आखिर क्या है पाकिस्तान में सिख-मुस्लिमों के बीच तनाव का कारण?
क्या है खबर?
पाकिस्तान के ननकाना साहिब में गत शुक्रवार को भीड़ ने सिखों के धार्मिक स्थल ननकाना साहिब गुरुद्वारे पर पथराव किया और सिखों के खिलाफ जमकर नारे लगाए।
मामले में भीड़ का नेतृत्व करने वाले को सांप्रदायिक नारे लगाने और गुरु नानक देव के जन्मस्थान गुरुद्वारा ननकाना साहिब को मस्जिद में बदलने की धमकी देने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है।
इस घटना ने पाकिस्तान में सिखों की हालत को लेकर पूरे भारत सहित विश्व को स्तब्ध कर दिया है।
मामला
इस कारण हुआ था ननकाना साहिब गुरुद्वारे में विरोध प्रदर्शन
पाकिस्तान में सांप्रदायिक हिंसा आम है, लेकिन हम उस पर बाद में बात करेंगे।
शुक्रवार की घटना के बारे में हम एक मुस्लिम युवक मोहम्मद हसन और एक सिख महिला जगजीत कौर की शादी के मामले से अच्छी तरह से जान सकते हैं।
दोनों अगस्त 2019 में उस समय सुर्खियों में आए थे जब कौर के परिवार ने आरोप लगाया था कि हसन ने उनकी बेटी का अपहरण कर जबरन इस्लाम कुबूल कराया और फिर शादी कर ली।
डाटा
कौर ने किया स्वेच्छा से शादी का दावा
इस घटना का एक वीडियो सामने आया जिसमें कौर खुद को आयशा बीबी बता रही थी। वह कहती है कि उसने स्वेच्छा से हसन से शादी की है। उसने अपने ही परिवार पर जान से मारने की धमकी देने का भी आरोप लगाया था।
विरोध
हसन के परिवार ने किया था नेतृत्व, कर रहे थे परिजनों की रिहाई की मांग
शुक्रवार को ननकाना साहिब गुरुद्वारे पर किए गए प्रदर्शन का नेतृत्व हसन के भाई इमरान चिश्ती ने किया था। इस गुरुद्वारे में कौर के पिता ग्रन्थि है।
प्रदर्शन के वीडियो में इमरान सिखों को बेदखल करने तथा ननकाना साबिह को मस्जिद में बदलने की धमकी देता दिखाई दे रहा है।
वो जबरन धर्म परिवर्तन मामले में गिरफ्तार किए गए अपने रिश्तेदारों की रिहाई की मांग कर रहे थे। रविवार को इमरान को गिरफ्तार कर लिया गया था।
जबरन धर्म परिवर्तन
पाकिस्तान में आम बात है धर्म परिवर्तन
अब यह देखना रोचक होगा कि अदालत हसन के परिवार का पक्ष लेती हैं या कौर का। यह धर्म परिवर्तन का पहला मामला नहीं होगा।
पिछले साल भी एक और सिख किशोरी रेणुका कुमारी से जबरन सिख से इस्लाम से धर्म परिवर्तन कराया गया था। ऐसे में पाकिस्तान में जबरन धर्म परिवर्तन आम है।
इतना ही नहीं 2017 में, हंगू में एक सरकारी अधिकारी सिखों को जबरन इस्लाम में अपनाने के लिए मजबूर करता पाया गया था।
हत्याएं
उग्रवादियों द्वारा प्रमुख सिख नेताओं की हत्याएं
पाकिस्तान में सिखों के लिए मजबूरन धर्म परिवर्तन करना सबसे बड़ा सदमा नहीं है। कई सिख नेता हाल के वर्षों में पाकिस्तान में लक्षित हत्याओं का शिकार हुए हैं।
पेशावर में प्रमुख सिख नेता चरणजीत सिंह की कथित तौर पर गोली मारकर हत्या कर दी गई। वर्ष 2014 के बाद से चरमपंथियों द्वारा एक प्रमुख सिख की यह दसवीं हत्या थी।
2016 में अल्पसंख्यक मामलों के एक प्रांतीय मंत्री सोरन सिंह की भी गोली मारकर हत्या कर दी गई थी।
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कई हत्याओं का दोष तालिबान पर
