
चंद्रयान-3 चांद की सतह के करीब पहुंचा, सफलतापूर्वक कम किया गया ऑर्बिट
क्या है खबर?
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (ISRO) ने चंद्रयान-3 के ऑर्बिट कम करने वाले निर्धारित ऑपरेशन को सफलतापूर्वक पूरा कर लिया है।
इंजनों की रोट्रोफायरिंग के जरिए ऑर्बिट को कम किया जाता है।
ऑर्बिट कम किए जाने से चंद्रयान-3 चांद की सतह के करीब आ गया है। अब यह 174x1437 किलोमीटर के ऑर्बिट में है और चांद के और करीब चक्कर लगा रहा है।
चंद्रयान-3 के ऑर्बिट को और कम करने का अगला ऑपरेशन 14 अगस्त को निर्धारित है।
ट्विटर पोस्ट
ISRO ने दी जानकारी
Getting ever closer to the moon!
— LVM3-M4/CHANDRAYAAN-3 MISSION (@chandrayaan_3) August 9, 2023
The #Chandrayaan3 spacecraft successfully underwent a planned orbit reduction maneuver. The retrofiring of engines brought it closer to the Moon's surface, now to 174 km x 1437 km.
The next operation to further reduce the orbit is scheduled for… pic.twitter.com/vCTnVIMZ4R
सफर
23 अगस्त को कराई जाएगी चंद्रयान-3 की सॉफ्ट लैंडिंग
चंद्रयान-3 को 14 अगस्त को 1,000 किलोमीटर वाले ऑर्बिट में डाला जाएगा।
पांचवें ऑर्बिट मैन्युवर में इसे 100 किलोमीटर की कक्षा में डाला जाएगा।
17 अगस्त को चंद्रयान-3 के प्रोपल्शन मॉड्यूल और लैंडर मॉड्यूल अलग होंगे।
18 और 20 अगस्त को डीऑर्बिटिंग होगी। इस प्रक्रिया में चांद के ऑर्बिट की दूरी को कम किया जाएगा।
23 अगस्त को शाम 5 बजकर 47 मिनट पर चंद्रयान-3 की सॉफ्ट लैंडिंग कराई जाएगी यानी लैंडिंग में अब लगभग 2 हफ्ते ही बाकी हैं।
लैंडिंग
चुनौतीपूर्ण कार्य है सॉफ्ट लैंडिंग
चांद की सतह पर चंद्रयान-3 की सॉफ्ट लैंडिंग इस मिशन का सबसे चुनौतीपूर्ण कार्य है।
दरअसल, इससे पहले 2019 में भेजे गए चंद्रयान-2 ने भी चांद की सतह तक पहुंचने की सारी प्रक्रिया पूरी कर ली थी, लेकिन सॉफ्ट लैंडिंग में सफल नहीं हो पाया था।
हालांकि, चंद्रयान-3 की सॉफ्ट लैंडिंग सुनिश्चित करने के लिए इसके डिजाइन में बदलाव करने के साथ ही इसमें कई नए सेंसर्स भी जोड़े गए हैं।
सफलता
सेंसर्स और इंजन के काम न करने पर भी लैंडिंग में सक्षम है चंद्रयान-3
ISRO प्रमुख एस सोमनाथ ने बीते दिन ही कहा कि चंद्रयान-3 को इस तरह से बनाया गया है कि यदि इसके सभी सेंसर्स और 2 इंजन भी काम करना बंद कर दें तब भी यह लैंडिंग करने में सक्षम है।
उनके मुताबिक, बस इसका प्रोपल्शन सिस्टम (प्रणोदन प्रणाली) और एल्गोरिदम ठीक से काम करता रहे।
सोमनाथ का कहना है चंद्रयान-3 के लैंडर विक्रम को इस तरह से डिजाइन किया गया है कि यह विफलताओं को संभाल सके।
चुनौती
ISRO टीम के सामने यह है बड़ी चुनौती
सोमनाथ के मुताबिक, ISRO टीम के सामने सबसे बड़ी चुनौती हॉरिजॉन्टल (क्षैतिज) स्थिति वाले विक्रम को वर्टिकल (लंबवत) रूप से उतारना है।
चांद पर सॉफ्ट लैंडिंग कराने के लिए लैंडर को कई मैन्युवर के जरिए वर्टिकल रूप में लाया जाएगा।
यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि चंद्रयान-2 मिशन के दौरान ISRO लैंडर को चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग कराने में ही विफल रहा था।
ISRO प्रमुख के मुताबिक, चंद्रयान-2 की लैंडिंग में यहीं समस्या हुई थी।