जापान समेत कई देशों में फैला टिश्यू डैमेजिंग बैक्टीरिया, क्या हैं इसके लक्षण और कितना खतरनाक?
कोरोना वायरस अभी पूरी तरह खत्म भी नहीं हुआ कि अब एक खतरनाक टिश्यू डैमेजिंग बैक्टीरिया ने दस्तक दे दी है। यह बैक्टीरिया शरीर के उत्तकों को नष्ट करता है। यही कारण है कि इसकी चपेट में आए व्यक्ति की 48 घंटे में मौत हो जाती है। वैज्ञानिकों ने इस बीमारी को स्ट्रेप्टोकोकल टॉक्सिक शॉक सिंड्रोम (STSS) नाम दिया है। इसके जापान सहित 6 देशों में कई मामले सामने आ चुके हैं। आइए इसके लक्षण और गंभीरता जानते हैं।
क्या है यह बैक्टीरिया?
जापान के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ इंफेक्टियस डिजीज के अनुसार, इस बैक्टीरिया का नाम 'स्ट्रेप्टोकोकस' है। इसकी पहचान सबसे पहले 1999 में जापान में की गई थी। इसके 2 वेरिएंट हैं, जिसमें पहला ग्रुप-A स्ट्रेप्टोकोकस और दूसरा पहला ग्रुप-B स्ट्रेप्टोकोकस है। इनमें से सबसे ज्यादा मामले ग्रुप-A स्ट्रेप्टोकोकस के ही पाए जाते हैं। यह बच्चों और बुजुर्गों के लिए सबसे ज्यादा खतरनाक होता है। कुछ मामलों में यह अपने आप ठीक हो जाता है, लेकिन अधिकतर गंभीर परिणाम देता है।
क्या हैं इस बैक्टीरिया के लक्षण?
ग्रुप-A स्ट्रेप्टोकोकस की चपेट में आए लोगों को सबसे पहले सर्दी, खांसी, बुखार या गले में खराश की शिकायत होने लगती है। इसके बाद जैसे-जैसे इसकी गंभीरता बढ़ती है तो मरीज को शरीर में दर्द, तेज बुखार, निम्न रक्तचाप (लो ब्लड प्रेशर), नेक्रोसिस (शरीर के उत्तकों का खत्म होना), सांस लेने में समस्या और शरीर के अंगों का काम करना बंद करना जैसे गंभीर लक्षण सामने आने लगते हैं। ऐसी स्थिति में मरीज का बच पाना मुश्किल होता है।
शरीर में कैसे प्रवेश करता है यह बैक्टीरिया?
जापान के टोक्यो वीमेंस मेडिकल यूनिवर्सिटी में इंफेक्टियस डिजीज के प्रोफेसर केन किकुची के अनुसार, ग्रुप-A स्ट्रेप्टोकोकस बैक्टीरिया किसी घाव या खुले जख्म में तेजी से फैलता है। संक्रमण के बाद बैक्टीरिया घाव में एक तरह का टॉक्सिन रिलीज करता है। यह टॉक्सिन मांसपेशियों, रक्त वाहिकाओं और तंत्रिकाओं को नष्ट करना शुरू कर देता है। इस टॉक्सिन के कारण घाव या जख्त सड़ने लग जाता है। ऐसे में घाव को खुला रखना इस बैक्टीरिया को आमंत्रित करना है।
क्या वाकई शरीर का मांस खाता है स्ट्रेप्टोकोकस बैक्टीरिया?
रिपोर्ट के मुताबिक, इस बैक्टीरिया को मांस खाने वाला कहा जाता है। हालांकि, यह सीधे मांस नहीं खाता है, बल्कि शरीर के उत्तकों (टीश्यू) को नष्ट करता है। इसे फ्लेश-इटिंग कहते हैं। विज्ञान में उत्तकों को मारने की क्रिया को नेक्रोटाइजिंग फसाइटिस कहा जाता है।
कितना गंभीर है स्ट्रेप्टोकोकस बैक्टीरिया?
किकुची ने बताया कि यह बैक्टीरिया बेहद खतरनाक है। इस बीमारी की मृत्यु दर 30 प्रतिशत से अधिक है। इसी तरह इसकी चपेट में आने वाले व्यक्ति की हालत लगातार खराब होती जाती है और अधिकतर मरीजों की मौत सिर्फ 48 घंटों में हो सकती है। उन्होंने बताया कि 40 साल से ज्यादा की उम्र के लोगों को इस बीमारी का खतरा ज्यादा होता है। ऐसे में इस आयु वर्ग के लोगों को अधिक सावधानी बरतने की जरूरत है।
जापान सहित 6 देशों में सामने आए मामले
जापान के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ इंफेक्टियस डिजीज की मानें तो साल 2023 में 941 लोग इस बैक्टीरिया की चपेट में आए थे। हालांकि, इस साल 2 जून तक इसके मामलों की संख्या 977 पर पहुंच गई है। इसमें अकेले टोक्यो में 145 मामले मिले हैं। यदि संक्रमण की रफ्तार ऐसी रही तो इस साल 2,500 लोग इसकी चपेट में आ सकते हैं। वर्तमान में जापान के अलावा ब्रिटेन, फ्रांस, आयरलैंड, नीदरलैंड और स्वीडन में भी इसके मामले आ चुके हैं।
क्या है इस बैक्टीरिया से बचने के तरीके?
चिकित्सा विशेषज्ञों के मुताबिक, इस बीमारी से बचने के लिए इसकी जल्दी पहचान, देखभाल और तुरंत इलाज जरूरी है। इस बैक्टीरिया से निपटने के लिए बाजार में J8 नाम की वैक्सीन भी मौजूद है, जो शरीर में एंटीबायोटिक बनाती है। हालांकि, मामला बिगड़ने पर यह वैक्सीन भी निष्प्रभावी हो जाती है। ऐसे में छोटी चोट लगने पर भी उसे नजरअंदाज करने की जगह उसका पुख्ता इलाज कराना ही समझदारी है।
भारत में कितना खतरा?
जानकारी के मुताबिक, भारत में अमूमन 5 से 15 साल तक के बच्चों में ग्रुप-A स्ट्रेप्टोकोकस के लक्षण दिखते हैं, लेकिन यहां पर इसने स्ट्रेप्टोकोकल टॉक्सिक शॉक सिंड्रोम का रूप नहीं लिया है। देश में अभी तक इसका कोई मामला सामने नहीं आया है।