प्रतिस्पर्धा संशोधन विधेयक पारित, क्या बड़ी टेक कंपनियों के लिए बनेगा मुसीबत?
लोकसभा ने बुधवार को प्रतिस्पर्द्धा (संशोधन) विधेयक, 2023 कुछ संशोधनों के साथ पारित कर दिया गया। इसके जरिए प्रतिस्पर्धा अधिनियम, 2022 में संशोधन किया जाना है। संशोधित कानून में बड़ा बदलाव यह है कि ये भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) को क्षमता प्रदान करती है कि वह प्रतिस्पर्धा रोधी काम करने वाली कंपनियों पर उनके वैश्विक टर्नओवर के आधार पर जुर्माना लगा सके। अभी तक जुर्माना तय करने के लिए देश में उनकी कुल कमाई को आधार माना जाता था।
उल्लंघन एक जैसा होता है लेकिन जुर्माना अलग-अलग हो सकता है - अवंतिका कक्कड़
सिरिल अमरचंद मंगलदास की पार्टनर एवं प्रतिस्पर्द्धा प्रमुख अवंतिका कक्कड़ ने कहा, "व्यापारियों के नजरिये से बात करें तो कुल कारोबार पर जुर्माने के विचार करने से अनुचित एवं दंडात्मक नतीजे सामने आ सकते हैं। साथ ही इससे उद्योगों के बीच भेदभाव भी हो सकता है क्योंकि, सभी उद्योग एक जैसा उल्लंघन करते हैं, लेकिन कारोबार के आकार और विस्तार के हिसाब से उन पर जुर्माना अलग-अलग हो सकता है।"
जुर्माने के लिए वैश्विक टर्नओवर को फॉर्मूला बनाने से गलती दोहराने से बचेंगी कंपनी
अभी हाल ही में गूगल पर प्रतिस्पर्धा रोधी नियमों के तहत 1,337 करोड़ रुपये का जुर्माना लगा है। इसके बाद एक बार फिर जुर्माने की रकम तय करने के लिए विश्वभर से होने वाली इनकी कमाई के अनुपात को फॉर्मूला बनाने की बात उठी है। माना जा रहा है कि वैश्विक कमाई के आधार पर तय होने वाला जुर्माना इन कंपनियों को सजा की तरह लगेगा और ये गलती करने से बचेंगी।
यूरोपीय संघ का जुर्माना तय करने का फॉर्मूला
यूरोपीय संघ में, प्रतिस्पर्धा-रोधी गतिविधि के लिए एक कंपनी पर लगाया गया जुर्माना कंपनी के कुल वार्षिक कारोबार के 10 प्रतिशत तक सीमित कर दिया गया है। ये 10 प्रतिशत की सीमा उस समूह के टर्नओवर पर आधारित हो सकती है जिससे कंपनी संबंधित है। हालांकि, इसको स्पष्ट किया गया है कि सब्सिडियरी कंपनी पर जिस गलती के लिए जुर्माना लगेगा यदि उस काम में पेरेंट कंपनी का योगदान रहा है तो पेरेंट कंपनी पर जुर्माना लगाया जा सकता है।
CCI को मिले ये अधिकार
प्रतिस्पर्धा (संशोधन) विधेयक, 2023 में बदलाव भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) को विलय और अधिग्रहण के मामले में भी अधिकार देता है। नए अधिकार के तहत संस्थाओं को 2,000 करोड़ रुपये से अधिक कीमत के सौदे के मामले में CCI की मंजूरी लेनी होगी और दोनों पार्टियों का भारत में कारोबार संचालन में होना चाहिए। बिल में विलय और अधिग्रहण की मंजूरी के लिए 210 दिन की मौजूदा समय सीमा को घटाकर 150 दिन कर दिया गया है।
लीनिएंसी प्लस मॉडल की शुरुआत
अन्य संशोधनों में लीनिएंसी प्लस मॉडल की औपचारिक शुरुआत शामिल है। इसके तहत CCI जांच के दायरे में आए कार्टेल पर कम जुर्माना लगाएगा ताकि वे अन्य कार्टेलों के बारे में जानकारी देने के लिए आगे आएं।
कंपनियों का एकाधिकार होगा कम
प्रतिस्पर्धा अधिनियम 2002 में संशोधन से गूगल, मेटा जैसी दिग्गज कंपनियां जो अपने से मिलता-जुलता काम करने वाली छोटी कंपनियों और स्टार्टअप्स को न बढ़ने देने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाती हैं इनको मुश्किल हो सकती है। कई ऐप और सॉफ्टवेयर में जहां इनका एकाधिकार है उसकी जगह दूसरे डेवलपर्स और कंपनियां भी अपना कारोबार कर सकती हैं और जगह बना सकती हैं। इससे प्रतिस्पार्धात्मक कारोबारी माहौल बनेगी दिगग्ज कंपनियों पर प्रतिस्पर्धा रोधी गतिविधि न करने का डर होगा।