अब 24 सप्ताह में हो सकेगा गर्भपात, जानिये इसे लेकर क्या कहता है मौजूदा कानून
केंद्रीय कैबिनेट ने बुधवार को मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (अमेंडमेंट) बिल, 2020 को हरी झंडी दिखा दी है। इस बिल को संसद के आगामी सत्र में पेश किया जाएगा। इसके तहत गर्भपात कराने की अनुमति के लिए अधिकतम सीमा 20 सप्ताह से बढ़ाकर 24 सप्ताह की गई है। अभी तक के नियमों के मुताबिक, महिलाएं केवल गर्भ के 20 सप्ताह तक ही गर्भपात करा सकती थी। इसके बाद के लिए उन्हें अदालत से अनुमति की जरूरत होती है।
24 सप्ताह में गर्भपात कराना होगा सुरक्षित- जावड़ेकर
प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट बैठक के फैसले की जानकारी देते हुए केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने बताया कि केंद्रीय मंत्री 20 सप्ताह में गर्भपात कराने पर मां की जान जाने के कई मामले सामने आए हैं। 24 सप्ताह में गर्भपात कराना सुरक्षित होगा। उन्होंने कहा समय बढ़ाए जाने से बलात्कार पीड़िताओं और नाबालिगों को मदद मिलेगी। इस उद्देश्य के लिए गर्भपात अधिनियम (मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी एक्ट) 1971 में संशोधन किया जाएगा।
दायर की गई थी जनहित याचिका
अगस्त, 2018 में गर्भपात कराने का समय बढ़ाने को लेकर एक दिल्ली हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई थी। इसकी सुनवाई के दौरान स्वास्थ्य मंत्रालय ने कोर्ट को बताया था कि गर्भवती महिला के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते में गर्भपात की समयसीमा 20 सप्ताह से बढ़ाकर 24-26 हफ्ते करने पर विचार किया जा रहा है। स्वास्थ्य मंत्रालय ने बताया था कि उसने कानून में संशोधन के लिए अपना मसौदा तैयार कर कानून मंत्रालय को भेज दिया है।
याचिका में की गई थी यह मांग
याचिकाकर्ता अमित साहनी ने मांग की थी कि जैसे गर्भधारण का अधिकार की तरह गर्भपात कराने का अधिकार भी महिला के पास होना चाहिए। साथ ही अविवाहित महिला और विधवाओं को कानूनी रूप से गर्भपात कराने की अनुमति देने की मांग की गई थी।
1971 से पहले गर्भपात का माना जाता था अपराध
साल 1971 से पहले गर्भपात कराना भारतीय दंड संहिता के तहत एक अपराध माना जाता था। इस दौरान असुरक्षित गर्भपात की बढ़ती संख्या को देखते हुए सरकार ने शांतिलाल शाह कमेटी गठित की, जिसने कानून बनाने के लिए अपनी सिफारिशें दीं। साल 1970 में इस कमेटी की सिफारिशें स्वीकार की गई और एक साल बाद मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 अस्तित्व में आया। अब इसमें संशोधन किया जाएगा।
गर्भपात का मतलब और दूसरे देशों के कानून
जब विकासशील भ्रूण को पूर्ण रूप से विकसित होने से रोकने के मकसद से गर्भाशय में समाप्त किया जाता है तो इसे गर्भपात कहा जाता है। यह किसी मकसद के लिए किया जाता है। इसलिए यह मिसकैरेज से अलग होता है। फ्रांस और स्विट्जरलैंड जैसे कई देशों में भ्रूण में विसंगतियां पाए जाने पर 20 सप्ताह से ज्यादा होने पर गर्भपात की इजाजत है। डेनमार्क, कनाडा समेत 23 देश ऐसे हैं, जहां किसी भी समय गर्भपात कराया जा सकता है।
20 सप्ताह के बाद आती है अदालत की भूमिका
अगर किसी महिला को 20 सप्ताह के बाद गर्भपात कराना होता है तो उसे अदालत की अनुमति लेनी होती है। अदालत उन मामलों में गर्भपात की अनुमित देती है, जहां गर्भवती महिला के जीवन की रक्षा के लिए गर्भपात कराना जरूरी हो जाती है। यहां यह भी बता देना जरूरी है कि नाबालिगों या मानसिक रूप से विक्षिप्त महिला की गर्भावस्था के मामले में गर्भपात के लिए माता-पिता की लिखित सहमति जरूरी है।
गर्भपात के लिए जरूरी है डॉक्टर की राय
मौजूदा कानून के मुताबिक, अगर किसी गर्भवती महिला को गर्भावस्था के 12वें सप्ताह तक गर्भपात कराना है तो एक डॉक्टर की यह राय जरूरी है कि गर्भावस्था की निरंतरता मां या भ्रूण के जीवन को खतरे में डाल सकती है। वहीं 12-20 सप्ताह तक के समय में गर्भपात कराने के लिए 2 डॉक्टरों की राय होना जरूरी है। स्वास्थ्य मंत्रालय के दिशानिर्देशों के मुताबिक, गर्भपात केवल रजिस्टर्ड स्त्री रोग विशेषज्ञ और प्रसूति रोग विशेषज्ञ द्वारा किया जा सकता है।