सोरन की हत्या की जिम्मेदारी तालीबान ने ली और वह अक्सर अल्पसंख्यकों की अन्य हत्याओं से जुड़ा हुआ रहा है। हालांकि, पाकिस्तान इन लक्षित हमलों या सिखों पर तालिबान के भारी जज़िया कर को रोकने में विफल रहा है।
अन्य परेशानियां
सिखों को हिंसक हमलों का करना पड़ता है सामना
पाकिस्तान के अन्य अल्पसंख्यकों के बीच, सिखों को भी हिंसा और निन्दा के झूठे आरोपों का सामना करना पड़ता है, जैसा कि पाकिस्तान के मानवाधिकार आयोग द्वारा प्रकाशित '2018 में मानव अधिकारों की राज्य' रिपोर्ट द्वारा पुष्टि की गई है।
रिपोर्ट में धार्मिक अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न में वृद्धि से निपटने में पाकिस्तान के "घृणित प्रदर्शन" का उल्लेख किया गया है। सिखों के लिए ये अपहरण, जबरन वसूली और धार्मिक हिंसा के रूप में आते हैं।
संपत्ति बोर्ड
गुरुद्वारों सहित धार्मिक भूमि को संरक्षित कर बेचा गया
हालांकि यह अल्पसंख्यकों के बीच कड़वाहट फैलाने के लिए पर्याप्त होगा। जबकि, कुछ के लिए 1947 के विभाजन का बुरा सपना अभी खत्म नहीं हुआ है।
भारत और पाकिस्तान के बीच एक समझौते के अनुसार धार्मिक भूमि को किसी भी सूरत में नहीं बेजा जा सकता है।
हालाँकि, विभाजन के दौरान भारत गए लोगों द्वारा छोड़ी गई संपत्तियों का प्रबंधन करने वाली एक सरकारी संस्था इवैक्यू ट्रस्ट प्रॉपर्टी बोर्ड ने गुरुद्वारा भूमि और श्मशान विकासकों को बेच दिए।
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सिखों ने मृतकों को दफनाने के लिए किया मजबूर
सांस्कृतिक रूप से सिख अपने मृतकों का अंतिम संस्कार करते हैं, जबकि मुसलमान उन्हें दफनाते हैं। श्मशान के लिए पर्याप्त भूमि नहीं होने के कारण कुछ सिखों के पास कोई विकल्प नहीं बचा है। ऐसे में वह मृतकों को दफनाने के लिए मजबूर हैं।
इतिहास
भारत-पाक युद्धों के दौरान घर छोड़ने को मजबूत हुए सिख
यह भी एक हकीकत है कि पाकिस्तान में विभाजन के बाद बचे सिख और हिंदू परिवारों को 1965 और 1971 के भारत-पाक युद्धों के दौरान उत्तर पश्चिम के शहरों से आदिवासी इलाकों में पलायन करने के लिए मजबूर किया गया था, क्योंकि उन्हें राष्ट्रवाद के नाम पर लोगों ने हिंसा का शिकार बनाया था।
भारत में 1992 के बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद अधिकतर सिख और हिन्दू आदिवासी क्षेत्रों में पलायन कर गए।
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परिवारों को आदिवासी क्षेत्र भी छोड़ने के लिए किया मजबूर
हालांकि, 20 के दशक के दौरान, जब इन आदिवासी इलाकों में तालिबान बस गए, तो सिख और हिन्दू परिवारों को फिर से स्थानांतरित होने के लिए मजबूर किया गया। व्यापक सिख आबादी वाले लोग पेशावर, हसनबल और ननकाना साहिब की ओर चले गए।
निष्कर्ष
बहुमत की गूंज में दब जाती है अल्पसंख्यकों की आवाज
अपनी ही मातृभूमि में पाकिस्तानी सिखों को उनके घरों से बाहर निकाल दिया गया, उनके साथ दुर्व्यवहार किया गया, उन्हें मार दिया गया।
इससे आहत होकर उन्होंने धार्मिक स्वतंत्रता और बुनियादी समानता के लिए लड़ना छोड़ दिया।
2018 में पाकिस्तान में सिख विवाह को कानूनी पवित्रता मिलने के साथ यह स्पष्ट हो गया कि राज्य उनके लिए बहुत कम और बहत धीरे कर रहे हैं। जो एक धर्म की पहचान के लिए दुखद परिणाम दिखाई दे रहे है।