मोबाइल और इंटरनेट की लत से छुटकारा पाने के लिए गांववालों ने शुरू की अनोखी पहल
क्या है खबर?
इंसानों से ज्यादा अहमियत आज कांच के खिलोने मोबाइल की हो गई... ऐसी फितरत अब इंसान की हो गई!
ये पंक्तियां सच्चाई ही तो बयान कर रही हैं, आजकल हर कोई सिर्फ मोबाइल के सहारे ही अपना जीवन बीता रहा है, जीवन ही क्या हर कोई रिश्ते भी इसी के सहारे निभा रहा है।
मगर एक गांव में कुछ परिवार ऐसे हैं जो मोबाइल से दूर रहना जानते हैं। इसके लिए उन्होंने नई पहल भी शुरू की है।
मामला
बढ़ती दूरियों से परेशान गांववालों ने शुरू की यह अनोखी पहल
यह मामला छत्तीसगढ़ के बोड़रा गांव का है, जहां तकरीबन 11 परिवार पिछले पांच वर्षों से रोजाना एक घंटे का समय साथ बिताते हैं।
ये लोग हर दिन किसी एक घर में साथ बैठकर समय बिताते हैं। ताकि मोबाइल और इंटरनेट की वजह से उनके रिश्तों में दूरियां न आ जाएं।
इन परिवारों से जुड़े लोगों के मुताबिक, संचार माध्यमों की वजह से लोगों में दूरी बढ़ रही है, साथ ही आमने-सामने का संवाद और तालमेल खत्म होने लगा है।
जानकारी
इस पहल से जुड़े 11 परिवारों का आपस में कोई रिश्ता नहीं
रिपोर्ट्स के अनुसार बोड़रा के लोगों ने बताया कि यह पहल दो-तीन परिवारों ने मिलकर पांच साल पहले शुरू की थी, जिसमें केवल इन परिवारों के मुखिया हिस्सा लेते थे। मगर अब 11 परिवार के 70 सदस्य इस पहल के साथ जुड़े हुए हैं। किसी परिवार में कोई समस्या है, कोई जरूरत है, उसका निदान आपस में निकाला जाता है।
खास बात तो यह है कि इन 11 परिवारों का आपस में कोई रिश्ता नहीं है।
बयान
किसी के घर समस्या आने पर दी जाती है आर्थिक सहायता
गांव के टोमनलाल साहू ने बताया कि एक गांव में रहने के बावजूद आस-पास के लोगों के बारे में कुछ पता नहीं चलता था, क्योंकि हर किसी का समय मोबाइल में गुजरता था। लेकिन अब हर दिन किसी एक सदस्य के यहां शाम को 06:30 से 07:30 बजे तक 11 परिवार साथ समय बिताते हैं।
टोमनलाल ने आगे बताया कि अगर किसी के घर में कोई बीमार हो जाता है तो सभी परिवार मिलकर उसको आर्थिक मदद प्रदान करते हैं।
उत्सव
दूसरों को प्रेरित करने के लिए मनाया जाता है उत्सव
बता दें कि गांव का हर परिवार इस पहल से जुड़े, इसलिए ये 11 परिवार मिलकर गांव में हर साल दो दिन का मानव उत्सव मनाते हैं।
उत्सव से जुड़े बसंत साहू ने बताया कि एकजुटता के लिए पांच साल से यह उत्सव मनाया जा रहा है, जिसमें गांव के बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक सांस्कृतिक कार्यक्रमों में हिस्सा लेते हैं।
इन परिवारों से सभी को सीख लेनी चाहिए और मोबाइल छोड़कर अपनों के साथ थोड़ा समय बिताना चाहिए।