क्यों माइनस में गईं अमेरिकी कच्चे तेल की कीमतें और भारत पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा?
क्या है खबर?
सोमवार को अमेरिका के वेस्ट टेक्सस इंटरमीडिएट (WTI) बेंचमार्क के कच्चे तेल की कीमत जीरो से भी नीचे गिरकर माइनस 40.32 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गईं। इसका मतलब उत्पादक खरीददारों को कच्चा तेल खरीदने पर उल्टा पैसा दे रहे हैं।
ये पहली बार हुआ है जब अमेरिकी कच्चे तेल की कीमत जीरो से नीचे गई हैं और ये इतिहास में कच्चे तेल की सबसे कम कीमत है।
कीमतें आखिर इतनी नीचे क्यों गिरीं, आइए समझते हैं।
मांग और आपूर्ति
कैसे बढ़ती और घटती हैं कच्चे तेल की कीमतें?
हर वस्तु की तरह कच्चे तेल की कीमतों का भी सीधा संबंध मांग और आपूर्ति (डिमांड एंड सप्लाई) के आर्थिक नियम से है।
जब बाजार में कच्चे तेल की मांग आपूर्ति से अधिक होती है तो इसकी कीमत बढ़ती है और जब मांग आपूर्ति से कम होती तो इसकी कीमत घटने लगती है।
अभी कीमतें गिरने के पीछे के कारणों की बात करें तो कोरोना वायरस संकट के पहले से ही पिछले कुछ महीनों से कीमतें घट रही हैं।
संकट की शुरूआत
रूस और सऊदी अरब आए आमने-सामने
ऐतिहासिक तौर पर सऊदी अरब के नेतृत्व वाला तेल निर्यातक देशों का समूह OPEC कच्चे तेल का सबसे बड़ा निर्यातक रहा है।
पिछले कुछ समय से वह रूस के साथ मिलकर कच्चे तेल की वैश्विक कीमतों को नियंत्रित कर रहा है।
मार्च की शुरूआत में सऊदी अरब ने तेल का उत्पादन कम करने के लिए रूस के साथ बैठक की थी। रूस इसके लिए तैयार नहीं हुआ तो सऊदी अरब ने अपने कच्चे तेल की कीमत घटा दी।
कोरोना वायरस
कोरोना वायरस और लॉकडाउन के कारण बदतर हुई स्थिति
बिना उत्पादन घटाए तेल की कीमतें घटाने से कच्चे तेल की कीमतें नीचे जाने लगीं और इसकी कीमत 30 प्रतिशत तक नीचे गिर गईं।
कोरोना वायरस के संकट और इसे रोकने के लिए दुनियाभर में किए गए लॉकडाउन से स्थिति और खराब हो गई।
लॉकडाउन के कारण कच्चे तेल की मांग बेहद नीचे चली गई और रूस और सऊदी अरब के झगड़े के कारण उत्पादन कम नहीं हुआ।
कीमतें नीचे जाने का ये एक मुख्य कारण है।
कारण
भंडार भरने के कारण उल्टे पैसे दे रहा अमेरिका
इसके अलावा अमेरिका में कच्चे तेल की कीमतें जीरो से नीचे जाने का एक बड़ा कारण कच्चे तेल का भंडार भी है।
अंतरराष्ट्रीय बाजार में मांग कम होने के कारण उत्पादक देशों को अपने यहां तेल का भंडार करना पड़ा है और अब जब सभी भंडार भर गए हैं तो वह उत्पादन को बनाए रखने के लिए खरीददारों को उल्टा पैसा दे रहे हैं।
अमेरिका सबसे बड़ा उत्पादक देश है, इसलिए उस पर सबसे पहले असर पड़ा है।
उत्पादन
इसलिए उत्पादन बंद नहीं करते देश
उत्पादन में कमी या तेल के कुंओं को पूरी तरह बंद करना एक बेहद मुश्किल फैसला है क्योंकि बाद में इसे दोबारा शुरू करना जटिल होता है और इसमें काफी खर्च होता है।
इसके अलावा कच्चे तेल के बाजार की प्रतिस्पर्धा के कारण भी उत्पादक देश उत्पादन कम नहीं करते हैं क्योंकि ऐसा करने पर अन्य देश उसके बाजार पर कब्जा कर सकते हैं।
सभी देशों में समझौता होने पर ही उत्पादन कम किया जा सकता है।
समझौता
अमेरिका के दखल के बाद रूस और सऊदी अरब का विवाद सुलझा
अमेरिका राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के दखल के बाद पिछले हफ्ते सऊदी अरब और रूस का विवाद सुलझा है और उत्पादन को प्रतिदिन 60 लाख बैरल कम किया गया है। लेकिन इस बीच कोरोना वायरस और लॉकडाउन के कारण मांग में रोजाना 90 लाख से एक करोड़ बैरल तक की कमी हो रही है।
इसके बावजूद कच्चे तेल के बाजार को स्थिर होने में महीनों लग सकते हैं क्योंकि सभी देशों के पास पहले से ही भंडार है।
भारत पर प्रभाव
भारत पर क्या असर पड़ेगा?
अमेरिका में कच्चे तेल की कीमतें माइनस में जाने का भारत पर खास असर नहीं पड़ेगा।
लॉकडाउन के कारण भारत में पेट्रोल और डीजल की मांग कम है और इसके कारण देश के पास पहले से ही पर्याप्त भंडार है।
इसके अलावा भारत ज्यादातर कच्चा तेल अमेरिका की बजाय मध्य-पूर्व के देशों से खरीदता है, यहां कीमतें बहुत नीचे नहीं गई हैं।
पेट्रोल-डीजल की कीमतों में ज्यादातर हिस्सा टैक्स और ड्यूटी का होने के कारण ये भी नीचे नहीं जाएंगे।