बिहार विधानसभा चुनाव का बहिष्कार करेंगे 108 आदिवासी गांव, जानें क्या है कारण
बिहार की 243 विधानसभा सीटों पर वोटिंग शुरू होने में अब चंद दिन ही बाकी रह गए हैं और राजनीतिक पार्टियों से लेकर वोटर्स तक सभी पूरी तरह से तैयार हैं। इस बीच राज्य के 108 आदिवासी गांवों ने इन चुनावों का बहिष्कार करने का फैसला लिया है। कैमूर पठार के इन आदिवासी गांवों के लोग उन पर पुलिस की बर्बर कार्रवाई के विरोध में चुनावों का बहिष्कार कर रहे हैं। पूरा मामला क्या है, आइए आपको बताते हैं।
टाइगर रिजर्व बनाने को लेकर आमने-सामने हैं सरकार और आदिवासी
हाल ही में सरकार ने कैमूर क्षेत्र को टाइगर रिजर्व घोषित किया था और इलाके के लोग उसके इस ऐलान का विरोध कर रहे हैं। आदिवासी गांवों का नेतृत्व करने वाले कैमूर मुक्ति मोर्चा (KMM) ने सरकार के खिलाफ प्रदर्शन करते हुए उससे कैमूर को संविधान की पांचवीं अनुसूची के तहत अनुसूचित करने की मांग की थी। उसका कहना है कि इलाके में टाइगर रिजर्व का निर्माण ग्राम सभाओं और आदिवासी आबादी की मंजूरी के बाद ही किया जाना चाहिए।
10 सितंबर को पुलिस ने की प्रदर्शन कर रहे आदिवासियों पर बर्बर कार्रवाई
10 सितंबर को इन 108 गांवों के हजारों आदिवासी अधौरा वन विभाग के कार्यालय के बाहर जमा हो गए और प्रदर्शन करने लगे। पहले तो प्रदर्शन शांतिपूर्ण रहा, लेकिन फिर पुलिस ने आदिवासियों पर बर्बरता से हमला करना शुरू कर दिया। आरोप है कि इस दौरान पुलिस ने गोलियां भी बरसाईं और सात प्रदर्शनकारियों को झूठे आरोपों में उठा कर ले गए। पुलिस पर महिलाओं और बच्चों पर भी लाठीचार्ज करने का आरोप है।
पुलिस की गोलीबारी में एक आदिवासी की मौत
घटना में पुलिस की गोली लगने से एक आदिवासी की मौत की बात भी सामने आई है। मरने वाला आदिवासी चफाना गांव का रहने वाला था और उसका नाम प्रभु बताया जा रहा है। रिपोर्ट्स के अनुसार, पुलिस की गोली उसके कान से होती हुई निकल गई। इसके अलावा पुलिस पर 12 सितंबर को KMM के कार्यालय में तोड़फोड़ करने और दर्जनों एक्टिविस्ट्स को झूठे आरोपों में गिरफ्तार करने का भी आरोप है।
दिल्ली से आई टीम ने की पुलिसिया बर्बरता की पुष्टि
न्यूजक्लिक की रिपोर्ट के अनुसार, 23 से 27 सितंबर के बीच दिल्ली की चार सदस्यीय एक फैक्ट फाइडिंग टीम कैमूर आई और उसने आदिवासियों पर पुलिस की कार्रवाई की पूरी जांच की। इस टीम में आमिर शेरवानी खान और मातादयाल (ऑल इंडिया यूनियन ऑफ फॉरेस्ट वर्किंग पीपल), राजा रब्बी हुसैन (दिल्ली एकजुटता समूह) और सुप्रीम कोर्ट के वकील अमन खान शामिल थे। इस टीम ने आदिवासियों के आरोपों को सही पाते हुए पुलिस की बर्बरता की पुष्टि की थी।
वृंदा करात बोलीं- आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों के खिलाफ युद्ध छेड़ रही सरकार
माओवादी कम्युनिस्ट पार्टी (CPIM) पॉलिट-ब्यूरो की सदस्य और आदिवासी अधिकार राष्ट्रीय मंच की उपाध्यक्ष वृंदा करात ने मामले में सरकार पर आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों के खिलाफ एक अघोषित युद्ध छेड़ने का आरोप लगाया है। वहीं मातादयाल ने कहा, "केवल अपनी आवाज उठाने के लिए हम पर एक के बाद एक केस दर्ज किए जा रहे हैं। हम चाहते हैं कि आदिवासियों पर बर्बर कार्रवाई करने वालों अधिकारियों पर SC/ST अधिनियम के तहत आपराधिक कार्रवाई की जाए।"