बच्चों को कितने समय मोबाइल-लैपटॉप चलाने देना चाहिए और अन्य किन चीजों का रखें ध्यान?
क्या है खबर?
आज के युग में मोबाइल और लैपटॉप जैसे डिजिटल उपकरणों का प्रयोग बढ़ता जा रहा। कोरोना वायरस महामारी के साथ ही दुनिया डिजिटल हो चली है और बड़ों के साथ-साथ छोटे बच्चों का स्क्रीन टाइम भी बढ़ गया है।
कई अभिभावक अपने बच्चों के स्क्रीन टाइम को लेकर परेशान हैं, इसलिए सभी माता-पिता के लिए स्क्रीन एक्सपोजर को बेहतर तरीके से समझना जरूरी हो गया है।
आइए हम आपको बच्चों के स्क्रीन एक्सपोजर से संबंधित महत्वपूर्ण बातें बताते हैं।
स्क्रीन
बुद्धिमानी से स्क्रीन का उपयोग करने में नहीं है कोई बुराई
अभिभावकों के लिए यह समझना जरूरी है कि किसी भी डिजिटल स्क्रीन का उपयोग बुद्धिमानी से करना चाहिए और इससे संबंधित सब कुछ बुरा नहीं होता है।
कई लोग स्क्रीन एक्सपोजर को एक दानव के रूप में देखते हैं और इसे बच्चों के उपयोगी समय की बर्बादी मानते हैं।
हालांकि, डिजिटल उपकरणों के माध्यम से दोतरफा संचार पर आधारित इंटरैक्टिव सत्र बच्चों के सीखने का एक बड़ा स्रोत हो सकते हैं। ऐसे ही अन्य उपयोगी लाभ भी हैं।
सुझाव
किस उम्र के बच्चे के लिए कितने स्क्रीन टाइम का सुझाव दिया गया है?
अमेरिकन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स (AAP) के दिशानिर्देशों के अनुसार, दो से छह साल की उम्र के बच्चे अपने माता-पिता की निगरानी में एक दिन में एक घंटे तक (ब्रेक के साथ) अपनी पढ़ाई के लिए स्क्रीन देख सकते हैं।
वहीं ऐसे माता-पिता जिनके बच्चों की उम्र दो साल से कम है, उन्हें अपने बच्चों को स्क्रीन के सीधे संपर्क में नहीं आने देना चाहिए। यानि दो साल के बच्चों को मोबाइल जैसी डिजिटल डिवाइस देनी ही नहीं चाहिए।
UNICEF
स्क्रीन टाइम को लेकर UNICEF की रिपोर्ट में इन बातों का जिक्र
UNICEF की रिपोर्ट 'ग्रोईंग अप इन कनेक्टेड वर्ल्ड' में कहा गया है कि बच्चों के डिजिटल या तकनीकी अनुभवों पर विचार करते समय उनके माता-पिता को यह ध्यान देने की जरूरत है कि उनके बच्चे को ऑनलाइन क्या करना चाहिए और उनके सामने जो कंटेंट आता है, वो किस प्रकार का है।
रिपोर्ट में बताया गया कि माता-पिता को केवल स्क्रीन एक्सपोजर की मात्रा पर विचार करने के बजाय सुरक्षित और ज्ञानवर्धक कंटेंट पर ध्यान देने की आवश्यकता है।
पहचान
माता-पिता बच्चों को गलत-सही डिजिटल कंटेंट की कराएं पहचान
जिस तरह माता-पिता अपने बच्चों के साथ स्वस्थ भोजन की आदतों के बारे में बात करते हैं, उसी तरह उन्हें बच्चों को वर्चुअल दुनिया में छोड़ने से पहले, यानि मोबाइल जैसे डिजिटल उपकरण उनके हाथ में देने से पहले, कौन-सा कंटेंट गलत है और कौन-सा सही, इसकी जानकारी दे देनी चाहिए।
जब माता-पिता अपने बच्चों को यह जानकारी डिजिटल उपकरण के प्रयोग के पहले ही दे देंगे तो उन्हें गलत-सही की समझ भी जल्द हो जाएगी।
पालन
डिजिटल फूड पिरामिड का करें पालन
बच्चों को कितनी देर कौन-सा कंटेंट देखना चाहिए, इसके लिए डिजिटल फूड पिरामिड एक अच्छा उदाहरण हो सकता है।
उदाहरण के तौर पर, फिटनेस, जीमेल और शैक्षणिक सामग्रियों से जुड़ी वेबसाइटों को पिरामिड में सबसे निचले स्थान पर रखना चाहिए।
इसके बाद एंटरटेनमेंट, सोशल मीडिया और गेमिंग जैसे प्लेटफॉर्म को सबसे ऊपर रखना चाहिए क्योंकि ऐसी वेबसाइटों पर बच्चे अधिक समय (एक घंटे से अधिक) देते हैं और बच्चे इनका उपयोग जितना कम करेंगे, उतना बेहतर होगा।