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    चंद्रयान-2: ISRO का SLV मिशन फेल होने पर क्या बोले थे पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम

    चंद्रयान-2: ISRO का SLV मिशन फेल होने पर क्या बोले थे पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम

    लेखन प्रमोद कुमार
    Sep 07, 2019
    12:24 pm

    क्या है खबर?

    चांद पर पहुंचने की अपनी कोशिश में ISRO सफल नहीं हो पाया। लैंडिंग से 90 सेकंड पहले विक्रम लैंडर का कंट्रोल रूम से संपर्क टूट गया।

    इसके साथ ही कंट्रोल रूम में मौजूद प्रधानमंत्री मोदी समेत ISRO वैज्ञानिकों के चेहरे पर मायूसी छा गई।

    ऐसे मौके पर पूर्व राष्ट्रपति दिवंगत डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम का एक भाषण याद आता है, जिसमें उन्होंने असफलता से लड़ने का मंत्र बताया था।

    क्या था उनका यह मंत्र? आइये, जानते हैं।

    मामला

    डॉक्टर कलाम थे प्रोजेक्ट डायरेक्टर

    साल 1979 में ISRO का SLV-3 सैटेलाइट लॉन्च मिशन असफल हुआ था। डॉक्टर कलाम उस वक्त भारत के पहले सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (SLV-III) मिशन के प्रोजेक्ट डायरेक्टर थे और प्रोफेसर सतीश धवन के हाथों में ISRO की कमान थी।

    यह मिशन सफल नहीं हो पाया और इसके लिए ISRO को आलोचना का सामना करना पड़ा।

    इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, 2013 में एक सम्मेलन में बोलते हुए डॉक्टर कलाम ने उस मिशन से मिले सबक के बारे में विस्तार से बताया।

    मिशन

    40 साल पहले की है घटना

    कलाम ने कहा था, "यह 1979 की बात है। मैं प्रोजेक्ट डायरेक्टर था, मेरा काम सैटेलाइट को ऑर्बिट में डालना था। हजारों लोगों ने 10 साल तक काम किया था। मैं श्रीहरिकोटा पहुंचा। काउंटडाउन चल रही थी। चार मिनट..तीन मिनट...दो मिनट...एक मिनट.. और लॉन्चिंग से कुछ सेकंड पहले कंप्यूटर ने इसे होल्ड पर डाल दिया।"

    उन्होंने कहा था, "इसे लॉन्च न करने का मैसेज स्क्रीन पर आया। मैं मिशन डायरेक्टर था। मुझे इसका फैसला लेना था।"

    जानकारी

    कंप्यूटर की चेतावनी को नजरअंदाज कर किया था रॉकेट लॉन्च

    कलाम ने आगे कहा कि एक्सपर्ट ने उन्हें सलाह दी कि इसे लॉन्च किया जाए। वो अपनी कैलकुलेशन को लेकर आश्वस्त थे। इसके बाद कलाम ने कंप्यूटर के मैसेज को नजरअंदाज किया और रॉकेट को लॉन्च कर दिया।

    असफलता

    बंगाल की खाड़ी में जा गिरा था रॉकेट

    कलाम ने बताया, "मैंने कंप्यूटर को बायपास करते हुए सिस्टम को लॉन्च कर दिया। सैटेलाइट लॉन्चिंग से पहले चार स्टेज होती है। पहली स्टेज पार हो गई, लेकिन दूसरी स्टेज में रॉकेट नियंत्रण से बाहर हो गया। ऑर्बिटर में जाने की बजाय यह बंगाल की खाड़ी में गिर गया।"

    कलाम ने कहा कि कंप्यूटर की बात न मानना उनका फैसला था।

    उन्होंने कहा, "मुझे पहली बार असफलता मिली। सफलता को पचाया जा सकता है, लेकिन असफलता का मुकाबला कैसे करें?"

    जिम्मेदारी

    सतीश धवन ने ली थी असफलता की जिम्मेदारी

    कलाम ने आगे बताया कि सतीश धवन ने उनके साथ एक प्रेस कॉन्फ्रेस की। आलोचनाओं के डर के बावजूद धवन ने कहा, "प्यारे दोस्तों, आज हम फेल हो गए। मैं अपने तकनीशियनों, मेरे वैज्ञानिकों और मेरे स्टाफ के समर्थन में हूं ताकि वो अगले साल सफल हो सके।"

    कलाम ने कहा, "आलोचनाओं के बावजूद उन्होंने पूरी जिम्मेदारी अपने पर ली। उन्होंने जिम्मेदारी लेते हुए भरोसा दिलाया कि वह अपनी शानदार टीम के बलबूते अगले साल सफल होंगे।"

    सफलता

    टीम को मिला कामयाबी का श्रेय

    अगले साल जुलाई, 1980 में कलाम के नेतृत्व में उसी टीम ने रोहिणी RS-1 को सफलतापूर्वक ऑर्बिट में भेजा। इसके बाद धवन ने कलाम को प्रेस कॉन्फ्रेंस में जाने को कहा।

    कलाम ने बताया, "मैंने उस दिन एक सबक सीखा। जब असफलता मिलती है तो संगठन का मुखिया जिम्मेदारी लेता है। जब सफलता मिलती है तो वह इसका श्रेय टीम को देता है। प्रबंधन का सबसे बेहतर सबक मैंने किताबों से नहीं अनुभव से सीखा है।"

    उम्मीद

    ISRO के साथ खड़ा है पूरा देश

    डॉक्टर कलाम की ये बातें मायूसी में डूबे ISRO समेत पूरे देश के लिए हौसला बढ़ाने वाली है। बेशक भारत का यह मिशन पहली कोशिश में चांद पर नहीं उतर पाया, लेकिन इसकी पूरी यात्रा देश का गौरव बढ़ाने वाली रही।

    विज्ञान में असफलता कुछ नहीं होती। जिस तरह डॉक्टर कलाम की टीम ने बंगाल की खाड़ी में गिरे रॉकेट के अनुभव से सीखकर नया इतिहास रचा, वैसे ही ISRO नया इतिहास रचेगा। पूरे देश को इस पर भरोसा है।

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