
#SportsHeroesOfIndia: सिंगल्स प्रतियोगिता में पहला ओलंपिक पदक जीता, लेकिन परिवार झेल रहा गरीबी का दंश
क्या है खबर?
भारत के लिए अब तक कई खिलाड़ी ओलंपिक पदक जीत चुके हैं, लेकिन कुछ एथलीट्स के पदक आज भी सबसे ज़्यादा मायने रखते हैं।
ऐसे ही एक पहलवान थे खाशाबा दादासाहेब जाधव, जिन्होंने भारत के लिए सिंगल्स प्रतियोगिता में पहला ओलंपिक पदक जीता था।
इतना बड़ा पदक जीतने वाले एथलीट को भी हमारी सरकार ने भुला दिया और आज उनका नाम तक कम ही लोगों को पता है।
जानिए खाशाबा दादासाहेब जाधव के जीवन से जुड़ी खास बातें।
जन्म और बचपन
महाराष्ट्र के छोटे से गांव में जन्में, बचपन से ही कुश्ती का था शौक
15 जनवरी, 1926 को जाधव का जन्म महाराष्ट्र के सतारा जिले के एक छोटे से गांव गोलेश्वर में हुआ था।
उनके पिता दादासाहेब जाधव मशहूर पहलवान थे और खाशाबा उनके पांच पुत्रों में सबसे छोटे पुत्र थे।
खाशाबा का जन्म एक ऐसे परिवार में हुआ था जहां कुश्ती को जिया जाता था और यही वजह है कि मात्र पांच साल की उम्र से ही उन्होंने कुश्ती लड़ना शुरु कर दिया था।
1948 ओलंपिक
1948 ओलंपिक में दिखाया अपना जलवा
देश आजाद होने के अगले ही साल जाधव से पास ओलंपिक में तिरंगा लहराने का मौका था, लेकिन वहां जाने के लिए उन्हें पैसों की जरूरत थी।
उस कठिन समय में कोल्हापुर के महाराजा ने जाधव की ट्रिप को फंड करने का निर्णय लिया और उन्हेें अपने पैसों पर लंदन भेजा।
उस ओलंपिक में 52 किलो भारवर्ग में भले ही जाधव छठे नंबर पर रहे, लेकिन उन्होंने भारतीय पहलवानी का दमखम विदेशों में दिखा दिया था।
1952 ओलंपिक
1952 ओलंपिक जाने के लिए करनी पड़ी काफी जद्दोजहद
1948 ओलंपिक में पदक नहीं जीत पाने के बाद जाधव ने ओलंपिक पदक हासिल करने का दृढ़ निश्चय कर लिया था।
हालांकि, उनके खूब तैयारी करने के बावजूद 1952 ओलंपिक के लिए उनका नाम शामिल नहीं किया गया था।
उन्होंने खूब जद्दोजहद की और पटियाला के महाराजा से खुद को ओलंपिक में भेजे जाने की गुहार लगाई, जिसके बाद उन्हें ट्रॉयल में शामिल किया गया और उन्होंने ओलंपिक का टिकट हासिल किया।
ओलंपिक पदक
सिंगल्स प्रतियोगिता में ओलंपिक पदक जीतने वाले भारत के पहले खिलाड़ी
1952 ओलंपिक में जाधव के सामने कोई भी पहलवान टिक नहीं पा रहा था, लेकिन जापानी पहलवान सोहाची इशी के खिलाफ 15 मिनट चले मुकाबले में उन्हें एक अंक से हार झेलनी पड़ी।
उनके पास फाइनल में पहुंचने का मौका था, लेकिन बिना आराम दिए तुरंत ही उनका मुकाबला सोवियत यूनियन के पहलवान राशिद मम्मादबियोव से करा दिया गया।
बुरी तरह थक चुके जाधव को इस मुकाबले में भी हार मिली, लेकिन उन्होंने कांस्य पदक जीतने में सफलता हासिल की।
पुलिस
पुलिस विभाग को भी दी सेवाएं, लेकिन फिर भी झेला गरीबी का दंश
1952 में जाधव पुलिस विभाग में सब-इंस्पेक्टर की पोस्ट पर तैनात हुए और लगभग 20 साल तक पुलिस की नौकरी करने के बाद वह असिस्टेंट कमिश्नर के पोस्ट पर रिटायर हुए।
इतने लंबे समय तक पुलिस विभाग को अपनी सेवाएं देने के बावजूद जाधव के परिवार को गरीबी का दंश झेलना पड़ा।
जाधव को अपनी पेंशन के लिए काफी भागदौड़ करनी पड़ी और फिर 1984 में एक कार दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गई।