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    JNU हिंसा: लापरवाही के आरोपों पर दिल्ली पुलिस ने खुद को क्लीन चिट दी

    JNU हिंसा: लापरवाही के आरोपों पर दिल्ली पुलिस ने खुद को क्लीन चिट दी

    लेखन प्रमोद कुमार
    Nov 19, 2020
    08:47 am

    क्या है खबर?

    जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (JNU) में इस साल जनवरी में हुई हिंसा में पुलिस की लापरवाही की पड़ताल कर रही दिल्ली पुलिस की फैक्ट फाइंडिंग कमेटी ने दिल्ली पुलिस को क्लीन चिट दे दी है।

    कमेटी को 'घटनाओं के क्रम' और 'स्थानीय पुलिस के स्तर पर लापरवाही' की जांच करने के लिए गठित किया गया था।

    ज्वाइंट कमिश्नर ऑफ पुलिस शालिनी सिंह के नेतृत्व वाली इस कमेटी में दो ACP और चार इंस्पेक्टर थे।

    पृष्ठभूमि

    5 जनवरी को JNU में हुई थी हिंसा

    JNU हिंसा की शुरुआत 5 जनवरी की दोपहर को हुई जब लगभग 100 की संख्या में नकाबपोश गुंडों ने कैंपस में घुसकर छात्रों और शिक्षकों पर हमला किया।

    जिस समय इन गुंडों ने हमला किया, छात्र और शिक्षक साबरमती हॉस्टल के पास एक सभा कर रहे थे।

    उन्होंने यहां जमा छात्रों और शिक्षकों पर सबसे पहले पत्थर बरसाए। इस हमले में कई शिक्षक और छात्र घायल हो गए थे।

    इस मामले में अभी तक कोई गिरफ्तारी नहीं हुई है।

    सवाल

    पुलिस की भूमिका पर उठे थे सवाल

    उस समय यह सवाल उठे थे कि जब गुंडे कैंपस के भीतर उत्पात मचा रहे थे, तब पुलिस अंदर क्यों नहीं गई।

    पुलिस का बाहर रहने का फैसला जामिया मिलिया इस्लामिया की घटना से उलट है, जब पुलिस ने कैंपस के भीतर बनी लाइब्रेरी में घुसकर छात्रों की पिटाई की थी।

    पुलिस का कहना है कि जामिया में वो दंगाईयों का पीछा करते हुए अंदर गई थी, जबकि JNU में उनके पास अंदर जाने की अनुमति नहीं थी।

    जांच

    कमेटी ने कई पुलिस अधिकारियों के बयान दर्ज किए

    इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, इस कमेटी ने DCP (दक्षिण-पश्चिम) देवेंद्र आर्य, तत्कालीन ACP रमेश कक्कड़, SHO वसंत कुंज (उत्तर) रितुराज और इंस्पेक्टर आनंद यादव की बयान दर्ज किए थे।

    5 जनवरी यानी हिंसा वाले दिन ये हाई कोर्ट के आदेश पर JNU के एडमिनिस्ट्रेटिव ब्लॉक पर तैनात थे।

    हाई कोर्ट ने इन्हें वाइस-चांसलर के ऑफिस के 100 मीटर के दायरे में प्रदर्शन होने से रोकने के लिए तैनात किया था।

    जांच

    सभी अधिकारियों ने दिए एक जैसे बयान

    एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया कि सभी पुलिसकर्मियों ने घटना का ब्यौरा देते हुए एक जैसे बयान दिये हैं।

    इन्होंने घटनाक्रम की शुरुआत के बारे में बताते हुए कहा कि 5 जनवरी को सुबह 8 बजे सादे कपड़ों में 27 पुलिसकर्मी JNU एडमिनिस्ट्रेटिव ब्लॉक के पास ड्यूटी के लिए आए थे।

    इनका काम ब्लॉक के पास धरना होने से रोकना था। इनमें महिला पुलिसकर्मी भी शामिल थीं और इनके पास कोई हथियार या लाठी नहीं थी।

    जानकारी

    हिंसा के दिन पुलिस के पास किए गए थे 20 से ज्यादा कॉल्स

    एक अधिकारी ने बताया कि हिंसा वाले दिन JNU के अंदर से PCR को 23 फोन कॉल्स किए गए थे। इनकी शुरुआत दोपहर 2:30 बजे से हुई थी। कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में भी इनका जिक्र किया है।

    जांच-पड़ताल

    छात्रों की पिटाई से संबंधित थे शुरुआती फोन कॉल्स

    कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि हिंसा वाले दिन यानी 5 जनवरी को दोपहर 3:45-4:15 बजे के बीच कैंपस से आठ फोन कॉल्स किए गए थे। ये सभी पेरियार हॉस्टल में छात्रों की पिटाई से संबंधित थे।

    इसके बाद कैंपस में छात्रों के विवाद और इकट्ठा होने से जुड़े 14 अन्य कॉल्स किए गए।

    बाद के 14 फोन कॉल्स 4:15 बजे से शाम के 6 बजे के बीच किए गए थे।

    बयान

    अधिकारियों ने क्या बयान दिए?

    अधिकारी ने आगे बताया कि DCP आर्या ने अपने अधीन अधिकारियों के साथ लगभग 5 बजे कैंपस का दौरा किया। उस समय हालात सामान्य नजर आए इसलिए वो वापस मुख्य गेट पर लौट गए।

    पूछताछ के दौरान अधिकारियों ने वाइस-चांसलर एम जगदेश कुमार का आर्या को भेजा मैसेज भी दिखाया, जिसमें उन्होंने पुलिस को गेट पर तैनात रहने को कहा था।

    शाम लगभग 8 बजे रजिस्ट्रार प्रमोद कुमार ने पुलिस को परिसर में तैनाती बढ़ाने का पत्र सौंपा था।

    बयान

    पुलिस के दखल से काबू में आई स्थिति- कमेटी

    कमेटी ने सबके बयान दर्ज करने के बाद अपनी रिपोर्ट में कहा गया है कि 5 जनवरी के दिन JNU कैंपस में तनाव चरम पर था, लेकिन पुलिस के दखल से स्थिति को नियंत्रण में कर लिया गया।

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