कैसे पता लगाया जाता है कि कोई वैक्सीन कितनी प्रभावी है?
क्या है खबर?
पिछले कुछ दिनों से कोरोना वायरस वैक्सीन को लेकर उत्साहजनक नतीजे सामने आ रहे हैं।
फाइजर और मॉडर्ना के बाद अब ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी ने भी अपनी संभावित वैक्सीन को प्रभावी पाया है।
मॉडर्ना और फाइजर ने बताया कि उनकी वैक्सीन्स 90 प्रतिशत से ज्यादा प्रभावी हैं। वहीं ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के मामले में यह आंकड़ा 70 प्रतिशत है।
आइये, जानते हैं कि कैसे पता लगाया जाता है कि कोई वैक्सीन कितनी प्रभावी है और अब किन सवालों के जवाब की हैं।
जानकारी
किसी वैक्सीन के 90 प्रतिशत प्रभावी होने का क्या मतलब है?
अगर इसे बिल्कुल आसान भाषा में समझने की कोशिश करें तो मान लें कि किसी वैक्सीन के ट्रायल में 20,000 लोग शामिल हैं। इनमें से 10,000 लोगों को वैक्सीन की खुराक और दूसरे 10,000 लोगों को दूसरा इलाज दिया जाएगा।
ट्रायल
कैसे लगाया जाता है वैक्सीन के प्रभाव का पता?
अब मान लिजिए कि संक्रमण की तेज रफ्तार के कारण आमतौर पर 10 प्रतिशत लोग संक्रमित होते हैं।
इस हिसाब से ट्रायल में शामिल जिन 10,000 लोगों को वैक्सीन की खुराक नहीं मिली है, उनमें से 1,000 लोग एक निश्चित समय में संक्रमित हो जाएंगे।
अब ट्रायल में 10,000 लोग ऐसे भी हैं, जिन्हें खुराक दी गई है। अगर वैक्सीन बिल्कुल भी काम नहीं करती है तो उनमें से भी 1,000 लोग संक्रमित होंगे।
ट्रायल
ऐसे पता चलता है वैक्सीन का प्रभाव
वहीं अगर वैक्सीन काम करती है और यह 50 प्रतिशत प्रभावी पाई जाती है तो इसका मतलब यह होगा कि खुराक लेने वाले 10,000 लोगों में से 500 लोग ही संक्रमित होंगे। यानी वैक्सीन 50 प्रतिशत लोगों को बीमार होने से बचा रही है।
इसी तरह अगर कोई वैक्सीन 90 प्रतिशत प्रभावी पाई जाती है तो इसका मतलब यह होगा कि जिन लोगों को खुराक दी गई थी, उनमें से 90 प्रतिशत लोग बीमार होने से बच जाएंगे।
कोरोना वायरस वैक्सीन
अब कौन से सवाल बाकी हैं?
मॉडर्ना, फाइजर और ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की वैक्सीन को लेकर ऐलान उत्साह बढ़ाने वाले हैं, लेकिन फिर भी कुछ सवालों के जवाब बाकी हैं।
मसलन, क्या गर्भवती महिलाओं को इनकी खुराक दी जा सकेगी? क्या ये उनके लिए सुरक्षित होगी? वैक्सीन की खुराकों से कितने समय तक सुरक्षा मिलेगी? यह सुरक्षा किस तरह की होगी?
शुरुआती नतीजों में इनके कुछ जवाब मिले हैं, लेकिन ठोस जानकारी के लिए बड़े स्तर के ट्रायल के नतीजों का इंतजार करना होगा।
बड़ा सवाल
भारत के लिए कौन सी वैक्सीन बेहतर?
इस सवाल के जवाब में देश की जानी-मानी मेडिकल वैज्ञानिक गगनदीप कांग कहती हैं कि भारत के लिए वो वैक्सीन बेहतर होगी, जो किफायती हो, जिसका बड़ी संख्या में उत्पादन किया जा सके, जिसकी एक खुराक की जरूरत पड़े और आसानी से दूरदराज के इलाकों में भेजी जा सके।
इंडियन एक्सप्रेस के साथ इंटरव्यू में वो कहती हैं, "पता नहीं यह कब होगा, लेकिन एक खुराक से वैक्सीनेशन अभियान पर बोझ कम हो जाएगा।"
चुनौती
वैक्सीन की महंगी कीमत चुनौती
कांग आगे कहती हैं अभी तक एस्ट्राजेनेका ने सबसे सस्ती वैक्सीन (3 डॉलर यानी लगभग 223 रुपये) का ऐलान किया है।
इसका मतलब यह होगा हर व्यक्ति को सिर्फ दो खुराक देने में लगभग 6 डॉलर का खर्च आएगा। इसमें वितरण और दूसरे खर्च शामिल नहीं हैं।
वो कहती हैं हर अगर हर व्यक्ति पर 10 डॉलर का खर्च होगा तो यह यह तरह से देश का अब तक का सबसे महंगा वैक्सीनेशन कार्यक्रम होगा।
बयान
"कम खर्च वाली की जरूरत"
कांग ने आगे कहा कि अगर राष्ट्रीय स्तर पर हर व्यक्ति को वैक्सीन की खुराक देनी है तो इसके लिए एक डॉलर से कम खर्च की जरूरत होगी। कई कंपनियां इस चुनौती को ध्यान में रखकर भी वैक्सीन के निर्माण में जुटी हैं।
कोरोना वायरस
देश और दुनिया में महामारी की क्या स्थिति?
जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी के मुताबिक, दुनियाभर में अब तक लगभग 5.87 करोड़ लोग कोरोना वायरस से संक्रमित हो चुके हैं। इनमें से 13.89 लाख की मौत हुई है।
सबसे अधिक प्रभावित अमेरिका में 1.22 करोड़ लोग संक्रमित हो चुके हैं और लगभग 2.57 लाख लोगों की मौत हुई है। अमेरिका एकमात्र ऐसा देश है जहां भारत से ज्यादा मामले हैं।
दूसरे नंबर पर काबिज भारत में लगभग 91.40 लाख संक्रमितों में से 1,33,738 लाख मरीजों की मौत हुई है।