने भविष्य के बारे में स्पष्ट थे, लेकिन यह जानते थे कि खेती में अच्छा भविष्य नहीं है।

    उन्होंने दयालु मृत सरकारी सेवकों के परिवार के सदस्यों के लिए एक जूनियर सहायक (LDC) पद के लिए आवेदन किया था।

    हालांकि, जिला कलेक्टर के कार्यालय ने प्रशासनिक कारणों का हवाला देते हुए उनके आवेदन को खारिज कर दिया।

    उन्होंने कहा कि 15 साथी उम्मीदवारों को भाग्य का साथ मिला।

    जानकारी

    सरकारी दफ्तरों के लगाए चक्कर

    इलंबाहवाथ और अन्य उम्मीदवारों ने कई अधिकारियों से संपर्क किया, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। उन्होंने कहा कि वे पूरे दिन पहले दोपहर में खेतों में काम और फिर सरकारी कार्यालयों में नौकरी के लिए अनुरोध करते थे। उन्होंने यह लड़ाई नौ साल तक लड़ी।

    बयान

    स्थिति को बदलना चाहते थे इलंबाहवाथ

    बार-बार असफल होने के बाद इलंबाहवाथ ने एक अधिकारी के रूप में जिला कलेक्टर कार्यालय लौटने का संकल्प लिया।

    उन्होंने कहा, "नौकरशाही उदासीनता ने कई वरिष्ठ IAS अधिकारियों को हमारी आवाज़ सुनने की अनुमति नहीं दी। मैं अच्छे के लिए स्थिति को बदलना चाहता था।"

    फिर उन्होंने लॉंग-डिस्टेंस के माध्यम से मद्रास विश्वविद्यालय से इतिहास में स्नातक पूरी की और फिर बिना किसी अतिरिक्त कोचिंग के UPSC सिविल सेवाओं के लिए तैयारी की।

    तैयारी

    पब्लिक लाइब्रेरी से शुरु की तैयारी

    इलंबाहवाथ ने एक पब्लिक लाइब्रेरी में अध्ययन किया, जो IAS उम्मीदवारों की मदद करती थी।

    उन्होंने कहा, "पट्टुकोट्टई में हम 10 सिविल सर्विसेज उम्मीदवारों का एक समूह थे। हमारे सेवानिवृत्त हेडमास्टर श्री ए टी पनेर सेल्वम और कई शुभचिंतक मददगार थे।"

    आखिरकार वह परीक्षा को पास करके तमिलनाडू सरकार द्वारा मुफ्त सिविल सेवा कोचिंग के लिए पात्र बन गए।

    वे UPSC के तीन प्रयासों में असफल रहे, लेकिन कई तमिलनाडू लोक सेवा आयोग परीक्षाओं को पास कर गए।

    जानकारी

    नौकरी खोजने के बाद भी जारी रखी तैयारी

    उन्होंने कहा, "मैं राज्य सरकार के समूह 1 सेवा में शामिल हो गया, जिसमें सहायक निदेशक (पंचायत), DSP, आदि शामिल हैं। मैंने काम करते हुए UPSC की तैयारी जारी रखी।" वह पांच मेन और तीन साक्षात्कार में उपस्थित हुए, लेकिन हर बार असफल रहे।

    मौका

    सारे प्रयास खत्म होने के बाद मिला एक मौका

    इलंबाहवाथ ने TBI को बताया कि, "2014 में मैं राज्य सिविल सेवाओं में शामिल हो गया। केंद्र सरकार ने सिविल सेवा एप्टीट्यूड टेस्ट से प्रतिकूल रुप से प्रभावित होने वालों के लिए दो और प्रयास दिए। मैंने मौका पकड़ा और फिर कर दिखाया।"

    उन्होंने 2015 में सिविल सेवाओं के लिए अंतिम प्रयास किया और अखिल भारतीय रैंक (AIR) 117 हासिल की। उसके बाद वे राज्य कैडर में IAS रहे।

    हार्डवर्क

    कहा हार्डवर्क का नहीं कोई विकल्प

    2016 में इलंबाहवाथ रानीपेत के उप-कलेक्टर बन गए। उन्होंने कहा कि, "मैं उन लोगों के दुख का अनुभव कर सकता हूं जिनकी आवाजें नहीं सुनी जाती हैं।"

    वह अपने कर्मचारियों को सरकारी कार्यालय के कोरीडोर में प्रतीक्षा करने वालों से बात करने के निर्देश देते हैं।

    हालांकि, वह लोगों से सरकारी नौकरियों को उदासीन बनाने से रोकने का भी आग्रह करते हैं।

    अंत में उन्होंने कहा कि हार्डवर्क का कोई विकल्प नहीं है। कभी भी अपने सपने मत छोड़ो।

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