#NewsBytesExplainer: क्या लिथियम उत्पादन में क्रांति लाने वाली साबित होगी नई स्ट्रिंग टेक्नोलॉजी?
मोबाइल और लैपटॉप से लेकर इलेक्ट्रॉनिक वाहनों और विभिन्न इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में पावर के लिए लिथियम-आधारित बैटरी का इस्तेमाल होता है। यह रासायनिक ऊर्जा को स्टोर कर उसे विद्युत ऊर्जा में बदलती है। विश्वभर में इसकी काफी मांग है, लेकिन इसका उत्पादन कठिन है। इसके उत्पादन में काफी ज्यादा संसाधन और समय खर्च होता है। अब प्रिंसटन के इंजीनियरों ने एक नई स्ट्रिंग आधारित तकनीक विकसित की है जो लिथियम के उत्पादन में बड़ा बदलाव ला सकती है।
लिथियम के उत्पादन में लगती है भारी जमीन और समय
दुनियाभर में तैयार किए जाने वाले लिथियम का एक बड़ा हिस्सा नमक के मैदानों में स्थित खारे जलाशयों से निकाला जाता है। लिथियम के उत्पादन की इस प्रक्रिया में सैकड़ों वर्ग किलोमीटर भूमि की जरूरत होती है। बैटरी में इस्तेमाल होने लायक लिथियम का उत्पादन करने में महीनों या वर्षों का समय लगता है। प्रिंसटन के इंजीनियरों की तकनीक से लिथियम के उत्पादन में लगने वाली भूमि और समय की मात्रा को कम किया जा सकता है।
ये है स्ट्रिंग तकनीक
पेड़ों द्वारा जड़ों से पत्तियों तक पानी पहुंचने की प्रक्रिया के आधार पर वैज्ञानिकों ने एक तकनीक विकसित की। इस तकनीक में जब डोरी या स्ट्रिंग को नमक-पानी के घोल में डुबोया जाता है तो कैपिलरी क्रिया के कारण पानी डोरी से ऊपर चढ़ जाता है। इसके बाद डोरी से पानी तेजी से वाष्पित हो जाता है और सोडियम और लिथियम जैसे नमक आयनों को छोड़ देता है। पानी के वाष्पित होने से सोडियम क्लोराइड और लिथियम क्लोराइड क्रिस्टल बनेंगे।
पारंपरिक प्रक्रिया की तुलना में आसान है स्ट्रिंग तकनीक
डोरी के विभिन्न हिस्सों पर लिथियम और सोडियम क्रिस्टल रूप में जमा हो जाते हैं। यह तरीका पारंपरिक प्रक्रिया की तुलना में आसान है। इसमें इस्तेमाल होने वाली डोरी को बनाना भी बहुत कठिन नहीं है। प्रिसंटन के वैज्ञानिकों का अनुमान है कि उनकी तकनीक वाष्पीकरण को 20 गुना से अधिक तेज कर देगी और लिथियम उत्पादन के लिए जरूरी भूमि की मात्रा में 90 प्रतिशत तक कटौती कर सकती है।
एक महीने से भी कम समय में किया ज सकेगा लिथियम का उत्पादन
इंजीनियरों का मानना है कि नई प्रक्रिया के जरिए एक महीने से भी कम समय में लिथियम का उत्पादन किया जा सकता है। पारंपरिक प्रक्रिया में लिथियम का उत्पादन काफी हद तक खारे पानी के तालाब और जलाशयों पर ही निर्भर है। इसके उत्पादन के लिए वाष्पीकरण जरूरी है, जिसके लिए गर्म और शुष्क जलवायु भी चाहिए। स्ट्रिंग तकनीक से नमी वाले मौसम में भी लिथियम तैयार करने के मौके बढ़ सकते हैं।
नए स्त्रोतों से खोजा जा सकता है लिथियम
इंजीनियरों के अनुसार, नई तकनीक से दुनिया में मौजूदा लिथियम कारखानों में उत्पादन में सुधार हो सकता है। इसके साथ ही कई अन्य स्त्रोतों और नए क्षेत्रों से भी लिथियम उत्पादन के अवसर बढ़ सकते हैं। उदाहरण के लिए बंद पड़े तेल और गैस के कुएं, जिन्हें वर्तमान में लिथियम प्राप्त करने के लिए बहुत छोटा या पतला माना जाता है, इनसे भी स्ट्रिंग तकनीक के जरिए लिथियम उत्पादन किया जा सकता है।
लिथियम की उपलब्धता से घट सकती है इलेक्ट्रिक वाहनों की कीमत
लिथियम की उपलब्धता बढ़ने से खासतौर से इलेक्ट्रिक वाहनों की कीमत काफी ज्यादा घट सकती है। कई रिपोर्ट्स में कहा गया कि एक इलेक्ट्रिक वाहन की कुल कीमत में अकेले उसके बैटरी की कीमत 40 से 50 प्रतिशत तक होती है। लिथियम के लिए ज्यादातर दूसरे देशों से आयात पर ही निर्भर है। इसकी बढ़ती मांग के कारण इसे सफेद सोना भी कहते हैं। लिथियम का प्रतीक Li है। यह सबसे हल्की धातु और सबसे हल्का ठोस तत्व है।
तकनीक की दक्षता बढ़ाने के लिए जारी है प्रयोग
हालांकि, यह तकनीक अभी केवल प्रयोगशाला स्तर पर ही काम कर रही है और इंजीनियर इसे व्यावसायिक रूप से इस्तेमाल किए जाने लायक बनाने पर काम कर रहे हैं। इंजीनियरों की टीम दूसरी पीढ़ी की तकनीक पर भी काम कर रही है, जो क्रिस्टलीकरण प्रक्रिया पर अधिक नियंत्रण देगी। इससे सिस्टम की दक्षता और आउटपुट बढ़ेगा। यह भी जांच की जा रही है कि क्या इस तकनीक का इस्तेमाल समुद्री जल से लिथियम निकालने के लिए किया जा सकता है।