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    अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव: क्या होती है इन-मेल वोटिंग और ट्रंप क्यों कर रहे इसका विरोध?

    अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव: क्या होती है इन-मेल वोटिंग और ट्रंप क्यों कर रहे इसका विरोध?
    लेखन मुकुल तोमर
    Aug 19, 2020, 02:51 pm 1 मिनट में पढ़ें
    अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव: क्या होती है इन-मेल वोटिंग और ट्रंप क्यों कर रहे इसका विरोध?

    अमेरिका के बहुप्रतीक्षित राष्ट्रपति चुनाव में अब चंद महीने ही बाकी रह गए हैं। ऩवंबर में होने वाले इन चुनावों में मौजूदा राष्ट्रपति और रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप का मुकाबला डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार जो बाइडन से होगा। कोरोना वायरस महामारी के बीच सोशल डिस्टेंसिंग सुनिश्चित करने के लिए कई लोग इन चुनाव में इन-मेल वोटिंग के उपयोग की तरफदारी कर रहे हैं। इन-मेल वोटिंग क्या होती है और इसके आसपास पूरी बहस क्या है, आइए जानते हैं।

    क्या होती है इन-मेल वोटिंग?

    जैसा कि नाम से ही साफ है, इन-मेल वोटिंग वह प्रक्रिया है जिसमें मेल के जरिए वोट भेजे जाते हैं। इसका उपयोग करने के लिए किसी व्यक्ति या समूह को अमेरिकी प्रशासन के पास अनुरोध भेजना होता है और प्रशासन उनके पते पर बैलेट (वोट) भेजता है। संबंधित व्यक्ति या समूह अपने वोट को एक लिफाफे में डालता है, उस पर हस्ताक्षर करता है और फिर इसे बैलेट बॉक्स में डालकर वापस प्रशासन के पास भेज देता है।

    अमेरिका के कई राज्यों में बड़े पैमाने पर होता है इन-मेल वोटिंग का प्रयोग

    अमेरिका में मेल के जरिए वोटिंग की प्रक्रिया नई नहीं है और 2016 के राष्ट्रपति चुनाव में भी हर चार में से एक वोटर ने इन-मेल प्रक्रिया के जरिए अपना वोट डाला था। ओरेगन, वाशिंगटन और कोलोराडो जैसे राज्यों में दशकों से सफलतापूर्वक इस प्रक्रिया का उपयोग किया जा रहा है और यहां ज्यादातर वोट मेल के जरिए ही भेजे जाते हैं। अब कोरोना वायरस महामारी के कारण पूरे देश पर इसके उपयोग की मांग की जा रही है।

    कितनी सुरक्षित है प्रक्रिया?

    विशेषज्ञों के अनुसार, नियमित तरीके और अमेरिकी चुनाव के विकेंद्रीकृत स्वरूप के कारण इन-मेल वोटिंग प्रक्रिया में धांधली कर पाना बेहद मुश्किल है। उनके अनुसार, किसी भी विदेशी ताकत के लिए फर्जी वोट बनाकर चुनाव को प्रभावित करना लगभग नामुमकिन है। दरअसल, जो वोट उचित प्रकार के पेपर नहीं होते और जिन पर विशेष प्रकार के तकनीकी चिन्ह नहीं होते, उन्हें खारिज कर दिया जाता है। इसके अलावा लिफाफे के ऊपर किए गए हस्ताक्षरों का भी मिलान किया जाता है।

    बेहद दुर्लभ हैं इन-मेल वोटिंग में धांधली के मामले

    वोटिंग की अन्य प्रक्रियाओं की तरह इन-मेल वोटिंग में भी धांधली के मामले बेहद दुर्लभ हैं। 'हैरिटेज फाउडेंशन' के अनुसार, 1998 में मेल के जरिए चुनाव शुरू होने के बाद से अब तक ओरेगन में 1.55 करोड़ वोटों में से 14 फर्जी पाए गए हैं।

    राष्ट्रपति चुनाव में प्रयोग में क्या बाधा हैं?

    अगर अमेरिका को राष्ट्रपति चुनाव में बड़े पैमाने पर इन-मेल वोटिंग का उपयोग करना है तो इसके लिए टेक्सास और न्यूयॉर्क जैसे राज्यों को अपनी नीतियां बदल कर ये सुनिश्चित करना होगा कि मेल के जरिए वोट डालने का इच्छुक हर व्यक्ति इस प्रक्रिया का उपयोग कर सके। इसके अलावा ये प्रक्रिया बहुत खर्चीली भी है। 'ब्रेनन सेंटर फॉर जस्टिस' के मुताबिक, हर वोटर को इन-मेल वोटिंग की सुविधा प्रदान करने में 1.4 अरब डॉलर का खर्च आ सकता है।

    ट्रंप और उनके समर्थक कर रहे प्रक्रिया का विरोध

    ट्रंप और उनके समर्थन राष्ट्रपति चुनाव में इन-मेल वोटिंग के प्रयोग का विरोध कर रहे हैं। उनका इसका प्रयोग करने पर चुनावों में धांधली होने की आशंका जताई है और कहा है कि ये एक आपदा होगी। उन्होंने अमेरिका की डाक सेवा पर भी सवाल खड़े किए हैं। मेल के जरिए वोटिंग ना हो, यह सुनिश्चित करने के लिए ट्रंप ने डाक सेवा को दी जाने वाली 25 अरब डॉलर की आपातकालीन फंडिंग पर रोक लगा दी है।

    इसलिए भी ट्रंप कर रहे इन-मेल वोटिंग का विरोध

    ट्रंप और उनके समर्थकों के विरोध का एक बड़ा कारण इन-मेल वोटिंग पर राज्यों की अलग-अलग नीतियां भी हैं। दरअसल, कई राज्यों में केवल उन वोटों को गिना जाता है जो वोटिंग के दिन तक चुनाव आयोग के पास पहुंच जाते हैं। इस कारण कई वोट रद्द हो जाते हैं और नजदीकी चुनाव होने पर ये वोट नतीजों पर असर डाल सकते हैं। चुनावों पर इसी असर को देखते हुए ट्रंप इसका विरोध कर रहे हैं।

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