
कम वेतन के कारण केवल 2 प्रतिशत IIT ग्रेजुएट बनते हैं ISRO का हिस्सा
क्या है खबर?
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के पूर्व प्रमुख एस सोमनाथ का 2023 का एक वीडियो वायरल हो रहा है।
इस वीडियो में उन्होंने साक्षात्कार के दौरान ISRO में नौकरी की स्थिति पर जानकारी दी थी।
उन्होंने बताया कि जब IIT छात्रों को ISRO का वेतन ढांचा दिखाया गया, तो लगभग 60 प्रतिशत छात्र भर्ती प्रक्रिया से बाहर चले गए। उन्होंने कहा कि हर साल सिर्फ 1 प्रतिशत से भी कम IIT स्नातक ISRO से जुड़ने का विकल्प चुनते हैं।
संख्या
केवल 2 प्रतिशत IIT ग्रेजुएट ही बने थे ISRO का हिस्सा
सोमनाथ के अनुसार, IIT के छात्र देश की सर्वश्रेष्ठ तकनीकी प्रतिभाओं में गिने जाते हैं, लेकिन फिर भी बहुत कम लोग ISRO में नौकरी करना चाहते हैं।
टाइम्स नाउ की रिपोर्ट बताती है कि 2014 में एक RTI के जवाब में सामने आया था कि ISRO में सिर्फ 2 प्रतिशत ही IIT स्नातक कार्यरत थे।
इंटरव्यू में उन्होंने यह भी कहा कि छात्रों को करियर अवसर दिखाने के बाद वेतन की जानकारी दी गई, जिसे देखकर छात्र पीछे हट गए।
सवाल
वेतन ढांचे को लेकर उठे सवाल
ISRO में नए इंजीनियर को औसतन 56,000 रुपये मासिक वेतन मिलता है, जो अनुभव के आधार पर बदलता है।
वहीं, ISRO प्रमुख का वेतन करीब 2.5 लाख रुपये मासिक होता है। वैज्ञानिकों को अन्य भत्ते और प्रोत्साहन भी मिलते हैं। ISRO का पूरा वेतन ढांचा 7वें वेतन आयोग के अनुसार है।
इसके बाद सोशल मीडिया पर इस बात पर बहस शुरू हो गई कि इतनी कम तनख्वाह के कारण युवा ISRO छोड़कर निजी कंपनियों की ओर चले जाते हैं।
नाराजगी
डॉक्टरों ने जताई 'बॉन्ड पूर्वाग्रह' पर नाराजगी
इस वायरल वीडियो के बाद डॉक्टरों ने भी 'बॉन्ड' को लेकर नाराजगी जताई।
उन्होंने कहा कि मेडिकल ग्रेजुएट्स को सरकारी नौकरी के लिए अनिवार्य बॉन्ड भरना पड़ता है, जबकि IIT छात्रों को छूट मिलती है। डॉ. दीपक कृष्णमूर्ति ने कहा कि बॉन्ड की शर्तें इंजीनियरों पर भी लागू होनी चाहिए।
कई डॉक्टरों ने बॉन्ड को पुरानी सोच बताते हुए कहा कि कम वेतन में जबरदस्ती काम करवाना उत्साह खत्म कर देता है और प्रतिभा को आगे बढ़ने से रोकता है।